भीष्म कुकरेती: उत्तराखंड के प्रसिद्ध लेखक और इतिहासकार (Bhishma Kukreti: Famous writer and historian of Uttarakhand)
भीष्म कुकरेती: उत्तराखंड के प्रसिद्ध लेखक और इतिहासकार
परिचय
भीष्म कुकरेती उत्तराखंड के एक प्रतिष्ठित लेखक, इतिहासकार और साहित्यकार हैं। वे गढ़वाली भाषा और साहित्य को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। उनका जन्म 2 अप्रैल 1952 को गढ़वाल के जसपुर गाँव में हुआ था। बचपन से ही वे ज्ञान के प्रति अत्यधिक रुचि रखते थे, जिससे उनके लेखन में गहराई और विविधता आई है।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
भीष्म कुकरेती जी का जन्म श्री कलीराम कुकरेती और श्रीमती दमयंती डबराल कुकरेती के घर हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा राजकीय प्राथमिक विद्यालय टकांण (बड़ेथ ढांगू) से हुई। इसके बाद उन्होंने माध्यमिक शिक्षा के लिए सिलोगी विद्यालय में एडमिशन लिया, और उच्च शिक्षा देहरादून के लक्ष्मण विद्यालय से प्राप्त की। वनस्पति विज्ञान में स्नातकोत्तर तक की शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत उनका सपना एक प्रोफेसर बनने का था, लेकिन नियति ने उन्हें लेखन के क्षेत्र में प्रतिष्ठित किया।
करियर और लेखन यात्रा
अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद भीष्म कुकरेती मुंबई गए, जहाँ वे सेल्स और मार्केटिंग के क्षेत्र में कार्यरत रहे। उन्होंने इस दौरान 18 से अधिक देशों का भ्रमण किया और विभिन्न सभ्यताओं का अध्ययन किया। साहित्य के प्रति उनके लगाव ने उन्हें लेखन में सक्रिय कर दिया। उनका पहला लेख "काली चाय" हिलांस पत्रिका में प्रकाशित हुआ। इसके बाद "शिबू का घर" जैसे लेखों ने भी लोकप्रियता पाई।
साहित्यिक योगदान
भीष्म कुकरेती जी ने गढ़वाली और हिंदी में अनेक लेख, कहानियाँ और समीक्षाएँ लिखी हैं। उन्होंने गढ़वाली भाषा में साहित्य समीक्षा को बढ़ावा दिया और अपने लेखन से उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने का काम किया। वे डॉ. शिवप्रसाद डबराल जैसे विद्वानों को अपने प्रेरणा स्रोत मानते हैं और उनका मानना है कि उत्तराखंड की संस्कृति और इतिहास को संरक्षित करने की आवश्यकता है।
काष्ट कला और भवन संरचना पर लेखन
भीष्म कुकरेती जी ने उत्तराखंड की पारंपरिक काष्ठ कला और भवन संरचना पर भी महत्वपूर्ण लेख लिखे हैं। उन्होंने गढ़वाल और कुमाऊँ क्षेत्र के भवनों के ढांचे पर शोध किया और लगभग 3000 से अधिक चित्र संग्रहित किए, जिनसे उन्हें उत्तराखंड की पारंपरिक भवन संरचना के बारे में गहन जानकारी प्राप्त हुई।
निष्कर्ष
भीष्म कुकरेती जी का लेखन उत्तराखंड के इतिहास और संस्कृति को संजोए रखने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है। उनकी कृतियाँ नए लेखकों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं और उनका कार्य सदैव स्मरणीय रहेगा। उनकी लेखनी न केवल गढ़वाली भाषा और साहित्य को जीवित रखती है, बल्कि नई पीढ़ी को भी उत्तराखंड के बारे में जानकारी प्रदान करती है।
भीष्म कुकरेती: उत्तराखंड के प्रसिद्ध लेखक और इतिहासकार - FQCs (Frequent Questions and Concerns)
1. भीष्म कुकरेती कौन हैं?
