महाकाली मंदिर । पौड़ी गढ़वाल और अल्मोड़ा, उत्तराखंड (Mahakali Temple. Pauri Garhwal and Almora, Uttarakhand)
महाकाली मंदिर । पौड़ी गढ़वाल और अल्मोड़ा, उत्तराखंड
उत्तराखंड के दो जिलों पौड़ी गढ़वाल और अल्मोड़ा के सीमांत क्षेत्रों में बसे 14 गांवों के बडियारी रावतों द्वारा अपनी कुल देवी मां काली के सुंदर और सुशोभित स्वरूप को मां भगवती न्याजा के रूप में पूजा जाता है। यह एक सामूहिक पूजा और धार्मिक यात्रा है, जो गहरी आस्था, श्रद्धा, और विश्वास का प्रतीक है। हर तीन वर्षों के अंतराल में पौष माह में यह धार्मिक अनुष्ठान आयोजित किया जाता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु अपनी मनोकामनाओं के लिए शामिल होते हैं।
कालिंका मंदिर गढ़वाल या अल्मोडा(Kalinka Mandir Garhwal or Almora) |
देवभूमि उत्तराखंड की महिमा
उत्तराखंड को “देवभूमि” कहा जाता है क्योंकि यह क्षेत्र धर्ममय वातावरण और दैविक शक्तियों का केंद्र है। यहाँ विभिन्न प्रसिद्ध मंदिर, सिद्धपीठ, और धार्मिक स्थल स्थित हैं। इन्हीं में से एक है मां भगवती काली का शक्तिपीठ, जो समुद्र तल से लगभग 2100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस स्थान पर नवंबर से फरवरी तक भारी हिमपात की संभावना रहती है। यहां से पूरब से लेकर उत्तर-पश्चिम तक हिमाच्छादित पर्वत श्रृंखलाओं का मनोरम दृश्य दिखाई देता है।
मां कालिंका की ऐतिहासिक यात्रा और पूजा
यह शक्तिपीठ पौड़ी गढ़वाल के विकासखंड बीरोंखाल और अल्मोड़ा जिले के स्याल्दे विकासखंड की सीमाओं के मध्य स्थित है। यहां हर तीन वर्षों में 11 से 14 दिनों की यात्रा के बाद मां कालिंका की पूजा की जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस स्थान की शुरुआत 17वीं शताब्दी में हुई थी।
जय माँ कालिंका! गढ़ और कुमाऊ देवी |
मां काली की स्थापना की पौराणिक कथा
कहा जाता है कि बडियारी रावत वंशजों के पूर्वज लैली बूबा जी ने मां काली के दर्शन प्राप्त किए थे। मां काली ने उन्हें अपने परिवार और क्षेत्र की रक्षा का आशीर्वाद दिया और अपने मंदिर की स्थापना के लिए निर्देशित किया।
गोरखा आक्रमण और बूबा जी का बलिदान: सन 1790 में गोरखा सेना ने कुमाऊं और गढ़वाल पर आक्रमण किया, जिसके बाद स्थानीय लोग जंगलों और गुफाओं में छुपने के लिए विवश हो गए। लैली बूबा जी ने अपने परिवार की रक्षा के लिए पाखापाणी क्षेत्र में एक गुफा बनाई। उन्होंने गोरखा सेना से लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की।
मां काली का थान: लैली बूबा जी ने मां काली के पहले थान की स्थापना बंदरकोट गांव में की। उनके बाद उनके पुत्रों ने मां काली के इस स्थान को आगे बढ़ाया। कालांतर में, मां काली ने अपने स्थान को बदलने का आदेश दिया और वर्तमान मंदिर की स्थापना हुई।
बडियारी रावतों की वंशावली
लैली बूबा जी के सात बेटों – मंगू, जीमा, केम्पू, कल्वा, दन्तु, नथू, और मौल्या – के परिवार आज 14 गांवों में बसे हुए हैं। इनके वंशज वर्तमान में पौड़ी गढ़वाल और अल्मोड़ा जिले के विभिन्न क्षेत्रों में निवास करते हैं।
वंश विभाजन:
मंगू बूबा जी का परिवार: मवाण बाखली, धोबीघाट, कोठा मल्ला (पौड़ी गढ़वाल), तनसालीसैंण, बाखली, रानीडेरा (अल्मोड़ा)।
जीमा बूबा जी का परिवार: मवाण बाखली (पौड़ी गढ़वाल), मल्ला लखोरा (अल्मोड़ा)।
केम्पू बूबा जी का परिवार: कोठा तल्ला (पौड़ी गढ़वाल)।
कल्वा बूबा जी का परिवार: मरखोला (पौड़ी गढ़वाल), मठखानी (अल्मोड़ा)।
