बसंती बिष्ट: उत्तराखंड की पहली महिला जागर गायिका (Basanti Bisht: Uttarakhand's first female Jagar singer)
बसंती बिष्ट: उत्तराखंड की पहली महिला जागर गायिका
बसंती बिष्ट उत्तराखंड की प्रसिद्ध लोकगायिका हैं, जो विशेष रूप से मां भगवती नंदा के जागरों के गायन के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने अपने जीवन में कई सामाजिक और सांस्कृतिक बाधाओं को पार करते हुए अपनी पहचान बनाई है। आइए उनके जीवन और योगदान पर एक नज़र डालते हैं।
प्रारंभिक जीवन और संघर्ष
बसंती बिष्ट का जन्म 1953 में उत्तराखंड के चमोली जिले के लुवाणी गांव, देवाल तहसील में हुआ। उत्तराखंड के पारंपरिक समाज में महिलाओं के मंच पर जागर गाने की कोई परंपरा नहीं थी। बचपन में उनकी मां ने उन्हें जागर सिखाया, लेकिन समाज की वर्जनाओं के कारण उन्हें प्रोत्साहन नहीं मिला।
शादी के बाद, उनके पति रणजीत सिंह ने उनके अंदर छिपी संगीत प्रतिभा को पहचाना और उन्हें विधिवत संगीत सीखने के लिए प्रोत्साहित किया। हालांकि, समाज इतनी जल्दी इस बदलाव के लिए तैयार नहीं था। इसके बावजूद उन्होंने हारमोनियम सीखा और अपनी संगीत यात्रा की शुरुआत की।
उत्तराखंड आंदोलन और गीतों के माध्यम से जागरूकता
उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान, बसंती बिष्ट ने आंदोलन से जुड़ी पीड़ाओं को अपने गीतों में पिरोया। उन्होंने राज्य आंदोलन के मंचों पर गीत गाकर लोगों को प्रोत्साहित किया और इस तरह उन्होंने मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
40 वर्ष की आयु में, उन्होंने पहली बार देहरादून के परेड ग्राउंड में गढ़वाल सभा के मंच पर मां नंदा के जागरों की एकल प्रस्तुति दी। उनकी मखमली आवाज और जागरों ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया, और तालियों की गड़गड़ाहट ने उनके उत्साह को नई ऊर्जा दी।
संगीत में योगदान
बसंती बिष्ट ने मां नंदा के जागरों को अपनी पुस्तक "नंदा के जागर- सुफल ह्वे जाया तुम्हारी जात्रा" में संरक्षित किया है। उनके गीत और जागर उत्तराखंड की संस्कृति और परंपराओं को जीवंत बनाए रखने का महत्वपूर्ण माध्यम बने हुए हैं।
पुरस्कार और सम्मान
बसंती बिष्ट को उनके अद्वितीय योगदान के लिए कई राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया:
- पद्मश्री (2017): भारत सरकार द्वारा दिया गया चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान।
- राष्ट्रीय मातोश्री देवी अहिल्या सम्मान (2016)
- तीलू रौतेली नारी शक्ति सम्मान
बसंती बिष्ट का प्रभाव
बसंती बिष्ट उत्तराखंड की पहली महिला जागर गायिका हैं, जिन्होंने अपनी कला से न केवल राज्य बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई। उनकी प्रेरणादायक यात्रा दिखाती है कि कैसे दृढ़ संकल्प और प्रतिभा के सहारे सामाजिक वर्जनाओं को तोड़ा जा सकता है।
निष्कर्ष
बसंती बिष्ट का जीवन संघर्ष, समर्पण, और सफलता की मिसाल है। उन्होंने उत्तराखंड के पारंपरिक जागरों को नई पहचान दिलाई और महिला सशक्तिकरण का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया। उनका योगदान उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने में महत्वपूर्ण है।
“जागर के सुरों में उत्तराखंड की आत्मा गूंजती है, और बसंती बिष्ट ने इस आत्मा को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है।”
बसंती बिष्ट: Frequently Asked Questions (FQCs)
1. बसंती बिष्ट कौन हैं?
