उत्तरकाशी में दुर्योधन और कर्ण के मंदिर: महाभारत के खलनायकों की आराधना (Temples of Duryodhana and Karna in Uttarkashi)
उत्तरकाशी में दुर्योधन और कर्ण के मंदिर: महाभारत के खलनायकों की आराधना
उत्तराखंड, जिसे देवभूमि कहा जाता है, न केवल देवी-देवताओं की पूजा के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां कुछ ऐसे चरित्रों की भी आराधना की जाती है, जिन्हें सामान्यतः महाभारत के "खलनायक" माना जाता है। उत्तरकाशी जिले में दुर्योधन और कर्ण के मंदिर स्थित हैं, जहां इनकी पूजा की जाती है। इन मंदिरों की अनोखी कहानी, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और स्थानीय मान्यताएं आज भी लोगों को आकर्षित करती हैं।
दुर्योधन का मंदिर (सौर गांव)
कर्ण का मंदिर (सारनौल गांव)
भुब्रूवाहन की कथा और इन मंदिरों का संबंध
सौर और सारनौल की भूमि महान योद्धा भुब्रूवाहन से जुड़ी है। भुब्रूवाहन, जो पाताल लोक का राजा था, महाभारत के युद्ध में कौरवों का साथ देना चाहता था। भगवान कृष्ण को आशंका थी कि वह अर्जुन को हरा सकता है, इसलिए उन्होंने चालाकी से उसे युद्ध से दूर रखा।
कृष्ण ने भुब्रूवाहन को एक चुनौती दी कि वह एक ही तीर से पेड़ के सभी पत्तों को छेदे। कृष्ण ने एक पत्ता छिपा लिया, लेकिन भुब्रूवाहन का तीर पत्ते को भी छेदता हुआ उनके पैर तक पहुंचा। इस पर कृष्ण ने उसे युद्ध से निष्पक्ष रहने के लिए राजी कर लिया।
जब भुब्रूवाहन ने युद्ध देखने की इच्छा जताई, तो कृष्ण ने उसका सिर काटकर एक पेड़ पर टांग दिया। मान्यता है कि वह पेड़ आज भी यहां स्थित है। स्थानीय मान्यता के अनुसार, भुब्रूवाहन के आंसुओं से ही तमस (टोंस) नदी बनी, जिसका पानी आज भी कोई नहीं पीता।
स्थानीय मान्यता
- दुर्योधन और कर्ण: भुब्रूवाहन के प्रशंसक थे। उनकी वीरता और उनके प्रति सम्मान के चलते सौर और सारनौल गांवों के लोगों ने उनके मंदिर बनाए।
- क्षेत्रपाल देवता: यहां के लोग उन्हें अपने क्षेत्र के रक्षक के रूप में मानते हैं और विशेष पूजा-अर्चना करते हैं।
मंदिरों तक कैसे पहुंचें?
दुर्योधन मंदिर (सौर गांव)
- निकटतम स्थान: देहरादून से 95 किमी, चकराता से 69 किमी।
- रास्ता: नेतवार गांव से 12 किमी 'हर की दून' रोड।
कर्ण मंदिर (सारनौल गांव)
- निकटतम स्थान: नेतवार से डेढ़ मील की चढ़ाई।
- विशेषता: यह गांव शांति और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है।
अद्वितीय धार्मिक महत्व
उत्तराखंड में दुर्योधन और कर्ण के मंदिर यह साबित करते हैं कि महाभारत के "खलनायक" भी स्थानीय समुदाय के लिए पूजनीय हैं। यह क्षेत्र केवल धार्मिक महत्व ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक विविधता और मान्यताओं के लिए भी जाना जाता है।
यहां की लोककथाएं, परंपराएं और मंदिरों की स्थापना की कहानियां उत्तराखंड की अनूठी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत को दर्शाती हैं।
निष्कर्ष
उत्तरकाशी के सौर और सारनौल गांव में स्थित दुर्योधन और कर्ण के मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक हैं, बल्कि यह भी बताते हैं कि इतिहास और पौराणिक कथाओं को हर व्यक्ति अपने दृष्टिकोण से देखता है। यहां की भूमि पौराणिक योद्धाओं की वीरता और मानवीय गुणों का सम्मान करती है, जो इसे देवभूमि से भी अधिक अनूठा बनाती है।
टिप्पणियाँ