बरसुंड महादेव - भगवान शिव का अलौकिक मंदिर
उत्तराखंड के पौड़ी जिले के पोखड़ा ब्लॉक में स्थित बरसुंड महादेव मंदिर (Barsund Mahadev Mandir) एक अद्वितीय और अलौकिक तीर्थ स्थल है, जो पोखड़ा से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां तक पहुंचने के लिए पोखड़ा से होते हुए कुञ्जखाल तक का सफर तय करना होता है। कुंजखाल से लगभग 2 किलोमीटर की चढ़ाई के बाद भक्तजन बरसुंड महादेव मंदिर तक पहुंच सकते हैं। यहां आने वाले भक्तों के लिए क्षेत्रवासियों ने विश्राम गृह और पूजा-अनुष्ठान के लिए मंदिर के पास कमरे भी उपलब्ध कराए हैं।
मंदिर की विशेषता और रहस्यमयी कुंड
चारों ओर पेड़ों से घिरे इस मंदिर में पहुंचते ही अद्भुत शांति का अनुभव होता है। मंदिर के प्रवेश पर स्थित एक कुंड का जल अपने विशेष गुण के लिए प्रसिद्ध है। इस कुंड का जल हल्का दूधिया रंग लिए होता है, और स्थानीय मान्यता के अनुसार, पहले इसका रंग बिल्कुल दूध की तरह सफेद हुआ करता था। प्राकृतिक परिवर्तन के कारण अब इसका रंग हल्का हो गया है, परंतु इसकी महक आज भी दूध जैसी ही है। यह कुंड एक अन्य रहस्य भी समेटे हुए है: जैसे ही इसका जल उपयोग में लाया जाता है, कुछ समय बाद अपने आप फिर से भर जाता है। अब तक कोई भी यह पता नहीं लगा सका कि इस कुंड में जल का स्रोत कहां है और इसका रंग दूधिया क्यों है।
बरसुंड महादेव की पौराणिक कथा
बरसुंड महादेव के बारे में एक लोकप्रिय कथा है। कहते हैं कि कई वर्षों पूर्व, जब आसपास के गांवों की गायें इस स्थान पर चरने आती थीं, तो भगवान शिव एक ग्वाले का रूप धारण कर यहां आते और सारी गायों का दूध पी जाते। इस कारण गांव की गायें दूध नहीं दे पाती थीं। लोगों ने यह बात ध्यान देने के लिए गयों का पीछा किया और देखा कि एक ग्वाला गायों का दूध पी रहा था। गुस्से में आकर उन्होंने उस ग्वाले पर कुल्हाड़ी से वार कर दिया, जिससे उसका सिर दो भागों में बंट गया। इसके बाद, ग्वाले ने एक पत्थर का रूप धारण कर लिया, और यह पत्थर आज भी मंदिर में स्थित है।
इस घटना के बाद, गांव के लोगों पर बरसुंड देव का दोष लग गया, और गांव की फसलें सूखने लगीं। एक पुजारी के स्वप्न में बरसुंड देव प्रकट हुए और उन्हें बताया कि उस ग्वाले के रूप में वही थे, और गांव वालों ने उनके साथ अन्याय किया है। देव ने बताया कि यदि दोष से मुक्ति चाहते हैं, तो उस स्थान पर एक मंदिर का निर्माण करें और किसी भी शुभ कार्य से पहले उन्हें दूध चढ़ाएं। तभी गांव में सुख-समृद्धि वापस आएगी।
मंदिर के अद्भुत चमत्कार और विशेषताएं
इस मंदिर से जुड़े कई चमत्कार और रहस्य हैं। भक्तजन बताते हैं कि मंदिर के द्वार बंद होने के बाद भी मंदिर में एक घंटी अपने आप बजती है। एक अन्य चमत्कार यह है कि जो शिवलिंग पहले कुल्हाड़ी के वार से दो हिस्सों में बंट गया था, वह धीरे-धीरे खुद से जुड़ने लगा है। अब उस शिवलिंग पर सिर्फ एक हल्का निशान बचा है, जो समय के साथ भरता जा रहा है। यह भी मान्यता है कि इस मंदिर में घनसाली जाति के लोगों का प्रवेश वर्जित है, क्योंकि इसी जाति के किसी व्यक्ति ने शिवलिंग पर वार किया था।
संतान प्राप्ति और मनोकामना पूर्ण होने का स्थान
इस मंदिर में संतान प्राप्ति के लिए विशेष मान्यता है। भक्तजन जो भी मनोकामना लेकर यहां आते हैं, उनकी इच्छाएं पूर्ण होती हैं। मनोकामना पूरी होने पर वे अपने नाम की एक घंटी मंदिर में चढ़ाते हैं, और आज मंदिर में लगी हुई घंटियों की संख्या इस बात की साक्षी है कि बरसुंड महादेव ने कितने भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण की हैं।
चारो और से पेड़ो से घिरे इस मंदिर में पहुंचते ही असीम शांति का अनुभव होता है। मंदिर में पहुंचते ही सबसे पहले मंदिर के सामने स्थित कुंड के जल से स्नान किया जाता है। क्योंकि यह मंदिर अपने साथ बहुत सारे रहस्य लिए है उनमें से एक रहस्य और विशेषता इस कुंड की भी है, और वह विशेषता यह है कि इस कुंड का जल बेरंग नहीं बल्कि दूधिया रंग का होता है।
आस पास गांव के लोगों से बात करके पता चला कि बहुत सालों पहले यह पानी पूरा का पूरा दूध के रंग जैसा सफ़ेद था और साथ ही इस से दूध की महक भी आती थी। लेकिन अब, प्राकृतिक छेड़ छाड़ के कारण शायद इस का रंग हल्का हो गया है लेकिन पानी से दूध की महक आज भी ली जा सकती है। जैसे जैसे इस पानी को उपयोग में लाया जाता है तो इसका स्तर कम होता है लेकिन कुछ ही समय में ये पुनः भर जाता है। लेकिन कोई भी आज तक ये पता नहीं लगा पाया कि इस कुंड में जल कहां से आता है और ये जल दूधिया क्यों होता है?