बसंती बिष्ट एक प्रसिद्ध उत्तराखंडी लोक गायिका हैं, जो विशेष रूप से मां नंदा के जागर गायन के लिए जानी जाती हैं। वह उत्तराखंड की पहली महिला हैं जिन्होंने जागर गायन को पेशेवर रूप से अपनाया।
2. बसंती बिष्ट का जन्म कब हुआ था?
बसंती बिष्ट का जन्म 1953 में उत्तराखंड के चमोली जिले के लुवाणी गांव, देवाल तहसील में हुआ था।
3. बसंती बिष्ट को कौन सा प्रमुख पुरस्कार मिला है?
बसंती बिष्ट को 2017 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया। इसके अलावा, उन्हें राष्ट्रीय मातोश्री देवी अहिल्या सम्मान (2016) और तीलू रौतेली नारी शक्ति सम्मान भी प्राप्त हुआ है।
4. बसंती बिष्ट को संगीत में कैसे रुचि हुई?
बसंती बिष्ट को संगीत में रुचि बचपन से थी, लेकिन उन्होंने अपनी प्रतिभा को उजागर करने का साहस शादी के बाद किया। उनके पति ने उन्हें संगीत सीखने के लिए प्रेरित किया और इसके बाद उन्होंने हारमोनियम बजाना सीखा।
5. बसंती बिष्ट का प्रमुख योगदान क्या है?
बसंती बिष्ट ने उत्तराखंडी लोक संगीत, विशेषकर मां नंदा के जागरों को बढ़ावा दिया। उन्होंने अपने गीतों के माध्यम से उत्तराखंड राज्य आंदोलन में भी योगदान दिया और जागरों के जरिए लोगों को प्रेरित किया।
6. क्या बसंती बिष्ट ने कोई पुस्तक लिखी है?
हां, बसंती बिष्ट ने "नंदा के जागर- सुफल ह्वे जाया तुम्हारी जात्रा" नामक पुस्तक लिखी है, जिसमें उन्होंने मां नंदा के जागरों को संजोया है।
7. बसंती बिष्ट को अपने करियर में किस मंच पर पहली बार प्रस्तुति देने का अवसर मिला?
बसंती बिष्ट को 40 वर्ष की आयु में देहरादून के परेड ग्राउंड में गढ़वाल सभा के मंच पर पहली बार जागरों की एकल प्रस्तुति देने का अवसर मिला।
8. बसंती बिष्ट का संगीत के क्षेत्र में क्या योगदान है?
बसंती बिष्ट ने उत्तराखंडी लोक संगीत को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। उनके जागर न केवल उत्तराखंड की संस्कृति को संरक्षित करते हैं, बल्कि वे एक सांस्कृतिक आंदोलन का हिस्सा भी बने।
9. बसंती बिष्ट के बारे में समाज की प्रतिक्रिया कैसी थी?
बसंती बिष्ट को शुरू में समाज से प्रोत्साहन नहीं मिला क्योंकि उत्तराखंड के पारंपरिक समाज में महिलाओं के लिए जागर गाना एक वर्जित कार्य माना जाता था। लेकिन उन्होंने अपने संघर्ष से यह साबित किया कि कला और संगीत के लिए कोई भी बाधा नहीं होनी चाहिए।
10. बसंती बिष्ट को लोक संगीत के क्षेत्र में कौन से प्रमुख सम्मान प्राप्त हुए हैं?
बसंती बिष्ट को पद्मश्री (2017), राष्ट्रीय मातोश्री देवी अहिल्या सम्मान (2016) और तीलू रौतेली नारी शक्ति सम्मान जैसे प्रमुख सम्मान प्राप्त हुए हैं।
टिप्पणियाँ