कंडार देवता | कंडार देवता मंदिर | उत्तराखंड सरकार
परिचय
उत्तराखंड, जिसे देवभूमि के नाम से जाना जाता है, अपनी पुरानी धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है। वरुणावत पर्वत के शीर्ष पर बसे संग्राली गांव में कंडार देवता की महिमा का नजारा मिलता है। यहां पर कंडार देवता को एक ग्रामीण न्यायाधीश के रूप में पूजा जाता है, और उनके निर्णय सभी के लिए सर्वमान्य होते हैं।
कंडार देवता का महत्व
कंडार देवता को उत्तरकाशी के लोगों का रक्षक और न्यायाधीश माना जाता है। यहां पर न डॉक्टर का इलाज काम आता है, न पंडित का शास्त्र और न ही प्रशासन का आदेश। यहां पर कंडार देवता का आदेश ही सर्वोपरि है। ऐसी मान्यता है कि कंडार देवता ग्रामीणों और श्रद्धालुओं की समस्याओं का समाधान स्वयं करते हैं।
कंडार देवता मंदिर का इतिहास
उत्तरकाशी से लगभग 13 किलोमीटर दूर संग्राली गांव में कंडार देवता का मुख्य मंदिर स्थित है। 16वीं शताब्दी में, टेहरी राजशाही के दौरान, एक किसान को यहां अष्टधातु से बनी एक मूर्ति मिली थी। कहा जाता है कि राजा सुदर्शन शाह ने इसे अपने देवस्थान में रखा, लेकिन इसके अद्भुत प्रभाव के कारण इसे वरुणावत पर्वत पर स्थापित करने का आदेश दिया गया। तब से, कंडार देवता को संग्राली गांव के लोग अपने रक्षक के रूप में मानते हैं।
कंडार देवता की मान्यताएं और परंपराएं
कंडार देवता को शिव का रूप माना जाता है, और यहां विवाह, रोग या किसी भी समस्या के समाधान के लिए देवता की शरण ली जाती है। हर वर्ष माघ मेला के दौरान, कंडार देवता संग्राली गांव से उत्तरकाशी आते हैं और यहां के मेले का उद्घाटन करते हैं। उनके भक्त मानते हैं कि उनकी उपस्थिति में ही मेला सम्पन्न होता है।
कंडार देवता का न्यायालय
इस मंदिर को एक न्यायालय का रूप भी दिया गया है, जहां देवता स्वयं न्याय करते हैं। पंडित या वकील की बहस सुनने के बजाय, देवता स्वयं हर समस्या का निदान करते हैं। कंडार देवता के प्रति श्रद्धा इतनी अधिक है कि गांव के लोग विवाह, वास्तु दोष और स्वास्थ्य समस्याओं के समाधान के लिए उनकी अनुमति ही मानते हैं।
आधुनिक युग में कंडार देवता की प्रासंगिकता
आज के युग में, कंडार देवता की पूजा और उनकी परंपराएं धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा बनी हुई हैं। इनकी पूजा के दौरान शंख, घंटी और ढोल की पूजा होती है और सवालों के उत्तर इन प्रतीकों के माध्यम से दिए जाते हैं। कंडार देवता के ये प्रतीक और उनके द्वारा किए गए न्याय लोगों में उनकी शक्ति और महिमा को बनाए रखते हैं।
उत्तरकाशी, कंडार देवता मंदिर तक कैसे पहुंचें?
सड़क मार्ग से: देहरादून और ऋषिकेश बस टर्मिनल से उत्तरकाशी के लिए लगातार बसें और शेयर्ड टैक्सियाँ उपलब्ध हैं। निम्नलिखित सड़कें देहरादून को उत्तरकाशी से जोड़ती हैं:
- - मसूरी सुवाखोली (लगभग 150 किलोमीटर)
- - ऋषिकेश के रास्ते (लगभग 240 किलोमीटर)
- - विकासनगर बड़कोट के रास्ते (लगभग 230 किलोमीटर)
रेल मार्ग से: देहरादून में सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन है। देहरादून का रेलवे स्टेशन देश के लगभग हर क्षेत्र से जुड़ा हुआ है।
हवाई मार्ग से: सबसे नज़दीकी हवाई अड्डा देहरादून का जॉलीग्रांट हवाई अड्डा है।
निष्कर्ष
कंडार देवता का यह मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है बल्कि उत्तराखंड की संस्कृति और परंपराओं का सजीव उदाहरण है। कंडार देवता का आदर और उनकी उपासना उत्तराखंड के लोगों के जीवन का अभिन्न अंग है, जो दर्शाता है कि कैसे पुरानी परंपराएं आज भी लोगों के विश्वास में अपनी जगह बनाए हुए हैं।
FAQs
प्रश्न 1: कंडार देवता कौन हैं और उनका क्या महत्व है?
उत्तर: कंडार देवता को उत्तरकाशी में न्याय के देवता के रूप में पूजते हैं। उन्हें ग्रामीण न्यायाधीश माना जाता है, जो स्थानीय निवासियों और श्रद्धालुओं की समस्याओं का समाधान करते हैं। पंडित की पोथी, डॉक्टर की दवा, और प्रशासन का आदेश भी यहां काम नहीं आता है, क्योंकि कंडार देवता का आदेश ही सर्वमान्य होता है।
प्रश्न 2: कंडार देवता का मंदिर कहां स्थित है?
उत्तर: कंडार देवता का प्रमुख मंदिर उत्तरकाशी जिले के संग्राली गांव में स्थित है। यह मंदिर उत्तरकाशी से लगभग 13 किलोमीटर दूर है और एक पैदल मार्ग से पहुंचा जा सकता है। यहां वरुणावत पर्वत के शीर्ष पर कंडार देवता विराजमान हैं।
प्रश्न 3: कंडार देवता को न्याय का देवता क्यों माना जाता है?
उत्तर: कंडार देवता के प्रति स्थानीय लोगों की आस्था है कि वह सत्य और न्याय के प्रतीक हैं। उनके दरबार में किसी भी प्रकार का झूठ और गलत आचरण नहीं चलता। लोग अपनी समस्याओं का समाधान और न्याय पाने के लिए देवता के पास आते हैं, और उनकी समस्याएं स्वतः ही हल हो जाती हैं।
प्रश्न 4: कंडार देवता से जुड़ी कौन-कौन सी प्रमुख मान्यताएं हैं?
उत्तर: मान्यता है कि कंडार देवता किसी भी प्रकार की बीमारी, पारिवारिक समस्या, या समाजिक विवाद का समाधान कर सकते हैं। लोग उनके पास आकर अपनी समस्या रखते हैं, और देवता की कृपा से उनके कष्ट दूर हो जाते हैं। यहां तक कि विवाह के लिए भी देवता की अनुमति का इंतजार किया जाता है।
प्रश्न 5: कंडार देवता की शोभा यात्रा का महत्व क्या है?
उत्तर: मकर संक्रांति के अवसर पर कंडार देवता की भव्य शोभा यात्रा निकाली जाती है। इस दौरान देवता को हाथी पर सवार करके नगर में घुमाया जाता है, जिससे श्रद्धालु उनकी कृपा प्राप्त कर सकें। यह यात्रा संक्रांति के दिन आयोजित होती है और पूरे क्षेत्र को भक्ति मय बना देती है।
प्रश्न 6: कंडार देवता के पास जाने से क्या लाभ होते हैं?
उत्तर: कंडार देवता के पास जाने से लोगों की बीमारियां, सिरदर्द, बुखार आदि समस्याएं गायब हो जाती हैं। लोग उनसे किसी भी परेशानी का निदान प्राप्त करते हैं। देवता का दरबार केवल भक्ति और श्रद्धा का स्थान नहीं है, बल्कि यह एक न्यायालय की तरह कार्य करता है, जहां देवता स्वयं फैसले करते हैं।
प्रश्न 7: कंडार देवता का संबंध काशी के कोतवाल के रूप में क्या है?
उत्तर: कंडार देवता को अष्ट भैरव के रूप में काशी के कोतवाल भी माना जाता है। यह मान्यता है कि वह काशीपति भगवान विश्वनाथ के गण हैं और क्षेत्र की सुरक्षा करते हैं। जब वह उत्तरकाशी के विश्वनाथ मंदिर में आते हैं, तो गर्भगृह में प्रवेश नहीं करते, बल्कि चौखट से ही अभिवादन करते हैं।
प्रश्न 8: कंडार देवता से जुड़े हुए गांव कौन-कौन से हैं?
उत्तर: कंडार देवता को 6 गांवों के रक्षक देवता के रूप में पूजा जाता है। संग्राली और बग्याल गांव के लोग उनके पारंपरिक पुजारी हैं, और इन गांवों के लोग विशेष अवसरों पर उनके लिए पूजा करते हैं।
प्रश्न 9: विशेष परिस्थिति में कंडार देवता की पूजा कैसे की जाती है?
उत्तर: यदि किसी कारणवश देवता की अनुपस्थिति होती है तो प्रतीकात्मक रूप से शंख, घंटी और ढोल की पूजा की जाती है। श्रद्धालु अपने प्रश्न भी इन्हीं के माध्यम से रखते हैं, और देवता का संकेत मानकर समाधान करते हैं।
प्रश्न 10: क्या कंडार देवता किसी वाहन से यात्रा करते हैं?
उत्तर: नहीं, कंडार देवता कभी भी वाहन से यात्रा नहीं करते हैं। वे सदैव अपने भक्तों के साथ पैदल चलते हैं। इससे उनकी सादगी और भक्ति का महत्व और बढ़ जाता है।
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