दन्तु बूबा जी का परिवार: तनसाली सैंण (अल्मोड़ा), बन्दरकोट तल्ला (पौड़ी गढ़वाल)।
नथू बूबा जी का परिवार: मठखानी (अल्मोड़ा), बंदरकोट मल्ला (पौड़ी गढ़वाल)।
मौल्या बूबा जी का परिवार: थबड़िया तल्ला (पौड़ी गढ़वाल)।
कालिंका मंदिर का महत्व
यह मंदिर प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक धरोहर का संगम है। यहां हर तीन वर्षों में आयोजित धार्मिक अनुष्ठान और मेले में श्रद्धालु एकत्रित होते हैं। मां कालिंका की पूजा उनके भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करने और उनके जीवन में सुख-समृद्धि लाने का प्रतीक है।
निष्कर्ष
उत्तराखंड के कालिंका मंदिर का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व अत्यधिक है। यह स्थान न केवल श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है, बल्कि उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित और प्रचारित करने का भी माध्यम है। मां काली के इस पवित्र धाम की यात्रा आपको आध्यात्मिक शांति और अद्वितीय अनुभव प्रदान करती है।
FAQs: महाकाली मंदिर (Kalinka Temple)
महाकाली मंदिर कहाँ स्थित है?
महाकाली मंदिर उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल और अल्मोड़ा जिलों की सीमा पर, समुद्र तल से लगभग 2100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह स्थान प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक महत्व का संगम है।महाकाली मंदिर की पूजा कब होती है?
इस मंदिर में प्रत्येक तीन वर्षों के अंतराल पर पौष माह में बडियारी रावतों द्वारा 11 से 14 दिनों तक पूजा-अर्चना और धार्मिक यात्रा का आयोजन होता है।महाकाली मंदिर की स्थापना से जुड़ी पौराणिक कथा क्या है?
ऐसा माना जाता है कि बडियारी रावतों के पूर्वज लैली बूबा जी को मां काली ने स्वप्न में दर्शन दिए और अपने मंदिर (थान) की स्थापना का आदेश दिया। पहले थान की स्थापना बंदरकोट गांव में हुई थी।यह धार्मिक आयोजन किसके द्वारा संचालित होता है?
यह आयोजन 14 गांवों में विभाजित बडियारी रावतों द्वारा सामूहिक रूप से किया जाता है।महाकाली मंदिर का ऐतिहासिक महत्व क्या है?
यह मंदिर नेपाल की गोरखा सेना के आक्रमणों के समय से जुड़ी घटनाओं का साक्षी है। लैली बूबा जी ने गोरखा सेना से संघर्ष करते हुए अपने परिवार और क्षेत्र की रक्षा के लिए मां काली की कृपा प्राप्त की थी।मंदिर तक कैसे पहुंचा जा सकता है?
महाकाली मंदिर तक पहुंचने के लिए पौड़ी गढ़वाल और अल्मोड़ा से स्याल्दे ब्लॉक की सीमा पर ट्रेकिंग करनी पड़ती है। यह स्थान ऊंचाई और हिमालयी जंगलों के बीच स्थित है।क्या यह स्थान पर्यटकों के लिए खुला है?
हाँ, यह स्थान धार्मिक महत्व के साथ-साथ पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है, खासकर प्राकृतिक सौंदर्य और हिमालयी दृश्यावलियों के कारण।मंदिर के आसपास का मौसम कैसा रहता है?
नवंबर से फरवरी के बीच यहां भारी हिमपात हो सकता है। अन्य महीनों में यह स्थान शांत और सुरम्य रहता है।इस मंदिर से कौन-कौन से गांव जुड़े हुए हैं?
इस मंदिर से जुड़े 14 गांवों में कोठा मल्ला, मवाण बाखली, धोबीघाट, तनसाली सैंण, मठखानी, और मरखोला आदि शामिल हैं।महाकाली मंदिर का धार्मिक महत्व क्यों है?
यह स्थान शक्ति की देवी मां काली का प्रमुख शक्तिपीठ है, जहां भक्त अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए दर्शन और पूजा करते हैं।
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