शांतिलाल त्रिवेदी: स्वतंत्रता संग्राम के अमर सेनानी (Shantilal Trivedi: An immortal fighter of the freedom struggle)
शांतिलाल त्रिवेदी: स्वतंत्रता संग्राम के अमर सेनानी
"सदाचार का प्रचार और भ्रष्टाचार को भगाने का कार्य भाषणों और नारों से नहीं बल्कि स्वयं सत्यनिष्ठा के साथ सदाचरण बरतने पर संभव है।"
शांतिलाल त्रिवेदी का जन्म सन् 1905 में राजकोट, गुजरात में जयशंकर त्रिवेदी के घर हुआ। उनकी शिक्षा सौराष्ट्र के विभिन्न विद्यालयों में हुई। लेकिन जब वे इंटरमीडिएट में थे, तब देश में असहयोग आंदोलन ने उनके राष्ट्रप्रेमी हृदय को छू लिया। इसके चलते वे साबरमती आश्रम में चले गए और 1921 से 1924 तक वहाँ रहे। बाद में वे 1925-28 तक भावनगर के पास के आश्रम में रहे।
साबरमती से नागपुर तक पैदल यात्रा
1924 में गांधीजी के आदेश पर शांतिलाल 11 स्वयंसेवकों की टोली के उपाध्यक्ष बनकर नागपुर गए। इस यात्रा में स्वयंसेवकों ने पैदल ही साबरमती से नागपुर तक का सफर तय किया। रास्ते में पड़ने वाले गाँवों में सभाएँ आयोजित कर उन्होंने जनता में राष्ट्रीय चेतना जगाई।
अल्मोड़ा और खादी आंदोलन
1928 में गांधीजी के आदेश पर शांतिलाल अल्मोड़ा आए और खादी के प्रचार-प्रसार में जुट गए। उन्होंने खादी विभाग के निरीक्षक के रूप में कार्य किया और चरखा व खादी के महत्व को जन-जन तक पहुँचाया। 1937 में उनके प्रयासों से चनौदा में गांधी आश्रम की स्थापना हुई। यह आश्रम खादी और ऊनी कपड़ों के प्रचार में अग्रणी बना। लेकिन ब्रिटिश सरकार ने आश्रम बंद करवा दिया और उसका सामान नीलाम कर दिया।
राष्ट्रीय आंदोलन और बलिदान
1930 के झंडा सत्याग्रह में शांतिलाल पर गोरखा सैनिकों ने लाठीचार्ज किया। उनकी पसलियाँ टूट गईं और वे गंभीर रूप से घायल हुए। इसके बाद भी उन्होंने अपनी सेवा जारी रखी। भारत छोड़ो आंदोलन (1942) में उन्होंने सरला बहिन के साथ मिलकर गिरफ्तार स्वयंसेवकों के परिवारों की देखभाल की।
ब्रिटिश सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर अल्मोड़ा में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया। लेकिन उन्होंने हिमालय को अपना कार्यक्षेत्र बनाकर 15,000 मील पैदल यात्रा कर राष्ट्रीय चेतना का संदेश फैलाया।
गांधीजी से संबंध और स्वतंत्रता के बाद का जीवन
गांधीजी शांतिलाल की देशसेवा और विचारधारा से अत्यधिक प्रभावित थे। गांधीजी उन्हें "लंबे खत वाला" कहकर संबोधित करते थे, क्योंकि वे उन्हें लंबे पत्र लिखा करते थे।
स्वतंत्रता के बाद भी शांतिलाल ने जनहित के कार्यों में हाथ बँटाया। 1951-54 में अल्मोड़ा के पेयजल विवाद को सुलझाने के लिए उन्होंने उपवास किया।
विरासत
शांतिलाल त्रिवेदी ने अपने जीवन को गांधीजी और विनोबा भावे के आदर्शों के अनुरूप ढाला। आज भी वे हिमालय की गोद में बसे अल्मोड़ा में समाजसेवा और रचनात्मक कार्यों में जुटे हुए हैं।
"हम अंग्रेजों से कहते हैं कि भारत छोड़ो, आप हमसे कहते हैं कि हिमालय छोड़ो। हिमालय हमारा है, हम इसे क्यों छोड़ें?"
शांतिलाल त्रिवेदी का जीवन बलिदान, सत्य और सेवा का प्रतीक है। उनका योगदान हमेशा राष्ट्र की स्मृति में अमर रहेगा।
FQCs (Frequently Queried Concepts) for शांतिलाल त्रिवेदी: स्वतंत्रता संग्राम के अमर सेनानी
शांतिलाल त्रिवेदी का जन्म और शिक्षा
- जन्म: 1905, राजकोट, गुजरात।
- शिक्षा: सौराष्ट्र के विभिन्न विद्यालय।
- असहयोग आंदोलन से प्रेरित होकर इंटरमीडिएट में पढ़ाई छोड़ दी।
साबरमती आश्रम में समय बिताना
- 1921-1924: गांधीजी के साथ साबरमती आश्रम में।
- 1925-28: भावनगर के पास एक आश्रम में सेवा।
साबरमती से नागपुर तक पैदल यात्रा
- 1924 में गांधीजी के निर्देश पर 11 स्वयंसेवकों के साथ नागपुर तक पैदल यात्रा।
- रास्ते में सभाओं के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना फैलाना।
अल्मोड़ा में खादी आंदोलन
- 1928: अल्मोड़ा में खादी के प्रचार-प्रसार का कार्य।
- 1937: चनौदा में गांधी आश्रम की स्थापना।
- ब्रिटिश सरकार द्वारा आश्रम बंद और उसका सामान नीलाम।
राष्ट्रीय आंदोलन में योगदान
- 1930: झंडा सत्याग्रह के दौरान गोरखा सैनिकों के लाठीचार्ज से घायल।
- 1942: भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय योगदान।
- गिरफ्तार स्वयंसेवकों के परिवारों की सहायता।
हिमालय में कार्यक्षेत्र
- अल्मोड़ा में प्रवेश पर ब्रिटिश प्रतिबंध के बाद हिमालय को कार्यक्षेत्र बनाया।
- 15,000 मील पैदल यात्रा कर राष्ट्रीय चेतना का प्रचार।
गांधीजी से संबंध
- गांधीजी द्वारा "लंबे खत वाला" कहा जाना।
- गांधी और विनोबा भावे के आदर्शों को अपनाना।
स्वतंत्रता के बाद के कार्य
- 1951-54: अल्मोड़ा के पेयजल विवाद में उपवास।
- जनहित कार्यों में निरंतर योगदान।
प्रेरणादायक उद्धरण
- "सदाचार का प्रचार और भ्रष्टाचार को भगाने का कार्य भाषणों से नहीं बल्कि सत्यनिष्ठा के साथ सदाचरण पर संभव है।"
- "हिमालय हमारा है, हम इसे क्यों छोड़ें?"
शांतिलाल त्रिवेदी की विरासत
- बलिदान, सत्य और सेवा के प्रतीक।
- खादी आंदोलन, समाजसेवा और राष्ट्रनिर्माण में अमूल्य योगदान।
नोट: शांतिलाल त्रिवेदी का जीवन गांधीवादी मूल्यों और राष्ट्रीयता की मिसाल है। उनका योगदान स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अमिट है।
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