लक्ष्मण मंदिर (देवल गांव) और मंसार मेला: उत्तराखंड की पौराणिक धरोहर (Laxman Temple (Deval Village) and Mansar Mela)
लक्ष्मण मंदिर (देवल गांव) और मंसार मेला: उत्तराखंड की पौराणिक धरोहर
उत्तराखंड, जिसे देवभूमि के नाम से जाना जाता है, एक ऐसी भूमि है जहां पौराणिक कथाएँ और धार्मिक स्थल आज भी जीवित हैं। इन्हीं धार्मिक स्थलों में से एक है लक्ष्मण मंदिर जो देवल गांव, सितोनस्यूं पट्टी, कोट ब्लॉक, पौड़ी गढ़वाल में स्थित है। यह मंदिर न केवल धार्मिक महत्व का है बल्कि यहां की पौराणिक किवदंतियों और मेला परंपराओं के कारण भी यह स्थान विशेष पहचान रखता है।
पौराणिक मान्यता
रामायण में भगवान राम द्वारा माता सीता का त्याग करने की कथा प्रसिद्ध है। जब भगवान राम ने माता सीता की पवित्रता पर संदेह होने के बाद उन्हें वन में भेजने का निर्णय लिया, तब लक्ष्मण जी को सीता को उत्तराखंड के ऋषिकेश से आगे तपोवन में छोड़ने के लिए कहा। जिस स्थान पर लक्ष्मण जी ने सीता जी को वन में छोड़ा था, वह देव प्रयाग के निकट स्थित है। वहां से ही इस स्थान का नाम सीता विदा पड़ा और यह स्थल एक धार्मिक और पौराणिक स्थल के रूप में विकसित हुआ।
मंसार मेला और लक्ष्मण मंदिर का महत्व
मंसार मेला उत्तराखंड की एक विशेष परंपरा है जो प्रतिवर्ष दीपावली के बाद द्वादशी को फलस्वाड़ी गांव में आयोजित किया जाता है। यह मेला सीता माता के प्रतीक के रूप में मानी जाने वाली शिला (लोड़ी) की पूजा के रूप में जाना जाता है, जिसे जमीन में समाकर फिर से खोजा जाता है। किवदंती है कि जब लक्ष्मण जी ने सीता को वन में छोड़ा, तब सीता ने धरती माता से प्रार्थना की कि वह उन्हें अपने अंदर समा लें, और यही स्थान फलस्वाड़ी गांव के पास स्थित है, जहां यह शिला हर साल विधिवत पूजा-अर्चना के बाद पुनः प्रकट होती है।
लक्ष्मण मंदिर में स्थानीय लोग हर वर्ष मेले की शुरुआत निशान (ध्वज) लेकर करते हैं और इस आयोजन में ढोल-दमाऊ व गाजे-बाजे के साथ ग्रामीण इस शिला को खोजने के लिए मिट्टी खोदते हैं। शिला प्रकट होने के बाद, देवल गांव के पुजारी द्वारा शिला की पूजा की जाती है और फिर श्रद्धालु इसे दर्शन के रूप में देख सकते हैं। इसके बाद इस शिला की पूजा 3 दिनों तक की जाती है और फिर यह शिला फिर से जमीन में समा जाती है।
धार्मिक मान्यता और विश्वास
यह मेला और लक्ष्मण मंदिर गांववासियों की गहरी आस्था और विश्वास का प्रतीक है। लोग मानते हैं कि सीता माता की शक्ति के कारण यह शिला पुनः भूमि में समाती है और फिर से उगने वाली फसल क्षेत्रवासियों के लिए समृद्धि और खुशहाली का संकेत बनती है। यहां के खेतों में खेलते हुए श्रद्धालुओं के कारण गेहूं की फसल को नुकसान जरूर होता है, लेकिन बाद में वही खेत सबसे अच्छी फसल उगाते हैं, जिसे लोग सीता माता की आशीर्वाद मानते हैं।
मंसार मेला का आकर्षण
इस मेले का प्रमुख आकर्षण वह शिला है जिसे खोदकर प्रकट किया जाता है, जिसे श्रद्धालु बड़ी श्रद्धा और श्रद्धा से पूजा करते हैं। साथ ही, बाबल घास से बनी चोटी का प्रसाद भी श्रद्धालुओं में बांटा जाता है, जिसे वे अपने घर में रखने के बाद उसे अपने अन्न-धन के भंडार में रखते हैं। यह मेला सीता माता के प्रतीक के रूप में देखा जाता है और प्रत्येक वर्ष यहां हज़ारों श्रद्धालु अपनी आस्था और विश्वास के साथ इस मेले में शामिल होते हैं।
निष्कर्ष
उत्तराखंड के लक्ष्मण मंदिर और मंसार मेला न केवल धार्मिक महत्व रखते हैं, बल्कि यह यहां की संस्कृति, परंपरा और विश्वास को भी प्रकट करते हैं। हर साल यहां होने वाले मेले में श्रद्धालु भाग लेकर न केवल पूजा-अर्चना करते हैं, बल्कि उत्तराखंड की पौराणिक परंपराओं और धार्मिक मान्यताओं को भी जीवित रखते हैं।
जय देव भूमि उत्तराखंड!
