माँ नंदा देवी राजजात यात्रा – उत्तराखंड का सांस्कृतिक और धार्मिक पर्व (Maa Nanda Devi Rajjat Yatra – Cultural and Religious Festival of Uttarakhand)
माँ नंदा देवी राजजात यात्रा – उत्तराखंड का सांस्कृतिक और धार्मिक पर्व
माँ नंदा देवी राजजात यात्रा उत्तराखंड की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत का एक अद्भुत प्रतीक है। यह यात्रा हर साल अगस्त-सितंबर के महीने में होती है, जबकि 12 वर्ष में एक बार आयोजित होने वाली भव्य राजजात यात्रा विशेष महत्व रखती है। इस पवित्र यात्रा में स्थानीय देवी नंदा का विवाह हिमालय के शिखरों में भगवान शिव के साथ माना जाता है।
नंदा देवी का महत्व और पौराणिक कथा
माँ नंदा देवी को उत्तराखंड में गढ़वाल और कुमाऊं की कुल देवी के रूप में पूजा जाता है। लोक मान्यता के अनुसार, देवी नंदा को माँ पार्वती का स्वरूप माना जाता है।
- नाम और रूप: माँ नंदा देवी को विभिन्न नामों से जाना जाता है, जैसे नंदा, सुनंदा, शुभानंदा, और नंदिनी।
- राजेश्वरी देवी: गढ़वाल और कुमाऊं के राजवंशों द्वारा देवी को इष्ट देवी और राजेश्वरी के रूप में पूजा जाता है।
- धार्मिक एकता: पूरे उत्तराखंड में देवी को पूजने की परंपरा, धार्मिक और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है।
राजजात यात्रा: हर साल और 12 वर्ष की यात्रा
एक वर्षीय यात्रा
हर साल अगस्त-सितंबर में आयोजित होने वाली एक वर्षीय यात्रा कुरुड़ से शुरू होती है और वेदनी कुंड तक जाती है। यह यात्रा स्थानीय श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए प्रमुख धार्मिक आयोजन है।
12 वर्षीय भव्य राजजात यात्रा
यह यात्रा 240 किलोमीटर की कठिन पैदल यात्रा है, जो चमोली के कुरुड़ गांव से शुरू होकर वेदनी कुंड, रूपकुंड, और हिमालय के दुर्गम क्षेत्रों तक जाती है।
- चौसिंगा खांडू (चार सिंगों वाला भेड़): इस यात्रा का प्रमुख आकर्षण यह भेड़ होती है, जो देवी के सामान लेकर चलती है और अंत में हिमालय में विलीन हो जाती है।
- समर्पित श्रद्धालु: यात्रा के दौरान श्रद्धालु घने जंगलों और पथरीले पहाड़ों को पार करते हुए माँ नंदा देवी की भक्ति में लीन रहते हैं।
नौटी गाँव: यात्रा का आरंभ बिंदु
नौटी गाँव, चमोली जिले में स्थित, नंदा देवी राजजात यात्रा का आरंभ बिंदु है।
- स्थान: यह गाँव समुद्र तल से 369 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और कर्णप्रयाग से 24 किमी दूर है।
- पौराणिक महत्ता: यह गाँव देवी नंदा का पवित्र निवास स्थान माना जाता है।
कैसे पहुँचें नौटी गाँव
- निकटतम रेलवे स्टेशन: ऋषिकेश रेलवे स्टेशन, लगभग 180 किमी दूर।
- निकटतम हवाई अड्डा: देहरादून का जॉली ग्रांट हवाई अड्डा, 200 किमी दूर।
- सड़क मार्ग: हरिद्वार, ऋषिकेश और देहरादून से कर्णप्रयाग के लिए बसें और टैक्सियाँ उपलब्ध हैं।
राजजात यात्रा का मार्ग और पड़ाव
यात्रा के मुख्य पड़ाव:
- कुरुड़ से दसोली
- वेदनी पतार
- नौचंडियां
- रूपकुंड
- हेमकुंड
- चंदनियाघाट
- नंदप्रयाग
नंदा देवी यात्रा का सांस्कृतिक महत्व
- यह यात्रा गढ़वाल और कुमाऊं की सांस्कृतिक विरासत को समेटे हुए है।
- माँ नंदा देवी को बेटी, बहन, और माँ के रूप में देखा जाता है।
- श्रद्धालु देवी से सुख, समृद्धि और सुरक्षा की कामना करते हैं।
महत्वपूर्ण जानकारियाँ
- मंदिर स्थान: नंदा देवी मंदिर, नौटी, चमोली, उत्तराखंड।
- मंदिर समय: सुबह 6:00 बजे से शाम 7:00 बजे तक।
- विशेष आयोजन: नवरात्रि और 12 वर्षीय राजजात यात्रा।
सारांश
माँ नंदा देवी की राजजात यात्रा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह उत्तराखंड की संस्कृति और परंपराओं का दर्पण है। यह यात्रा हमें प्रकृति और धर्म के साथ सामंजस्य बनाकर जीने का संदेश देती है।
मां नंदा देवी राजजात यात्रा से संबंधित FAQs
प्रश्न 1: मां नंदा देवी राजजात यात्रा क्या है?
