नागेन्द्र सकलानी | टिहरी राज्य क्रांति के नायक अमर शहीद | (Nagendra Saklani | Hero of Tehri State Revolution Amar Shaheed | )
नागेन्द्र सकलानी | टिहरी गढ़वाल का अमर शहीद | Uttarakhand
नागेन्द्र सकलानी उत्तराखंड के उन वीर सपूतों में से एक हैं, जिन्होंने अपने जीवन का हर क्षण जनता के अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए समर्पित कर दिया। टिहरी रियासत के खिलाफ जनता के संघर्ष और कीर्तिनगर गोलीकांड में उनकी शहादत को इतिहास कभी भुला नहीं सकता।
प्रारंभिक जीवन
नागेन्द्र सकलानी का जन्म उत्तराखंड के सकलाना क्षेत्र में हुआ। उनका बचपन आर्थिक अभावों में बीता, लेकिन कठिन परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने गांव में प्रारंभिक शिक्षा पूरी की। जीवन यापन के लिए वे देहरादून आ गए। यहां उनके विचारों को नई दिशा मिली और वे कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ गए।
राजनीतिक सफर और टिहरी रियासत का संघर्ष
1946 में, पार्टी संगठन के निर्देश पर नागेन्द्र सकलानी को पौड़ी भेजा गया। यहां उन्होंने स्वतंत्रता सेनानी वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के साथ मिलकर टिहरी रियासत को सामंती शोषण और गुलामी से मुक्त करने के लिए आंदोलन शुरू किया।
टिहरी में आंदोलन का नेतृत्व
- 1946 में नागेन्द्र सकलानी, चंद्र सिंह गढ़वाली और दादा दौलतराम के साथ मिलकर टिहरी रियासत में जन आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे।
- इस कारण, अगस्त 1946 में रियासत की पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया।
- 23 फरवरी 1947 को उन्हें बिना शर्त जेल से रिहा किया गया। जेल से बाहर आते ही वे फिर से वन कानूनों, बेगार प्रथा, और जनता के अधिकारों के लिए संघर्ष में जुट गए।
कीर्तिनगर गोलीकांड और बलिदान
10 जनवरी 1948 को नागेन्द्र सकलानी के नेतृत्व में आंदोलनकारियों ने टिहरी रियासत के कीर्तिनगर स्थित कार्यालयों पर अधिकार कर लिया और राज कर्मचारियों को वहां से भगा दिया।
11 जनवरी 1948 को, टिहरी से आई अतिरिक्त पुलिस ने आंदोलनकारियों पर गोलीबारी शुरू कर दी। इस संघर्ष में नागेन्द्र सकलानी और उनके साथी मोलू भरदार शहीद हो गए। उनकी शहादत ने जनता को एकजुट कर दिया और पूरे टिहरी में राजशाही के खिलाफ आक्रोश की लहर दौड़ गई।
टिहरी की विजय और शहीदों का सम्मान
नागेन्द्र सकलानी और मोलू भरदार की शहादत के बाद आंदोलनकारियों ने 14 जनवरी 1948 को टिहरी पर कब्जा कर लिया।
15 जनवरी 1948 को, भागीरथी और भिलंगना के तट पर दोनों शहीदों की अंत्येष्टि की गई। उसी दिन टिहरी में प्रजामंडल सरकार का गठन किया गया।
नागेन्द्र सकलानी को समर्पित कविताएं
नागेन्द्र सकलानी की वीरता और बलिदान ने कवियों और लेखकों को भी प्रेरित किया। प्रख्यात लेखक मनोहर लाल श्रीमन ने लिखा:
"उठी जब तेरी आवाज,
उठा बागी कृषक समाज,
इस टिहरी का अधिराज।"
भजन सिंह की राष्ट्रवादी कविता:
"सादर देश समर्पित करके,
अपनी भरी जवानी।
रात और दिन रहा घूमता,
चिंतित पिया न पानी।
देश प्रेम की बेदी पर,
देकर अंतिम कुर्बानी।
धन्य हो गया,
आज वहीं नागेन्द्र सकलानी।"
नागेन्द्र सकलानी: प्रेरणा का स्रोत
नागेन्द्र सकलानी ने अपने जीवन में जो आदर्श प्रस्तुत किए, वे आज भी प्रेरणा के स्रोत हैं। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि व्यक्तिगत हितों से ऊपर उठकर समाज और देश के लिए संघर्ष करना सच्ची देशभक्ति है।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
वामपंथी विचारधारा से जुड़ाव
नागेंद्र सकलानी ने देहरादून में रहते हुए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सचिव आनंद स्वरूप भारद्वाज से मार्क्सवाद की शिक्षा ली। वे ब्रिजेंद्र गुप्ता के साथ मिलकर टिहरी रियासत के भीतर चल रहे आंदोलनों को किसानों के मुक्ति संघर्ष से जोड़ने में जुट गए।किसान आंदोलन और प्रजामंडल
प्रजामंडल की किसान आंदोलनों के प्रति उदासीनता के कारण नागेंद्र सकलानी ने अपने अलग विचारों के तहत काम किया। उन्होंने सकलाना और कडाकोट क्षेत्रों में किसानों के अधिकारों के लिए संघर्ष को नेतृत्व दिया।कीर्तिनगर आंदोलन और शहादत
