जागेश्वर धाम उत्तराखंड: शिवलिंग पूजा का ऐतिहासिक केंद्र (Jageshwar Dham Uttarakhand: Historical Center of Shivling Puja)

जागेश्वर धाम उत्तराखंड: शिवलिंग पूजा का ऐतिहासिक केंद्र

उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित जागेश्वर धाम एक प्रमुख धार्मिक स्थल है, जिसे भगवान शिव के पवित्र मंदिरों का समूह माना जाता है। यहाँ की शिवलिंग पूजा का ऐतिहासिक महत्व है, क्योंकि यही वह स्थान है जहाँ धरती पर पहली बार शिवलिंग की पूजा शुरू हुई। आइए जानते हैं इस ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल के बारे में विस्तार से।

मुख्य बिंदु

  • जागेश्वर धाम से शुरू हुई शिवलिंग पूजा
  • 9वीं से 13वीं सदी में हुआ मंदिर समूह का निर्माण
  • पुराणों में हाटकेश्वर के नाम से जाना जाता है जागेश्वर मंदिर
  • केदारनाथ जाने से पहले शंकराचार्य ने किया था जागेश्वर का दर्शन
  • भक्तों की हर मनोकामना होती है पूरी

जागेश्वर धाम से शुरू हुई शिवलिंग की पूजा

उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जागेश्वर धाम शिव के पावन स्थान के रूप में प्रसिद्ध है। बद्रीदत्त पांडे की पुस्तक "कुमाऊं का इतिहास" के अनुसार, सप्तऋषियों के श्राप के कारण शिव का लिंग कट कर जागेश्वर में गिरा। इसके बाद विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से शिवलिंग के टुकड़े कर पूरे भारत के विभिन्न स्थानों में वितरित किए। इस घटना के बाद से जागेश्वर को शिवलिंग की पूजा का आरंभिक स्थल माना जाता है।

9वीं से 13वीं सदी के बीच हुआ मंदिर समूह का निर्माण

जागेश्वर मंदिर समूह का निर्माण 9वीं से 13वीं सदी के बीच हुआ था, जब गुप्त साम्राज्य के तहत कुमाऊं क्षेत्र में कत्यूरी राजाओं का शासन था। यह मंदिर उत्तर भारतीय नागर शैली में बने हैं और लगभग 250 मंदिरों का एक समूह है, जिनमें 224 छोटे-बड़े मंदिर एक ही परिसर में स्थित हैं। इन मंदिरों का निर्माण बड़े पत्थर के स्लैबों से किया गया है, और उनके दरवाजों के चौखटों में देवी-देवताओं की अद्भुत नक्काशी देखने को मिलती है।

जागेश्वर मंदिर को पुराणों में हाटकेश्वर कहा जाता है

जागेश्वर मंदिर को पुराणों में हाटकेश्वर के नाम से जाना जाता है। इसे "हाटेश्वर" और "नागेश्वर मंदिर" भी कहा जाता है। यह स्थान योगियों के ध्यान के लिए प्रसिद्ध है, और यही कारण है कि इसे "यागेश्वर" के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ शिवरात्रि और श्रावण मास में विशेष पूजा और मेले आयोजित होते हैं, जो इसे भक्तों के लिए और भी पवित्र बनाते हैं।

केदारनाथ जाने से पहले शंकराचार्य ने किया जागेश्वर का दर्शन

आदि शंकराचार्य ने केदारनाथ धाम जाने से पहले जागेश्वर धाम में भगवान शिव के दर्शन किए थे। उन्होंने कई मंदिरों का जीर्णोद्धार और पुनर्निर्माण भी किया था। यह स्थान एक ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, जहाँ शिव ने अनादिकाल तक तपस्या की थी।

भक्तों की हर मनोकामना होती है पूरी

जागेश्वर धाम में श्रावण माह के दौरान यहां दूर-दूर से भक्त आते हैं और पार्थिव पूजा का आयोजन करते हैं। इस स्थान को पौराणिक कथाओं, शिव पुराण, लिंग पुराण, और स्कंद पुराण में भी महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। यहाँ यज्ञ और अनुष्ठान के माध्यम से भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं।

