महिषासुर का वध करने वाला त्रिशूल: उत्तराखंड के पौराणिक शक्ति मंदिर का अद्भुत स्तंभ (The amazing pillar of the mythical power temple in Uttarakhand.)

महिषासुर का वध करने वाला त्रिशूल: उत्तराखंड के पौराणिक शक्ति मंदिर का अद्भुत स्तंभ

भूमिका

शारदीय नवरात्रि के समय, जहां देशभर में देवी मां की पूजा हो रही है, वहीं उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के शक्ति मंदिर में एक अनोखा त्रिशूल श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बनता है। यह त्रिशूल केवल एक उंगली से स्पर्श करने पर हिल जाता है, लेकिन इसे जोर से हिलाने की कोशिश करें तो इसे कोई भी हिला नहीं सकता। इस ब्लॉग में हम जानेंगे शक्ति मंदिर और इस अद्भुत त्रिशूल की कथा।

उत्तरकाशी का प्राचीन शक्ति मंदिर

उत्तरकाशी के काशी विश्वनाथ मंदिर के निकट स्थित यह शक्ति मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र है। यहाँ स्थापित त्रिशूल का धार्मिक महत्व बहुत अधिक है। नवरात्रि के दिनों में यहाँ दूर-दूर से भक्त माता की पूजा और दर्शन के लिए आते हैं। यह कहा जाता है कि यह त्रिशूल स्वर्ग लोक से प्रकट हुआ था और इसमें मां दुर्गा की शक्ति समाई हुई है।

त्रिशूल की अनोखी विशेषता

इस त्रिशूल की खासियत यह है कि यह एक उंगली से छूने मात्र से हिलने लगता है, लेकिन इसे बलपूर्वक हिलाने से कोई भी इसे नहीं हिला सकता। यह शक्ति स्तंभ छह मीटर ऊँचा और लगभग 90 सेंटीमीटर की परिधि वाला है। मान्यता है कि यह त्रिशूल स्वर्ग से देवताओं द्वारा भेजा गया था और इसमें ऐसी शक्ति है जो आज तक किसी वैज्ञानिक द्वारा समझी नहीं जा सकी।

त्रिशूल की पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, मां दुर्गा ने इसी त्रिशूल का उपयोग करके महिषासुर, बाणासुर, शंभु और निशुंभ जैसे असुरों का वध किया था। यह त्रिशूल पाताल लोक तक समाया हुआ है और इसे देवताओं ने स्वर्ग से पृथ्वी लोक पर भेजा था। इसे किस धातु से बनाया गया है, यह अभी तक रहस्य बना हुआ है।

13वीं शताब्दी का ऐतिहासिक महत्व

इस शक्ति स्तंभ के गर्भ गृह में स्थित गोलाकार कलश अष्टधातु का बना हुआ है और कहा जाता है कि इसे 13वीं शताब्दी में राजा गणेश ने स्थापित किया था। राजा गणेश ने गंगोत्री के निकट सुमेरू पर्वत पर तपस्या करने से पहले इस शक्ति स्तंभ को स्थापित किया था। स्कंद पुराण में भी इसका उल्लेख मिलता है।

श्रद्धालुओं का आकर्षण और आस्था

नवरात्रि और दशहरे के दौरान शक्ति मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना होती है। हर वर्ष, हजारों श्रद्धालु यहां अपनी मन्नतें लेकर आते हैं और मां शक्ति के दर्शन मात्र से स्वयं को धन्य मानते हैं। यह त्रिशूल, जो मां दुर्गा की अद्वितीय शक्ति का प्रतीक है, साल भर भक्तों का स्वागत करता है और आस्था का प्रतीक बना हुआ है।

समापन

उत्तराखंड के इस प्राचीन शक्ति मंदिर का त्रिशूल मां दुर्गा की अपार शक्ति और आस्था का प्रतीक है। यह न केवल श्रद्धालुओं की आस्था को मजबूत करता है बल्कि उनके जीवन में शक्ति और शांति का संचार करता है। यदि आप भी नवरात्रि के समय उत्तरकाशी की यात्रा करते हैं, तो इस शक्ति स्तंभ के दर्शन अवश्य करें और मां दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त करें।

FAQ: महिषासुर का वध करने वाला त्रिशूल: उत्तराखंड के पौराणिक शक्ति मंदिर का अद्भुत स्तंभ

प्रश्न 1: उत्तरकाशी का शक्ति मंदिर कहाँ स्थित है?
उत्तरकाशी का शक्ति मंदिर काशी विश्वनाथ मंदिर के निकट स्थित है। यह श्रद्धालुओं के लिए एक प्रमुख आस्था केंद्र है।

प्रश्न 2: त्रिशूल की विशेषता क्या है?
यह त्रिशूल एक उंगली से छूने पर हिल जाता है, लेकिन इसे जोर से हिलाने पर कोई भी नहीं हिला सकता। इसकी ऊँचाई लगभग 6 मीटर और परिधि 90 सेंटीमीटर है।

प्रश्न 3: त्रिशूल का धार्मिक महत्व क्या है?
यह त्रिशूल मां दुर्गा की शक्ति का प्रतीक है और इसे स्वर्ग लोक से प्रकट माना जाता है। इसे महिषासुर और अन्य असुरों के वध में प्रयोग किया गया था।

प्रश्न 4: इस त्रिशूल का ऐतिहासिक महत्व क्या है?
इस शक्ति स्तंभ को 13वीं शताब्दी में राजा गणेश द्वारा स्थापित किया गया था। इसका उल्लेख स्कंद पुराण में भी मिलता है।

प्रश्न 5: शक्ति मंदिर में कब विशेष पूजा होती है?
नवरात्रि और दशहरे के दौरान यहां विशेष पूजा-अर्चना होती है, जिसमें हजारों श्रद्धालु अपनी मन्नतें लेकर आते हैं।

प्रश्न 6: क्या मैं इस त्रिशूल के दर्शन कर सकता हूँ?
हाँ, यदि आप नवरात्रि के समय उत्तरकाशी की यात्रा करते हैं, तो आप इस शक्ति स्तंभ के दर्शन अवश्य करें और मां दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त करें।

प्रश्न 7: त्रिशूल किस धातु से बना है?
यह ज्ञात नहीं है कि त्रिशूल किस धातु से बना है, और यह एक रहस्य बना हुआ है।

प्रश्न 8: शक्ति मंदिर का आकर्षण क्या है?
यह त्रिशूल मां दुर्गा की अद्वितीय शक्ति का प्रतीक है, जो श्रद्धालुओं को आस्था और शक्ति का अनुभव कराता है।

टिप्पणियाँ