10 जनवरी 1948 को नागेंद्र सकलानी ने त्रेपन सिंह नेगी, खिमानंद गोडियाल, दादा दौलतराम, और अन्य नेताओं के साथ कीर्तिनगर के सरकारी भवनों को कब्जे में लेकर कीर्तिनगर को आज़ाद घोषित कर दिया। 11 जनवरी 1948 को, जब आंदोलनकारी राजधानी टिहरी की ओर बढ़ने की तैयारी कर रहे थे, रियासत की फौज ने कीर्तिनगर पर हमला कर दिया। इस संघर्ष में कर्नल डोभाल के नेतृत्व में रियासत की पुलिस ने नागेंद्र सकलानी और उनके साथी मोलू भरदारी को गोली मार दी।
शव यात्रा और अंतिम विदाई
नागेंद्र सकलानी और मोलू भरदारी के शवों को लेकर आंदोलनकारी टिहरी की ओर कूच कर गए। 14 जनवरी 1948 को उनकी अर्थियां देवप्रयाग, हिंडोलाखाल, नंदगांव होते हुए टिहरी पहुंचीं। भिलंगना और भागीरथी के संगम पर उनका अंतिम संस्कार किया गया।
नागेंद्र सकलानी की विरासत
उनकी शहादत ने जनता में राजशाही के खिलाफ आक्रोश की ज्वाला को और भड़काया। परिणामस्वरूप, शाही फौज ने आत्मसमर्पण कर दिया और टिहरी में प्रजामंडल की सरकार की स्थापना हुई। उनकी कुर्बानी का परिणाम यह हुआ कि 1 अगस्त 1949 को टिहरी रियासत का भारत संघ में विलय हो गया।
मुख्य जानकारी (Key Highlights)
- नाम: नागेन्द्र सकलानी
- जन्मस्थान: सकलाना क्षेत्र, टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड
- प्रमुख भूमिका: टिहरी रियासत के खिलाफ जन आंदोलन का नेतृत्व
- प्रमुख घटना: कीर्तिनगर गोलीकांड (11 जनवरी 1948)
- सह-शहीद: मोलू भरदार
- यादगार दिन: 14 जनवरी 1948 (टिहरी पर कब्जा और प्रजामंडल सरकार का गठन)
समर्पित कविता
जब तक रहेगा सूरज चांद,
रहेगा सकलानी का नाम।
त्याग और बलिदान की मूर्ति,
देशभक्ति के सच्चे प्रीत।
टिहरी के रण का वीर सपूत,
सदा अमर है, सदा अमर है।
नागेन्द्र सकलानी और मोलू भरदार की शहादत को नमन।
जय उत्तराखंड! जय भारत!
FQCs: नागेन्द्र सकलानी | टिहरी गढ़वाल का अमर शहीद | Uttarakhand
प्रारंभिक जीवन
- जन्मस्थान: सकलाना क्षेत्र, टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड।
- परिवार और शिक्षा: आर्थिक अभाव के बावजूद गांव में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की।
- विचारधारा का विकास: देहरादून में रहकर वामपंथी विचारधारा और कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ाव।
राजनीतिक सफर और स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
- 1946:
- पौड़ी प्रजामंडल: स्वतंत्रता सेनानी वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के साथ काम किया।
- गिरफ्तारी: टिहरी रियासत के खिलाफ सक्रिय भूमिका के कारण जेल भेजा गया।
- जेल से रिहाई: अगस्त 1946 में बिना शर्त रिहा।
- किसान आंदोलन:
- सकलाना और कडाकोट क्षेत्र में किसानों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया।
- वन कानून और बेगार प्रथा के खिलाफ आवाज उठाई।
कीर्तिनगर आंदोलन और शहादत
- 10 जनवरी 1948:
- नागेन्द्र सकलानी ने कीर्तिनगर के सरकारी भवनों पर कब्जा कर टिहरी रियासत के शासन का विरोध किया।
- 11 जनवरी 1948:
- कीर्तिनगर गोलीकांड:
- टिहरी रियासत की फौज ने आंदोलनकारियों पर गोलीबारी की।
- नागेन्द्र सकलानी और मोलू भरदार ने शहादत दी।
- कीर्तिनगर गोलीकांड:
- प्रभाव:
- उनकी शहादत ने टिहरी रियासत के खिलाफ जनाक्रोश को बढ़ाया।
- 14 जनवरी 1948 को टिहरी पर आंदोलनकारियों ने कब्जा कर लिया।
शव यात्रा और अंतिम संस्कार
- यात्रा मार्ग:
- देवप्रयाग, हिंडोलाखाल और नंदगांव होते हुए टिहरी।
- 14 जनवरी 1948:
- भागीरथी और भिलंगना के संगम पर अंतिम संस्कार।
नागेन्द्र सकलानी की विरासत
- प्रभावशाली योगदान:
- उनकी शहादत के बाद 1 अगस्त 1949 को टिहरी रियासत का भारत संघ में विलय हुआ।
- कविता और स्मरण:
- उनकी वीरता पर कविताएं रची गईं।
- "जब तक रहेगा सूरज चांद, रहेगा सकलानी का नाम।"
मुख्य जानकारी (Key Highlights)
नाम | नागेन्द्र सकलानी |
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जन्मस्थान | सकलाना क्षेत्र, टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड |
प्रमुख घटना | कीर्तिनगर गोलीकांड (11 जनवरी 1948) |
सह-शहीद | मोलू भरदार |
यादगार दिन | 14 जनवरी 1948 (टिहरी पर कब्जा और प्रजामंडल सरकार का गठन) |
प्रमुख योगदान | टिहरी रियासत के खिलाफ आंदोलन, किसानों के अधिकारों की लड़ाई। |
समर्पित कविता
"सादर देश समर्पित करके,
अपनी भरी जवानी।
देश प्रेम की बेदी पर,
देकर अंतिम कुर्बानी।
धन्य हो गया,
आज वहीं नागेन्द्र सकलानी।"
नमन
नागेन्द्र सकलानी और मोलू भरदार की शहादत को शत्-शत् नमन।
जय उत्तराखंड! जय भारत!
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