कैसे पहुँचें जागेश्वर धाम

जागेश्वर धाम जाने के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम है, जबकि नजदीकी एयरपोर्ट पंतनगर एयरपोर्ट है। हल्द्वानी से जागेश्वर की दूरी लगभग 120 किलोमीटर है। यहां पहुंचने के लिए बस और टैक्सी की सुविधाएँ उपलब्ध हैं।


जागेश्वर मंदिर का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व इसे उत्तराखंड के सबसे पवित्र स्थलों में से एक बनाता है। यह न केवल भगवान शिव की पूजा का केंद्र है, बल्कि यह भारतीय वास्तुकला और सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रतीक है। यदि आप उत्तराखंड के आध्यात्मिक अनुभव की तलाश में हैं, तो जागेश्वर धाम एक अद्भुत गंतव्य है।

Frequently Asked Questions (FQCs) 

1. जागेश्वर धाम कहाँ स्थित है?

जागेश्वर धाम उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित है, जो राज्य के अन्य प्रमुख शहरों से लगभग 35-40 किलोमीटर दूर है।

2. जागेश्वर धाम क्यों प्रसिद्ध है?

यह धाम भगवान शिव के ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है और शिव लिंग पूजा की उत्पत्ति यहीं से हुई थी। यह स्थान पौराणिक महत्व रखता है और यह शिव और सप्तऋषियों के तपस्या स्थल के रूप में प्रसिद्ध है।

3. जागेश्वर धाम का इतिहास क्या है?

जागेश्वर धाम का मंदिर समूह 9वीं से 13वीं सदी के बीच निर्मित हुआ था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, शिव का लिंग कट कर यहां गिरा था, जिसके बाद शिवलिंग की पूजा की शुरुआत हुई।

4. जागेश्वर धाम कैसे पहुंचें?

जागेश्वर धाम पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम है। वहीं, पंतनगर एयरपोर्ट नजदीक एयरपोर्ट है। हल्द्वानी से जागेश्वर लगभग 120 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, और यहां टैक्सी या बस से पहुंच सकते हैं।

5. क्या यहां हर साल मेले लगते हैं?

हाँ, जागेश्वर धाम में श्रावण महीने के दौरान पूरे महीने मेला लगता है, जिसमें भक्त दूर-दूर से आकर पार्थिव पूजा करते हैं। यह मेला धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है।

6. जागेश्वर धाम में कितने मंदिर हैं?

जागेश्वर धाम में लगभग 250 मंदिर हैं, जिनमें 124 छोटे मंदिर एक-दूसरे के नजदीक स्थित हैं, जो इस स्थल की भव्यता को दर्शाते हैं।

7. जागेश्वर धाम की वास्तुकला कैसी है?

जागेश्वर मंदिर की वास्तुकला उत्तर भारतीय नागर शैली में है और इसकी डिजाइन केदारनाथ मंदिर से काफी मिलती-जुलती है। यहां की विशेषता लकड़ी की छत और पथर के स्लैब के उपयोग से बनी हुई शिल्पकला में है।

8. क्या शंकराचार्य ने जागेश्वर धाम में कोई कार्य किया था?

जी हां, केदारनाथ धाम जाने से पहले शंकराचार्य ने जागेश्वर धाम में भगवान शिव के दर्शन किए और यहां कई मंदिरों का जीर्णोद्धार भी किया था।

9. जागेश्वर धाम में किसकी पूजा की जाती है?

जागेश्वर धाम में मुख्य रूप से भगवान शिव की पूजा की जाती है। इसके अलावा, विष्णु, देवी शक्ति, और सूर्य देव की भी पूजा की जाती है।

10. क्या जागेश्वर धाम में कोई पौराणिक महत्व है?

हां, पौराणिक ग्रंथों जैसे शिव पुराण, लिंग पुराण और स्कंद पुराण में जागेश्वर धाम का उल्लेख मिलता है। यहां की पवित्रता और धार्मिक महत्व के कारण यह स्थल तीर्थयात्रियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

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