महेंद्र सिंह बागड़ी | जीवनी | आजाद हिंद फौज | उत्तराखंड का रणबांकुरा (Mahendra Singh Bagri | Biography | Azad Hind Fauj | Ranbankura of Uttarakhand)
महेंद्र सिंह बागड़ी | जीवनी | आजाद हिंद फौज | उत्तराखंड का रणबांकुरा
उत्तराखंड के वीर सपूतों की शौर्यगाथा में एक ऐसा नाम है, जिसे देशभक्ति और बलिदान के लिए सदैव याद किया जाएगा। यह नाम है महेंद्र सिंह बागड़ी, जिन्होंने अपनी वीरता से न केवल अपने गांव और राज्य का बल्कि पूरे देश का गौरव बढ़ाया। महेंद्र सिंह बागड़ी ने दो विश्वयुद्ध लड़े और उसके बाद आजादी की लड़ाई में भी अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।
प्रारंभिक जीवन और सेना में प्रवेश
आजाद हिंद फौज से जुड़ाव
सन् 1942 में, जब अंग्रेजों की सेना को मलाया में हार का सामना करना पड़ा, तो महेंद्र सिंह बागड़ी जापान के राजनीतिक कैदी बन गए। इसी दौरान ज्ञानी प्रीतम सिंह और कप्तान मोहन सिंह के नेतृत्व में 'आजाद हिंद फौज' का गठन हुआ। महेंद्र सिंह बागड़ी इस क्रांतिकारी सेना में शामिल हो गए।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 'आजाद हिंद फौज' की कमान संभाली और 'दिल्ली चलो' का नारा दिया। नेताजी ने महेंद्र सिंह बागड़ी को सेकंड इन्फैंट्री रेजिमेंट की तीसरी पलटन की कमान सौंपी।
दिल्ली की ओर अभियान और वीरता
फरवरी 1945 में, महेंद्र सिंह बागड़ी की बटालियन को पूर्वी भारत के पास पोपा क्षेत्र में भेजा गया। यहीं उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ अपनी वीरता का परिचय दिया। मार्च के अंतिम दिनों में जब मौसम खराब था, बारिश हो रही थी और कीचड़ ने हालात मुश्किल बना दिए थे, तब भी उनकी बटालियन ने अंग्रेजी फौज को भारी क्षति पहुंचाई।
22 अप्रैल 1945 को टौंडविगी के दक्षिण में, उनकी बटालियन अंग्रेजी टैंकों से घिर गई। यह एक ऐसा समय था, जब सेना के पास न पर्याप्त हथियार थे और न ही राशन। ऐसे में महेंद्र सिंह बागड़ी ने अपने सैनिकों को संबोधित करते हुए कहा:
"हम या तो कायर अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण कर सकते हैं या वीर सिपाही की तरह लड़ते हुए अपनी जान दे सकते हैं। मैं समर्पण नहीं करूंगा और अंतिम समय तक लड़ता रहूंगा।"
बलिदान और शहीदी
उन्होंने लगभग 100 सैनिकों के साथ अंग्रेजी टैंकों पर हमला कर दिया। उन्होंने हथगोले और पेट्रोल बमों से दुश्मन के एक टैंक और बख्तरबंद गाड़ी को तबाह कर दिया। लेकिन दूसरे टैंक पर हमला करते समय उन्हें गोली लग गई, और वे वीरगति को प्राप्त हुए।
महेंद्र सिंह बागड़ी ने न केवल अपने प्राणों का बलिदान दिया, बल्कि उत्तराखंड और पूरे देश का नाम रोशन किया। उनकी शहादत ने अंग्रेजों को यह अहसास कराया कि भारतीयों की आजादी की लड़ाई को कोई ताकत नहीं दबा सकती।
उत्तराखंड का गर्व
महेंद्र सिंह बागड़ी का बलिदान उत्तराखंड के लिए गर्व की बात है। वे एक ऐसे वीर योद्धा थे, जिन्होंने आजाद हिंद फौज के माध्यम से देश के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। उनके शौर्य और बलिदान की कहानियां आज भी हमें प्रेरणा देती हैं।
समर्पित कविता
