अल्मोड़ा पाताल देवी मंदिर: इतिहास और आस्था की एक पवित्र यात्रा (Almora Patal Devi Temple: A Sacred Journey of History and Faith)
अल्मोड़ा पाताल देवी मंदिर: इतिहास और आस्था की एक पवित्र यात्रा
उत्तराखंड का सांस्कृतिक हब अल्मोड़ा, एक ऐसी जगह है जहां आपको सैकड़ों साल पुराने मंदिर मिलते हैं, जो यहां की समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर को दर्शाते हैं। इन मंदिरों में से एक प्रमुख मंदिर है पाताल देवी मंदिर, जो अल्मोड़ा से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर लगभग 250 साल पुराना है और इसे चंद वंश के राजाओं ने 17वीं सदी में बनवाया था। यह मंदिर न केवल एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है, बल्कि उस समय की वास्तुकला का भी जीवंत उदाहरण है।
पाताल देवी मंदिर का ऐतिहासिक महत्व
पाताल देवी मंदिर का निर्माण चंद वंश के राजा दीप चंद (1748-1777) के शासनकाल में हुआ था। यह मंदिर शैल गांव में स्थित है और यहां के स्थानीय लोगों के बीच एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल माना जाता है। इस मंदिर में मां पाताल देवी की पूजा होती है, और यह शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध है। मंदिर का निर्माण स्थानीय स्तर पर खनन किए गए पत्थरों से किया गया है, और इसमें एक विशेष परिक्रमा पथ भी है, जो आसपास के स्तंभों और गर्भगृह को घेरे हुए है।
मंदिर की संरचना और विशेषताएं
मंदिर के शिखर के मध्य में एक उभरी हुई चट्टान पर, मंदिर के सामने पूर्व दिशा की ओर एक छोटे से मंच पर गज, सिंह और नंदी की मूर्तियां विराजमान हैं। इसके अलावा, मंदिर के नीचे गौरी कुंड नामक एक बड़ा कुंड है, जो कभी पानी से भरा रहता था, लेकिन अब यह सूख चुका है। एक समय था जब इस कुंड के पानी से चर्म रोग ठीक होते थे।
मंदिर का जीर्णोद्धार
मंदिर का संरक्षण और जीर्णोद्धार जरूरी हो गया है, क्योंकि समय के साथ इसमें कुछ टूट-फूट हो चुकी है। क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी चंद्र सिंह चौहान ने बताया कि मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए डीपीआर भेजी गई है और जल्द ही काम शुरू होने की उम्मीद है।
पाताल देवी मंदिर का धार्मिक महत्व
पाताल देवी मंदिर में मां दुर्गा के नौ रूपों को समर्पित नौ मंदिरों में से एक है। यहां आने वाले श्रद्धालुओं का विश्वास है कि इस मंदिर में मांगी गई हर इच्छा पूरी होती है। यह मंदिर न केवल स्थानीय लोगों के लिए बल्कि दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए भी एक प्रमुख आकर्षण का केंद्र है।
मंदिर के पास अन्य धार्मिक स्थल
पाताल देवी मंदिर के पास ही मां आनंदमयी आश्रम भी स्थित है, जो विशेष रूप से बंगाली समुदाय में प्रसिद्ध है। एक समय था जब बंगाल से यहां विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करने के लिए आते थे।
संरक्षक और पुजारी की परेशानियां
मंदिर के संरक्षक और पुजारी, खजान चंद पांडे जी, पुरातत्व विभाग द्वारा की जा रही उपेक्षा से नाखुश हैं। उनका कहना है कि शैल गांव के लोग उन्हें 3000 रुपये मासिक भत्ता देते हैं, जिससे वह मंदिर का संचालन करते हैं और अपना पालन-पोषण करते हैं।
मंदिर का इतिहास और निर्माण
पाताल देवी मंदिर का निर्माण चंद वंश के राजा दीप चंद (1748-1777) के शासनकाल में हुआ था। इस मंदिर का निर्माण एक बहादुर सैनिक सुमेर अधिकारी द्वारा किया गया था। बाद में गोरखों के शासनकाल में (1790-1815) इस मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ। यह मंदिर स्थानीय खनन किए गए पत्थरों से बनाया गया है और इसकी वास्तुकला अत्यंत आकर्षक है। मंदिर का शिखर, गर्भगृह और परिक्रमा मार्ग इसे ऐतिहासिक महत्व प्रदान करते हैं।
मंदिर के गर्भगृह में शक्तिपीठ है और शिखर के मध्य में एक उभरी हुई चट्टान पर गज, सिंह और नंदी की मूर्तियां स्थापित हैं। इस मंदिर की संरचना और वास्तुकला को देख कर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इसे अत्यंत सावधानी से और धार्मिक भावनाओं के साथ बनाया गया था।
मंदिर का महत्व और विश्वास