भीष्म कुकरेती उत्तराखंड के एक प्रतिष्ठित लेखक, इतिहासकार और साहित्यकार हैं, जिन्होंने गढ़वाली भाषा, साहित्य, और संस्कृति को संरक्षित और प्रचारित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
2. भीष्म कुकरेती का जन्म कब और कहाँ हुआ?
भीष्म कुकरेती का जन्म 2 अप्रैल 1952 को गढ़वाल के जसपुर गाँव में हुआ।
3. भीष्म कुकरेती ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कहाँ से प्राप्त की?
उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा राजकीय प्राथमिक विद्यालय टकांण (बड़ेथ ढांगू) से की और उच्च शिक्षा देहरादून के लक्ष्मण विद्यालय से पूरी की।
4. क्या भीष्म कुकरेती ने लेखन के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी कार्य किया है?
जी हाँ, भीष्म कुकरेती ने सेल्स और मार्केटिंग में भी काम किया और 18 से अधिक देशों का भ्रमण कर विभिन्न सभ्यताओं का अध्ययन किया।
5. भीष्म कुकरेती का पहला लेख कौन सा था और कहाँ प्रकाशित हुआ?
उनका पहला लेख "काली चाय" हिलांस पत्रिका में प्रकाशित हुआ।
6. भीष्म कुकरेती की प्रमुख साहित्यिक उपलब्धियाँ क्या हैं?
उन्होंने गढ़वाली और हिंदी में अनेक लेख, कहानियाँ, और समीक्षाएँ लिखीं। साथ ही, गढ़वाली साहित्य समीक्षा को भी बढ़ावा दिया।
7. भीष्म कुकरेती ने काष्ठ कला और भवन संरचना पर क्या कार्य किया है?
उन्होंने गढ़वाल और कुमाऊँ क्षेत्र की पारंपरिक काष्ठ कला और भवन संरचना पर शोध किया और 3000 से अधिक चित्र संग्रहित किए।
8. भीष्म कुकरेती के लेखन में मुख्य प्रेरणा कौन थे?
वे डॉ. शिवप्रसाद डबराल जैसे विद्वानों को अपना प्रेरणा स्रोत मानते हैं।
9. भीष्म कुकरेती का योगदान उत्तराखंड के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?
उनकी लेखनी उत्तराखंड की संस्कृति, इतिहास, और साहित्य को संरक्षित करने और नई पीढ़ी तक पहुँचाने में सहायक है।
10. भीष्म कुकरेती के लेखन से युवाओं को क्या प्रेरणा मिलती है?
उनकी कहानी यह सिखाती है कि कैसे मेहनत, लगन, और जिज्ञासा के बल पर अपनी संस्कृति और साहित्य को संरक्षित कर सफलता पाई जा सकती है।
11. भीष्म कुकरेती के लेखन का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उनका उद्देश्य उत्तराखंड की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षित करना और उसे नई पीढ़ी तक पहुँचाना है।
12. भीष्म कुकरेती ने किन क्षेत्रों में शोध किया है?
उन्होंने गढ़वाल और कुमाऊँ की काष्ठ कला, भवन संरचना, और पारंपरिक शैली पर गहन शोध किया है।
13. भीष्म कुकरेती की कहानी उत्तराखंड के लेखकों को कैसे प्रेरित करती है?
उनकी लेखनी दिखाती है कि कैसे गहराई और समर्पण से अपने इतिहास और संस्कृति को जीवित रखा जा सकता है।
14. भीष्म कुकरेती का उत्तराखंड की नई पीढ़ी के लिए संदेश क्या है?
उनका संदेश है कि अपनी जड़ों और संस्कृति से जुड़े रहना और इसे संरक्षित करना हर नागरिक का कर्तव्य है।
15. भीष्म कुकरेती का लेखन क्यों स्मरणीय है?
उनकी कृतियाँ उत्तराखंड की विरासत, इतिहास, और गढ़वाली भाषा को संरक्षित करने के साथ-साथ साहित्यिक जगत में अमूल्य योगदान देती हैं।
टिप्पणियाँ