कुमाऊं की पहली रामलीला की यात्रा: बद्रेश्वर मंदिर से नंदा देवी तक (Kumaon's First Ramlila Journey: From Badreswar Temple to Nanda Devi)

कुमाऊं की पहली रामलीला की यात्रा: बद्रेश्वर मंदिर से नंदा देवी तक

अल्मोड़ा: उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर और ऐतिहासिक नगरी अल्मोड़ा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है - कुमाऊं की पहली रामलीला। यह रामलीला 1860 में अल्मोड़ा के बद्रेश्वर मंदिर से शुरू हुई थी और आज भी नंदा देवी मंदिर के प्रांगण में धूमधाम से आयोजित की जाती है।

बद्रेश्वर मंदिर से प्रारंभ हुई रामलीला की यात्रा

कुमाऊं की पहली रामलीला का मंचन 1860 में अल्मोड़ा नगर के बद्रेश्वर मंदिर से हुआ था। इसे तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर स्व. देवीदत्त जोशी ने आरंभ करवाया था। वह समय ऐसा था जब न तो बिजली थी, न संचार साधन थे और न ही पर्याप्त आवागमन के साधन। इस दौरान रामलीला का मंचन मशालों की रोशनी में किया जाता था, जिनके साथ छिलकों (बिरोजा युक्त लकड़ी) का इस्तेमाल किया जाता था। रामचरितमानस पर आधारित इस रामलीला का मंचन केवल अल्मोड़ा तक सीमित नहीं रहा, बल्कि बाद में यह नंदा देवी मंदिर के प्रांगण में आयोजित होने लगी।

नंदा देवी में जारी है कुमाऊं की सबसे पुरानी रामलीला

1950 के आसपास भूमि विवाद के कारण रामलीला का मंचन नंदा देवी के पास स्थित त्यूनरा मोहल्ले में हुआ, और तब से यह रामलीला नंदा देवी के प्रांगण में आयोजित की जा रही है। यह रामलीला कुमाऊं की सबसे पुरानी और ऐतिहासिक रामलीला मानी जाती है, जो लगभग 163 वर्षों से निरंतर चली आ रही है।

रामलीला का विशेष महत्व और प्रशिक्षण प्रक्रिया

कुमाऊं की रामलीला की विशेषता यह है कि इसमें अभिनय करने वाले पात्र तीन महीने पहले से विशेष प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं। इन पात्रों में आम लोग भी होते हैं जो कड़ी मेहनत के बाद भगवान श्रीराम की लीला में अभिनय करते हैं। इस रामलीला में लगभग 65 पात्र होते हैं जो विभिन्न भूमिकाओं में अभिनय करते हैं, जैसे राम, लक्ष्मण, सीता, भरत, शत्रुघ्न, हनुमान, दशरथ, कैकेयी, और रावण सहित कई अन्य पात्र।

नृत्य सम्राट उदयशंकर का योगदान

कुमाऊं की रामलीला को नृत्य सम्राट पं. उदयशंकर ने भी प्रभावित किया था। 1940-41 के दौरान उन्होंने अल्मोड़ा में रामलीला का मंचन किया था और इसमें छाया चित्रों का प्रयोग किया था। पं. उदयशंकर की यह नई तकनीक रामलीला के मंचन को और भी आकर्षक बनाती थी। उनके योगदान के बाद, रामलीला में छाया चित्रों का प्रयोग भी होने लगा, जिससे यह और भी मनमोहक बन गई।

कुमाऊंनी रामलीला में पारसी थियेटर की झलक

कुमाऊंनी रामलीला में पारसी थियेटर की झलक भी देखने को मिलती है, जहां विभिन्न संवादों के मंचन में रामचरित्र मानस के दोहे और चौपाइयों को विभिन्न रागों में गाया जाता है। राग मालकोश, बिहाग, जैजवंती, मांड, खमाज, काफी, सहाना, दुर्गा और भैरवी पर आधारित गीतों का गायन किया जाता है। यह संगीत और अभिनय की अनूठी संगम है जो दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देता है।

रामलीला के प्रमुख आकर्षण

कुमाऊंनी रामलीला में कई प्रमुख प्रसंग होते हैं जो दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं, जैसे नारद मोह, सीता स्वयंवर, परशुराम-लक्ष्मण संवाद, रावण मारीच संवाद, सीता हरण, शबरी प्रसंग, लक्ष्मण शक्ति, और राम-रावण युद्ध। इन प्रसंगों में रामलीला के पात्र अपनी भाव-भंगिमा और काव्य से संवादों को जीवंत कर देते हैं।

महिलाओं की भी बढ़ती भागीदारी

अब कुमाऊंनी रामलीला में महिलाएं भी पात्रों का अभिनय करने लगी हैं। पहले यह केवल पुरुषों द्वारा किया जाता था, लेकिन अब महिलाओं ने भी अपनी जगह बना ली है और प्रमुख पात्रों की भूमिका निभा रही हैं।

अल्मोड़ा की रामलीला का भविष्य

अल्मोड़ा की रामलीला का मंचन अब नगर के आठ स्थानों पर और कुमाऊं के अन्य कस्बों में भी किया जाता है। कुमाऊं के लोग जो महानगरों में रहते हैं, वे भी इस रामलीला का मंचन वहां कराते हैं। आधुनिक तकनीक, साज-सज्जा, रोशनी और ध्वनि उपकरणों का उपयोग इसे और भी आकर्षक बनाता है।