पाताल देवी मंदिर को शक्तिपीठ माना जाता है, और स्थानीय लोग यहां आकर अपनी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए पूजा करते हैं। मंदिर में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा होती है और इसे नवदुर्गा, अष्ट भैरव और पांच गणेश मंदिरों के साथ जोड़ा जाता है। मंदिर के पुजारी खजान चंद पांडे का कहना है कि यहां मांगी गई हर इच्छा पूरी होती है, और यही कारण है कि श्रद्धालु दूर-दूर से इस मंदिर के दर्शन के लिए आते हैं।
मंदिर के पास स्थित अन्य स्थल
मंदिर के पास एक प्राचीन कुंड है जिसे गौरी कुंड कहा जाता है। यह कुंड एक समय पानी से लबालब भरा रहता था, लेकिन अब यह सूख चुका है। कहते हैं कि इस कुंड के पानी से चर्म रोग ठीक हो जाते थे। इसके अलावा, मंदिर के पास स्थित मां आनंदमयी आश्रम भी बहुत प्रसिद्ध है, जो विशेषकर बंगाली समुदाय के बीच एक धार्मिक केंद्र के रूप में मान्यता प्राप्त है।
संरक्षण और जीर्णोद्धार कार्य
हालांकि पाताल देवी मंदिर ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है, इसके कुछ हिस्सों में अब टूट-फूट हो रही है। मंदिर के छत का एक हिस्सा नीचे की ओर खिसकने लगा था, जिसके कारण बरामदे में बने खंभों और झरोखों के गिरने का खतरा उत्पन्न हो गया था। इस खतरे से निपटने के लिए पुरातत्व विभाग ने लोहे के फ्रेम बनाकर मंदिर की संरचना को सुरक्षित करने का प्रयास किया है।
निष्कर्ष
पाताल देवी मंदिर न केवल एक ऐतिहासिक स्थल है, बल्कि यह श्रद्धा और आस्था का भी प्रतीक है। यह मंदिर आज भी हजारों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है और यहां आने वाले भक्तों की आस्थाएं और विश्वास इसे एक अद्वितीय स्थान प्रदान करते हैं।
पाताल देवी मंदिर के बारे में सामान्य पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
पाताल देवी मंदिर कहां स्थित है?
पाताल देवी मंदिर उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा जिले में स्थित है, जो अल्मोड़ा शहर से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर शैल गांव में स्थित है।पाताल देवी मंदिर का इतिहास क्या है?
यह मंदिर लगभग 250 साल पुराना है और चंद वंश के राजा दीप चंद द्वारा 17वीं सदी में बनवाया गया था। मंदिर में मां पाताल देवी की पूजा की जाती है और यह एक शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध है।पाताल देवी मंदिर की वास्तुकला कैसी है?
मंदिर का निर्माण स्थानीय खनन किए गए पत्थरों से हुआ है। इसमें मिर्थ रेखा-शिखर, गर्भगृह और स्तंभों के आधार पर एक प्रदक्षिणा पथ बनाया गया है। इसके शिखर पर गज, सिंह और नंदी की मूर्तियां स्थापित हैं।क्या पाताल देवी मंदिर में जाने के लिए कोई विशेष समय है?
पाताल देवी मंदिर में दर्शन के लिए आप किसी भी दिन जा सकते हैं, लेकिन खासतौर पर नवरात्रि और अन्य प्रमुख हिन्दू त्यौहारों के दौरान यहां श्रद्धालुओं की संख्या अधिक रहती है।क्या पाताल देवी मंदिर में कोई जल स्रोत है?
मंदिर के नीचे गौरी कुंड नामक एक बड़ा कुंड स्थित है, जो कभी पानी से भरा रहता था। हालांकि अब यह सूख चुका है, लेकिन पहले इसके पानी से चर्म रोग ठीक किए जाते थे।पाताल देवी मंदिर का जीर्णोद्धार क्यों किया जा रहा है?
पाताल देवी मंदिर में समय के साथ कुछ टूट-फूट हो गई है, और इसके जीर्णोद्धार के लिए पुरातत्व विभाग द्वारा डीपीआर भेजी गई है। जल्द ही इस पर काम शुरू होने की उम्मीद है।क्या पाताल देवी मंदिर के पास कोई अन्य धार्मिक स्थल हैं?
हां, पाताल देवी मंदिर के पास ही मां आनंदमयी आश्रम स्थित है, जो बंगाली समुदाय में प्रसिद्ध है और यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए एक अन्य महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है।क्या पाताल देवी मंदिर में श्रद्धालुओं का आना और पूजा करने का कोई विशेष कारण है?
पाताल देवी मंदिर में श्रद्धालुओं का मानना है कि यहां मांगी गई हर इच्छा पूरी होती है, यही कारण है कि लोग दूर-दूर से इस मंदिर में दर्शन करने आते हैं।क्या पाताल देवी मंदिर में कोई विशेष मूर्तियां हैं?
जी हां, पाताल देवी मंदिर में कई दुर्लभ मूर्तियां हैं, जिनमें प्रमुख रूप से गज, सिंह और नंदी की मूर्तियां शामिल हैं, जो मंदिर के शिखर पर स्थापित हैं।पाताल देवी मंदिर के पुजारी का क्या कहना है?
पाताल देवी मंदिर के पुजारी, खजान चंद पांडे जी, का कहना है कि मंदिर का संचालन शैल गांव के लोग 3000 रुपये मासिक भत्ता देते हैं, जिससे वह मंदिर का संचालन करते हैं और अपना जीवन यापन करते हैं।
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