बरसुंड महादेव की कहानी
किवदंतियों के अनुसार बहुत सालो पहले इस जगह पर (जहां पर वर्तमान में मंदिर स्थित है) पर आस पास गांवो के लोगो की गाय चरने आया करती थी। तो बरसुंड महादेव (barsund Mahadev) एक ग्वाले का रूप धर के आते ओर सारी गायो का दूध पी जाते है। क्योंकि दूध तो देव पी जाया करते थे। तो गाय अपने घरों में दूध नहीं दे पाती थी क्षेत्रिय जन समझ नहीं पा रहे थे कि ऐसा क्यों हो रहा है। गाय चारा भी पूरा चर रही है सेहत से भी अच्छी है फिर सारी गाय दूध क्यों नहीं दे रही है।
एक दिन एक विशेष जाती(घनसाली जाती) के लोगो ने गयो का पीछा किया और चुपके से देख लिया की एक ग्वाला गाय का दूध पी रहा है। आक्रोश वष उनमें से एक आदमी ने ग्वाले के उपर कुल्हाड़ी से वार कर दिया और ग्वाले का सर दो हिस्सो में बंट गया। ग्वाले ने उसी समय एक पत्थर का रूप धर लिया जो कि ग्वाले के सिर की भांति ही दो हिस्सो में बंट गया। इसके बाद बर्सुंड देव का दोष क्षेत्रिय जनता पर लग गया।
यानी कि गांव की फसलें सूखने लगी, कोई शुभ कार्य सफल नहीं हो पाए तो लोग फिर चिंता मे आ गए की ऐसा क्यों हो रहा है, फिर एक दिन बर्सुंड देव गांव के किसी पुजारी के सपने में आए ओर उन्हें बताया कि वो ग्वाला मै ही था और तुमने मेरे साथ ऐसा व्याहवर किया। अगर खुद पर लगे दोष को हटाना चाहते हो, लोगो का कल्याण चाहते हो तो जिस जगह पर मैंने लिंग (पत्थर)का रूप धरा है वहां पर मेरे मंदिर की स्थापना करो ओर साथ ही आज के बाद इस क्षेत्र में कोई भी शुभ कार्य जैसे शादी, किसी की नई गाय आयी हो या किसी की गाय ने बच्चे को जन्म दिया हो तो उनका दूध सबसे पहले मुझे चढेगा इसी के बाद तुम्हारे कार्य सफल होंगे वरना कोई भी कार्य सफल नहीं हो पाएगा।
शादी में अर्चन आ जाएगी गाय दूध देना बंद कर देगी। इसके बाद अगले ही दिन पुजारी ने यह बात गांव वालो को बताई और गांव वालो ने उसी दिन से मंदिर का निर्माण शुरू कर दिया और देव के कहे अनुसार किसी भी शुभ कार्य से पहले दूध और दही बर्सुंड देव को चढाने लगे और उसके बाद आस पास की गांव में अब पहले से भी ज्यादा फसल होने लगी गाय ज्यादा दूध देने लगी। और यहां आस पास गांव के लोग आज भी इस बात की साक्षी है कि यदि किसी ने शुभ कार्य से पहले या नई गाय का दूध भगवान को नहीं चढाया तो उनका कार्य सफल नहीं होता, गाय दूध देना बंद कर देती है या गाय भैंस खुद ही अपने खूंटे से गायब हो जाती है।
जैसा कि हमने बताया की इस मंदिर के साथ बहुत से रहस्य जुड़े हुए है उनमें से एक यह भी है जब सारे भक्तजन मंदिर के द्वार तक वापस लौट जाते है तब मंदिर में अपने आप एक घंटी बजती है। इस जगह पर भगवान होने का सबसे बड़ी शाक्षी यह बात है कि जो लिंग तब कुल्हाड़ी के वार के कारण दो भागों में बंट गया था को धीरे धीरे भरता जा रहा है यानी पत्थर जैसी निर्जीव वस्तु जो दो भागों में बंटी हुई थी आज पूरी तरह से भर चुकी है ओर अब सिर्फ लिंग के किनारे हल्का सा निशान शेष है और वो भी समय के साथ भर जाएगा।
इस मंदिर में घनसाली यानी वह जाती जिनके लोगो ने ग्वाले पर कुल्हाड़ी से वार किया था उन जाती के लोगो का आना वर्जित है।
हर मनोकामना होती है पूरी
कहते है जो भी भक्त सचे मन से यहां आता है उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती है। साथ ही भगवान बरसुंड महादेव संतान प्राप्ति के लिए भी विशेष माने गए है इस बात का अंदाजा मंदिर प्रांगण में लगी घंटियों से लगाया जा सकता कि बरसुंड देवता (Barsund Mahadev) कितने भक्तजनों के मनोकामनाएं पूरी कर चुके होंगे क्योंकी मनोकामना सफल होने के बाद सभी भक्त अपने नाम लिखी हुई एक घंटी यहां पर चढाते है
निष्कर्ष
बरसुंड महादेव मंदिर अपने रहस्यमयी कुंड, अलौकिक शक्ति और भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर उत्तराखंड की आस्था और संस्कृति का प्रतीक है, और यहां का हर अनुभव भक्ति और श्रद्धा से भरा हुआ है।
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