Frequently Asked Questions (FAQ) - लक्ष्मण मंदिर और मंसार मेला
लक्ष्मण मंदिर कहाँ स्थित है?
- लक्ष्मण मंदिर देवल गांव (सितोनस्यूं पट्टी), कोट ब्लॉक, पौड़ी गढ़वाल में स्थित है, जो उत्तराखंड के एक पौराणिक और धार्मिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध है।
मंसार मेला कब और कहाँ आयोजित होता है?
- मंसार मेला प्रतिवर्ष दीपावली के बाद द्वादशी को फलस्वाड़ी गांव, पौड़ी गढ़वाल में आयोजित होता है। यह मेला सीता माता के प्रतीक शिला की पूजा के लिए प्रसिद्ध है।
मंसार मेला का मुख्य आकर्षण क्या है?
- मंसार मेला का मुख्य आकर्षण वह शिला (लोड़ी) है, जिसे विधिवत पूजा-अर्चना के बाद खुदाई के माध्यम से दिखाया जाता है। यह शिला सीता माता के प्रतीक के रूप में मानी जाती है।
सीता माता की शिला क्यों पूजी जाती है?
- किवदंती के अनुसार, जब लक्ष्मण जी ने सीता को वन में छोड़ा, तो सीता ने धरती माता से निवेदन किया कि वह उन्हें अपने अंदर समा लें। उसी स्थान पर यह शिला प्रकट हुई थी, जिसे पूजा जाता है।
मेला में पूजा की प्रक्रिया कैसे होती है?
- मेला में, गांववाले निशान (ध्वज) लेकर लक्ष्मण मंदिर पहुंचते हैं, और वहां से शिला की पूजा के लिए फलस्वाड़ी गांव जाते हैं। शिला को खोदकर पुजारी द्वारा विधिवत पूजा की जाती है, और फिर श्रद्धालुओं को दर्शन का अवसर मिलता है।
क्या मंसार मेला के दौरान खेतों में कुछ खास होता है?
- मेला के दौरान जहां यह पूजा होती है, वहां उग चुकी गेहूं की फसल श्रद्धालुओं के खेलने-कूदने से खराब हो जाती है, लेकिन बाद में उन खेतों में सबसे अच्छी गेहूं की फसल उगती है, जिसे लोग सीता माता की शक्ति मानते हैं।
क्यों सीता माता की चोटी बनाई जाती है?
- बाबल घास से बनी चोटी को सीता माता की चोटी के रूप में माना जाता है, और इसे श्रद्धालुओं में प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। लोग इसे अपने घरों में रखते हैं, जिससे यह उन्हें आशीर्वाद और समृद्धि का प्रतीक मानी जाती है।
क्या मंसार मेला में सभी लोग भाग ले सकते हैं?
- हाँ, मंसार मेला एक सार्वजनिक धार्मिक मेला है, जिसमें सभी श्रद्धालु भाग ले सकते हैं और पूजा-अर्चना में शामिल हो सकते हैं।
लक्ष्मण मंदिर का इतिहास क्या है?
- लक्ष्मण मंदिर का इतिहास रामायण से जुड़ा हुआ है, जहां लक्ष्मण जी ने सीता माता को वन में छोड़ने के बाद इस क्षेत्र को पवित्र माना गया। यह स्थान धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है।
मेला में कौन-कौन से पारंपरिक आयोजन होते हैं?
- मेला में ढोल-दमाऊ और गाजे-बाजे के साथ धार्मिक जुलूस निकाले जाते हैं। इसके साथ ही, पूजा-अर्चना, शिला की पूजा और प्रसाद वितरण जैसे पारंपरिक आयोजन होते हैं।
- क्या मंसार मेला का कोई ऐतिहासिक महत्व है?
- मंसार मेला रामायण की कथा से जुड़ा हुआ है, और यह उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है। यह मेला धार्मिक आस्था और विश्वास का प्रतीक है और प्राचीन मान्यताओं को जीवित रखता है।
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