मुख्य जानकारी (Key Highlights)
- नाम: महेंद्र सिंह बागड़ी
- जन्म: सन् 1886, बागड़ गांव, अल्मोड़ा
- सेना में प्रवेश: सन् 1914
- आजाद हिंद फौज में योगदान: सेकंड इन्फैंट्री रेजिमेंट
- शहादत: 22 अप्रैल 1945
- मिशन: 'दिल्ली चलो' अभियान
इस गाथा को हमेशा जीवंत रखने के लिए उनकी कहानी को हर घर तक पहुंचाना हमारा कर्तव्य है। आप उनकी प्रेरणादायक कहानी को अपने परिवार और दोस्तों के साथ साझा करें।
FQCs (Frequently Queried Concepts) for महेंद्र सिंह बागड़ी: उत्तराखंड का रणबांकुरा
जन्म और प्रारंभिक जीवन
- जन्म: 1886, बागड़ गांव, मल्ला दानपुर पट्टी, अल्मोड़ा, उत्तराखंड।
- बचपन: सादगी और ग्रामीण परिवेश में व्यतीत।
सेना में प्रवेश और प्रारंभिक सैन्य जीवन
- 1914: भारतीय सेना में भर्ती।
- उत्कृष्टता और साहस से सूबेदार के पद तक पहुंचे।
आजाद हिंद फौज से जुड़ाव
- 1942: जापान में राजनीतिक कैदी बनने के बाद 'आजाद हिंद फौज' में शामिल हुए।
- नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में सेकंड इन्फैंट्री रेजिमेंट की तीसरी पलटन की कमान संभाली।
दिल्ली चलो अभियान और पोपा क्षेत्र का संघर्ष
- फरवरी 1945: उनकी बटालियन पोपा क्षेत्र भेजी गई।
- खराब मौसम और मुश्किल हालात में भी वीरता का प्रदर्शन।
- अंग्रेजी फौज को भारी नुकसान पहुंचाया।
22 अप्रैल 1945: वीरगति और शहादत
- टौंडविगी के दक्षिण में बटालियन ने अंग्रेजी टैंकों का सामना किया।
- हथगोले और पेट्रोल बम से दुश्मन के टैंकों को नष्ट किया।
- दूसरे टैंक पर हमला करते समय गोली लगने से वीरगति को प्राप्त हुए।
प्रेरणादायक उद्धरण
- "हम या तो कायर अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण कर सकते हैं या वीर सिपाही की तरह लड़ते हुए अपनी जान दे सकते हैं। मैं समर्पण नहीं करूंगा और अंतिम समय तक लड़ता रहूंगा।"
महेंद्र सिंह बागड़ी की विरासत
- उत्तराखंड और भारत के लिए गर्व का प्रतीक।
- उनका बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की शौर्यगाथा में अमर।
मुख्य उपलब्धियां
- भारतीय सेना और 'आजाद हिंद फौज' में योगदान।
- 'दिल्ली चलो' अभियान के प्रमुख योद्धा।
- देशभक्ति और बलिदान के लिए प्रेरणास्त्रोत।
उत्तराखंड का गर्व
- महेंद्र सिंह बागड़ी ने उत्तराखंड और पूरे देश का गौरव बढ़ाया।
- उनकी वीरता और बलिदान उत्तराखंड की शौर्य परंपरा का अद्भुत उदाहरण।
समर्पित कविता
- "रणभूमि में जिनका शौर्य पुकारे,
बागड़ी थे वो वीर तुम्हारे।
तन-मन-धन सब किया बलिदान,
भारत मां के सच्चे संताने।"
Key Highlights
विशेष जानकारी | विवरण |
---|---|
नाम | महेंद्र सिंह बागड़ी |
जन्म | 1886, बागड़ गांव, अल्मोड़ा |
सेना में प्रवेश | 1914 |
आजाद हिंद फौज में योगदान | सेकंड इन्फैंट्री रेजिमेंट |
शहादत | 22 अप्रैल 1945 |
मिशन | 'दिल्ली चलो' अभियान |
निष्कर्ष:
महेंद्र सिंह बागड़ी की गाथा स्वतंत्रता संग्राम के स्वर्णिम अध्यायों में अमिट रहेगी। उनका जीवन और बलिदान हमें देशभक्ति और साहस की प्रेरणा देते हैं। जय हिंद! जय उत्तराखंड!
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें