भगवान बटुक भैरव: अवतार कथा और तांत्रिक महत्व (Lord Batuk Bhairav: Avatar Story and Tantric Significance)
भगवान बटुक भैरव: अवतार कथा और तांत्रिक महत्व
परिचय
भगवान बटुक भैरव की अवतार कथा
'शक्तिसंगम तंत्र' के 'काली खंड' में बटुक भैरव की उत्पत्ति की कथा का वर्णन मिलता है।
एक समय, 'आपद' नामक राक्षस ने कठोर तपस्या से वरदान प्राप्त किया। उसने अपनी मृत्यु एक ऐसे पाँच-वर्षीय बालक के हाथों चाही, जो विशेष गुणों से संपन्न हो। वरदान प्राप्त कर 'आपद' ने तीनों लोकों में आतंक फैलाना शुरू कर दिया। देवी-देवता उसके अत्याचारों से त्रस्त होकर समाधान के लिए एकत्र हुए।
सभी देवताओं के शरीर से तेज निकलकर एक स्थान पर संगठित हुआ। इस दिव्य तेज से पंचवर्षीय 'बटुक' का प्रादुर्भाव हुआ। इस बालक ने 'आपद' राक्षस का वध कर तीनों लोकों की रक्षा की। तभी से इन्हें 'आपादुद्धारक बटुक भैरव' कहा जाता है।
दस महाविद्याएं और उनके भैरव रूप
दस महाविद्याएं | भैरव रूप |
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1. महाकाली | महाकाल भैरव |
2. सुंदरी | ललितेश्वर भैरव |
3. तारा | अक्षोभ्य भैरव |
4. छिन्नमस्तिका | विकरालक भैरव |
5. भुवनेश्वरी | महादेव भैरव |
6. धूमावती | काल-भैरव |
7. महालक्ष्मी | नारायण भैरव |
8. भैरवी | बटुक भैरव |
9. मातंगी | सदाशिव भैरव |
10. बगलामुखी | मृत्युञ्जय भैरव |
चौंसठ भैरवों का वर्णन
तंत्र ग्रंथों, विशेषकर रुद्रयामल तंत्र, में चौसठ भैरवों का विस्तार से उल्लेख है। ये भैरव शिव के विभिन्न रूप हैं और उनकी शक्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
चौंसठ भैरवों के नाम:
- असितांग, 2. विशालाक्ष, 3. मार्तंड, 4. मोदकप्रिय, 5. स्वच्छंद, 6. विघ्नसंतुष्ट, 7. खेचर, 8. सचराचर, 9. रूद्र, 10. क्रोडदंष्ट्र, 11. जटाधर, 12. विश्वरूप, 13. विरूपाक्ष, 14. नानारूपधर, 15. नर, 16. वज्रहस्त, 17. महाकाय, 18. चंड, 19. प्रलयांतक, 20. भूमिकंप, 21. नीलकंठ, 22. विष्णु, 23. कुलपालक, 24. मुण्डपाल, 25. कामपाल, 26. क्रोध, 27. पिंगलेक्षण, 28. अभ्ररूप, 29. धरापाल, 30. कुटिल, 31. मंत्रनायक, 32. महारुद्र, 33. पितामह, 34. उन्मत्त, 35. बटुनायक, 36. शंकर, 37. भूतवेताल, 38. त्रिनेत्र, 39. त्रिपुरांतक, 40. वरद, 41. पर्वतावास, 42. कपाल, 43. शशि भूषण, 44. हरिचर्मधर, 45. योगीश, 46. ब्रह्मराक्षस, 47. सर्वज्ञ, 48. सर्वदेवेश, 49. सर्वभूतहृदयस्थ, 50. भीषण, 51. भयहर, 52. सर्वेश, 53. कालाग्नि, 54. महारौद्र, 55. दक्षिण, 56. मुकर, 57. अस्थिर, 58. संहार, 59. अतिरक्तांग, 60. प्रियकर, 61. घोरनाद, 62. विशालाक्ष, 63. दक्षसंस्थित, 64. योगीश।
भैरवों की साधना और महत्व
भैरव साधना तंत्र मार्ग में अति महत्वपूर्ण मानी जाती है। प्रत्येक भैरव शक्ति और योगिनी के साथ युगल स्वरूप में पूजित होते हैं। साधक अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए विशेष भैरव और उनकी योगिनियों का आह्वान करते हैं।
चौंसठ भैरवों और दस महाविद्याओं की साधना से:
- भय का नाश होता है।
- शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
- आत्मिक शुद्धि और सिद्धियां प्राप्त होती हैं।
- साधक का आत्मविश्वास और आध्यात्मिक शक्ति बढ़ती है।
निष्कर्ष
भगवान बटुक भैरव केवल रक्षक ही नहीं, बल्कि तांत्रिक साधना के प्रमुख देवता भी हैं। उनके भिन्न रूप, जैसे आपादुद्धारक, महाकाल, और काल-भैरव, जीवन के हर संकट को हरने में समर्थ हैं। भैरव साधना और उनके तांत्रिक महत्व को समझकर जीवन में शक्ति और शांति प्राप्त की जा सकती है।
ॐ बटुकाय आपदुद्धारकाय नमः।
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