संस्कृति का संवर्धन और युवा पीढ़ी का योगदान

अल्मोड़ा की रामलीला में भाग लेकर न केवल कलाकार बल्कि दर्शक भी इस संस्कृति का हिस्सा बनते हैं। वर्तमान में युवाओं का भी इस में बढ़ता हुआ योगदान देखने को मिल रहा है, और वे अपनी संस्कृति को जीवित रखने के लिए इस ऐतिहासिक रामलीला में भागीदारी कर रहे हैं।

निष्कर्ष

कुमाऊं की सबसे पुरानी रामलीला, जो 1860 में बद्रेश्वर मंदिर से शुरू हुई थी, आज भी नंदा देवी मंदिर में पूरे धूमधाम से आयोजित होती है। यह रामलीला केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह कुमाऊं की समृद्ध परंपरा और धरोहर का प्रतीक भी है। रामलीला का यह महापर्व कुमाऊं के हर दिल में बसा हुआ है और आगामी वर्षों में भी यह अपनी पुरानी परंपराओं के साथ चलता रहेगा।

FAQs (Frequently Asked Questions) - अल्मोड़ा की रामलीला

1. अल्मोड़ा की रामलीला कब शुरू हुई थी?

  • अल्मोड़ा की रामलीला का आयोजन 1860 में बद्रेश्वर मंदिर से शुरू हुआ था। यह कुमाऊं की सबसे पुरानी रामलीला मानी जाती है।

2. रामलीला का मंचन कहां होता है?

  • शुरू में यह रामलीला बद्रेश्वर मंदिर से हुई थी, बाद में यह त्यूनरा मोहल्ले और फिर नंदा देवी मंदिर परिसर में आयोजित की जाती है।

3. रामलीला में कौन-कौन से पात्र होते हैं?

  • रामलीला में कुल 65 पात्र होते हैं, जिनमें राम, लक्ष्मण, सीता, हनुमान, रावण, शूर्पणखा, दशरथ और अन्य प्रमुख पात्र शामिल हैं।

4. रामलीला में कितने दिन का आयोजन होता है?

  • अल्मोड़ा की रामलीला का आयोजन शारदीय नवरात्रि के दौरान 10 दिनों तक होता है।

5. रामलीला के मंचन के लिए पात्रों को कितना प्रशिक्षण मिलता है?

  • रामलीला के पात्रों को तीन महीने का प्रशिक्षण दिया जाता है, ताकि वे अभिनय और गायन में दक्ष हो सकें।

6. रामलीला में कौन सा संगीत प्रयोग किया जाता है?

  • रामलीला में शास्त्रीय रागों जैसे राग मालकोश, बिहाग, मांड, खमाज, और दुर्गा पर आधारित गीत गाए जाते हैं। इन रागों का गायन हारमोनियम और तबले के साथ किया जाता है।

7. क्या महिलाएं भी रामलीला में अभिनय करती हैं?

  • पहले केवल पुरुष पात्रों द्वारा अभिनय किया जाता था, लेकिन अब महिलाएं भी प्रमुख पात्रों का अभिनय करती हैं।

8. रामलीला के दौरान क्या विशेष आकर्षण होते हैं?

  • रामलीला के दौरान प्रमुख आकर्षणों में नारद मोह, सीता स्वयंवर, राम-रावण युद्ध, शबरी प्रसंग, और लक्ष्मण शक्ति जैसे दृश्य शामिल होते हैं।

9. क्या रामलीला में आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है?

  • हां, आजकल रामलीला के मंचन में नवीनतम तकनीक, साज-सज्जा, रोशनी और आधुनिक ध्वनि विस्तारक यंत्रों का इस्तेमाल किया जाता है।

10. क्या अल्मोड़ा की रामलीला केवल स्थानीय लोगों द्वारा ही मंचित की जाती है?

  • नहीं, कुमाऊं के अन्य क्षेत्रों में भी अल्मोड़ा की रामलीला का मंचन किया जाता है, और अब महानगरों में भी इसकी प्रस्तुति होती है।

11. नृत्य सम्राट उदयशंकर का रामलीला पर क्या प्रभाव था?

  • 1940-41 में नृत्य सम्राट उदयशंकर ने अल्मोड़ा की रामलीला में छाया चित्रों का प्रयोग किया, जो बाद में रामलीला के मंचन का एक अहम हिस्सा बन गया।

12. रामलीला में अभिनय करने वाले पात्र कौन होते हैं?

  • रामलीला के पात्र मुख्यतः स्थानीय लोग होते हैं, जो रामचरितमानस पर आधारित नाटक में अभिनय करते हैं।

13. रामलीला के मंचन में क्या कोई बदलाव हुआ है?

  • समय के साथ रामलीला में कई बदलाव हुए हैं, जैसे कि अब पार्श्व गायन (प्लेबैक सिंगिंग) का भी प्रयोग किया जाता है और मंच की साज-सज्जा में आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल होता है।

14. रामलीला का आयोजन कहां देखा जा सकता है?

  • रामलीला का आयोजन नंदा देवी मंदिर परिसर और अन्य प्रमुख स्थलों पर होता है, जहां दर्शक दूर-दूर से आते हैं।

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