उत्तर:
मां नंदा देवी राजजात यात्रा उत्तराखंड की एक पवित्र धार्मिक और सांस्कृतिक यात्रा है। यह हर साल अगस्त-सितंबर में आयोजित होती है, जबकि विशेष 12 वर्षीय राजजात यात्रा 12 साल में एक बार आयोजित की जाती है।
प्रश्न 2: मां नंदा देवी को कौन-कौन से नामों से जाना जाता है?
उत्तर:
मां नंदा देवी को शिबा, नंदा, सुनंदा, शुभानंदा, और नंदिनी जैसे नामों से जाना जाता है।
प्रश्न 3: 12 वर्षीय नंदा देवी राजजात यात्रा कब होती है?
उत्तर:
12 वर्षीय नंदा देवी राजजात यात्रा अंतिम बार 2014 में हुई थी और अगली बार यह 2026 में आयोजित होगी।
प्रश्न 4: मां नंदा देवी की धार्मिक मान्यता क्या है?
उत्तर:
मां नंदा देवी को गढ़वाल और कुमाऊं की कुल देवी के रूप में पूजा जाता है। उन्हें देवी पार्वती का स्वरूप माना जाता है और यह क्षेत्रीय एकता और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है।
प्रश्न 5: राजजात यात्रा की शुरुआत कहां से होती है?
उत्तर:
राजजात यात्रा की शुरुआत चमोली जिले के नौटी गांव के मां नंदा देवी मंदिर से होती है।
प्रश्न 6: मां नंदा देवी राजजात यात्रा का मार्ग कितना लंबा है?
उत्तर:
12 वर्षीय राजजात यात्रा में लगभग 280 किलोमीटर की दूरी कवर की जाती है। यह यात्रा कुरुड़ से शुरू होकर वेदनी कुंड, रूपकुंड, और हेमकुंड जैसे पवित्र स्थानों से गुजरती है।
प्रश्न 7: चौसिंगा खांडू क्या है और इसका क्या महत्व है?
उत्तर:
चौसिंगा खांडू (चार सिंगों वाला भेड़) एक पवित्र प्रतीक है जो राजजात यात्रा में शामिल होता है। इसकी पीठ पर धार्मिक सामग्री रखी जाती है और इसे हेमकुंड तक ले जाया जाता है। माना जाता है कि यह हिमालय में प्रवेश कर लुप्त हो जाता है।
प्रश्न 8: नौटी गांव क्यों प्रसिद्ध है?
उत्तर:
नौटी गांव मां नंदा देवी का पवित्र निवास स्थान और 12 वर्षीय राजजात यात्रा का आरंभ बिंदु है। यह चमोली जिले के कर्णप्रयाग से लगभग 24 किमी की दूरी पर स्थित है।
प्रश्न 9: नौटी गांव कैसे पहुंचा जा सकता है?
उत्तर:
नौटी गांव ऋषिकेश रेलवे स्टेशन (194 किमी) और देहरादून हवाई अड्डे (211 किमी) के निकट है। यहां कर्णप्रयाग से बस या टैक्सी के माध्यम से पहुंचा जा सकता है।
प्रश्न 10: मां नंदा देवी मंदिर कब खुलता और बंद होता है?
उत्तर:
मां नंदा देवी मंदिर सुबह 6:00 बजे से शाम 7:00 बजे तक खुला रहता है।
प्रश्न 11: मां नंदा देवी को क्यों पूजा जाता है?
उत्तर:
मां नंदा देवी को गढ़वाल और कुमाऊं की कुल देवी, बेटी, बहन, और मां के रूप में पूजा जाता है। यह देवी समृद्धि, शांति, और क्षेत्रीय एकता का प्रतीक हैं।
प्रश्न 12: नंदा देवी राजजात यात्रा के दौरान क्या-क्या स्थान देखे जाते हैं?
उत्तर:
इस यात्रा के दौरान कुरुड़, वेदनी कुंड, नौचंडियां, रूपकुंड, हेमकुंड और नंदप्रयाग जैसे पवित्र स्थानों का दर्शन किया जाता है।
प्रश्न 13: क्या हर साल नंदा देवी यात्रा होती है?
उत्तर:
जी हां, हर साल अगस्त-सितंबर में एक वर्षीय नंदा देवी यात्रा आयोजित होती है।
प्रश्न 14: नंदा देवी को कौन-कौन से राजवंशों की ईष्ट देवी माना जाता है?
उत्तर:
नंदा देवी को गढ़वाल के राजाओं और कुमाऊं के कत्युरी राजवंश की ईष्ट देवी माना जाता है।
प्रश्न 15: राजजात यात्रा में श्रद्धालु कौन-कौन से रीति-रिवाज निभाते हैं?
उत्तर:
श्रद्धालु यात्रा के दौरान पूजा, गीत, नृत्य, और चौसिंगा खांडू की सजावट जैसे रीति-रिवाज निभाते हैं।
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