गोल्ज्यू मन्दिर: अल्मोड़ा, उत्तराखंड (Golju Temple: Almora, Uttarakhand)

गोल्ज्यू मन्दिर: अल्मोड़ा, उत्तराखंड

गोल्ज्यू मन्दिर, जो चितई, अल्मोड़ा में स्थित है, उत्तराखंड के प्रसिद्ध और आस्थावान स्थलों में एक है। यहां जाने का अवसर मुझे भी मिला और इस दौरान जो दृश्य मैंने देखे, वह शायद ही कहीं और देखने को मिल सकते हैं। यह स्थान उत्तराखंड की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर को प्रस्तुत करता है, और यहाँ का माहौल किसी भी श्रद्धालु के मन को शांति और आस्था से भर देता है।

गोल्ज्यू मन्दिर में श्रद्धा का प्रतीक

गोल्ज्यू मन्दिर में प्रवेश करते ही आपको दोनो ओर टंगी हुई घंटियाँ और उनके पास लोग अपनी अर्जियां चिपकाते हुए मिलते हैं। इन अर्जियों में कोई अपनी पीड़ा को सादे कागज पर लिखकर भेजता है तो कोई स्टॉप पेपर पर देवता के नाम अपनी मनोकामना व्यक्त करता है। पंड़ितों के अनुसार, देश-विदेश से लोग डाक के माध्यम से भी अपनी अर्जियां भेजते हैं और फिर जब उनकी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं, तो वे यहां आकर दर्शन करते हैं। यह स्थान सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि श्रद्धा और विश्वास का भी प्रतीक है।

गोल्ज्यू देवता की कथा

गोल्ज्यू देवता के बारे में उत्तराखंड में कई कथाएँ प्रचलित हैं। इन कथाओं में विशेष रूप से यह बताया जाता है कि गोल्ज्यू देवता न्यायप्रिय थे और उनके दरबार में लोग अपने विवादों का समाधान पाने के लिए आते थे। गोल्ज्यू देवता की न्यायप्रियता ने उन्हें हर घर में पूजा जाने वाले देवता बना दिया। कुमायूं मण्डल में चम्पावत, चितई और घोड़ाखाल में उनके प्रमुख मंदिर हैं, जबकि पौड़ी गढ़वाल में कंडोलिया देवता के रूप में उनका मंदिर स्थित है।

गोल्ज्यू देवता की संक्षिप्त कथा

उत्तराखंड के लोकदेवता गोल्ज्यू देवता, जिनको ग्वेल ज्यू या ग्वेल देवता भी कहा जाता है, का अपने क्षेत्र में विशेष स्थान है। जनश्रुतियों के अनुसार, गोल्ज्यू देवता का जन्म एक महान घटना के रूप में हुआ। यह कथा उत्तराखंड के कुमायूं क्षेत्र के राजा झालुराई से जुड़ी हुई है, जिन्होंने अपनी संतान प्राप्ति के लिए भगवान भैरव की पूजा की थी।

राजा झालुराई का विवाह आठ रानियों से हुआ था, लेकिन उनके घर में संतान का कोई जन्म नहीं हुआ। उनके मन में संतान की इच्छा ने उन्हें एक ज्योतिषी से परामर्श करने पर मजबूर किया, जिसने भैरव की पूजा करने का सुझाव दिया। भैरव ने राजा से कहा कि वे स्वयं उनके घर जन्म लेंगे, लेकिन इसके लिए राजा को आठवीं रानी से विवाह करना होगा।

राजा ने ऐसा ही किया और भैरव की कृपा से उन्हें संतान सुख प्राप्त हुआ। लेकिन जब यह बात सात सौतों को पता चली, तो उन्होंने शहज़ादे को मारने के लिए कई प्रयास किए, लेकिन हर बार वह असफल रहे। अंत में, एक लोहे के संदूक में बंद कर उसे नदी में बहा दिया गया, लेकिन बालक ने अपने चमत्कारी रूप से वह संदूक सात दिन तक बहते हुए गोरीहाट तक पहुँचाया।

वहां मछुआरे ने संदूक को निकाला और जब उसने बालक को देखा तो उसका जीवन बदल गया। बालक ने अपनी असली माता-पिता की खोज शुरू की, और अपनी पहचान जानने के बाद वह राजा झालुराई के दरबार तक पहुँचा, जहां उसकी अवतारी शक्ति ने सबको चकित कर दिया।

गोल्ज्यू देवता की पूजा

गोल्ज्यू देवता की पूजा में श्रद्धालु अपनी समस्याओं का समाधान और न्याय की प्राप्ति की उम्मीद रखते हैं। मंदिर में अर्जी लगाने की परंपरा आज भी प्रचलित है। लोग अपनी समस्याओं का हल गोल्ज्यू से मांगते हैं और उनके आशीर्वाद से अपना जीवन सुखी बनाने की उम्मीद रखते हैं।

यह मन्दिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि उत्तराखंड के लोगों की आस्था और विश्वास का गहरा प्रतीक भी है। यहाँ के दर्शन से न केवल शांति मिलती है, बल्कि यह भगवान गोल्ज्यू के न्याय और आशीर्वाद को प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण अवसर भी होता है।

निष्कर्ष

गोल्ज्यू मन्दिर उत्तराखंड के कुमायूं मण्डल का एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है, जहाँ लोग अपनी अर्जियां भेजकर अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए आते हैं। गोल्ज्यू देवता की कथा और उनके प्रति श्रद्धा ने इस मन्दिर को एक अद्वितीय स्थान बना दिया है। गोल्ज्यू देवता का अस्तित्व सिर्फ एक लोक देवता के रूप में नहीं, बल्कि न्याय और विश्वास का प्रतीक भी है।

गोल्ज्यू मंदिर, अल्मोड़ा के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FQCs)

1. गोल्ज्यू मंदिर कहाँ स्थित है?

गोल्ज्यू मंदिर चitai, अल्मोड़ा में स्थित है, जो उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में है। यह मंदिर एक पहाड़ी पर स्थित है और स्थानीय लोगों और भक्तों के लिए अत्यधिक महत्व रखता है।

2. गोल्ज्यू मंदिर में किसकी पूजा की जाती है?

यह मंदिर गोलू देवता (गोल्ज्यु) को समर्पित है, जो एक सम्मानित स्थानीय देवता हैं जिन्हें न्याय और सच्चाई के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है। गोलू देवता को जल्दी और निष्पक्ष न्याय दिलाने वाला देवता माना जाता है।

3. गोल्ज्यू मंदिर का महत्व क्या है?

गोलू देवता को उत्तराखंड, खासकर कुमाऊं क्षेत्र में पूजा जाता है, जहां उन्हें न्याय का देवता माना जाता है। चitai स्थित मंदिर गोलू देवता को समर्पित सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। यहां भक्त अपने झगड़ों को सुलझाने और इच्छाएं पूरी करने के लिए पूजा करते हैं।

4. गोल्ज्यू मंदिर में घंटियाँ क्यों लटकी होती हैं?

गोल्ज्यू मंदिर की विशेषता यह है कि मंदिर के सीढ़ियों के दोनों ओर घंटियाँ लटकी होती हैं। भक्त इन घंटियों में अपनी इच्छाएं या प्रार्थनाएँ लिखकर लटकाते हैं। ऐसा विश्वास है कि गोलू देवता इन प्रार्थनाओं को सुनते हैं और इच्छाओं को पूरा करते हैं। जब इच्छाएं पूरी हो जाती हैं, तो लोग मंदिर में आकर धन्यवाद अर्पित करते हैं।

5. क्या उत्तराखंड के बाहर से लोग गोल्ज्यू मंदिर जा सकते हैं?

जी हां, गोल्ज्यू मंदिर सभी भक्तों के लिए खुला है, चाहे वे उत्तराखंड के हों या भारत के किसी अन्य हिस्से से हों। यह मंदिर पूरे देश और विदेश से लोगों द्वारा पूज्य माना जाता है और लोग यहाँ न्याय, इच्छाओं की पूर्ति और शांति के लिए आते हैं।

6. क्या मंदिर में कोई विशेष पूजा विधि होती है?

साधारण पूजा और अर्पण के अलावा, बहुत से भक्त अपनी प्रार्थनाओं को डाक सेवाओं के माध्यम से मंदिर भेजते हैं। इन पत्रों को मंदिर में घंटियों या मंदिर के आसपास रख दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि गोलू देवता इन प्रार्थनाओं को सुनते हैं और इच्छाएं पूरी करने के बाद लोग मंदिर आकर धन्यवाद अर्पित करते हैं।

7. गोलू देवता की कहानी क्या है?

स्थानीय किंवदंतियों के अनुसार, गोलू देवता एक न्यायप्रिय राजा थे, जो पुराने समय में अपने न्याय के लिए प्रसिद्ध थे। देवता को विशेष रूप से अपने भक्तों को न्याय दिलाने और विवादों को सुलझाने के लिए पूजा जाता है। चitai मंदिर उत्तराखंड के लोककथाओं और विश्वासों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

8. गोल्ज्यू मंदिर के पास अन्य आकर्षण क्या हैं?

  • बिनसर

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