महासू देवता मंदिर, देहरादून – एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल (Mahasu Devta Temple, Dehradun – A Historical and Religious Site)

महासू देवता मंदिर, देहरादून – एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल

परिचय

उत्तराखंड की देवभूमि, जो अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है, उसमें महासू देवता मंदिर एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। यह मंदिर देहरादून जिले के हनोल गांव में स्थित है और अपने ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व के लिए अत्यधिक प्रसिद्ध है। इस मंदिर को महासू देवता की पूजा करने का केंद्र माना जाता है, जिन्हें न्याय के देवता के रूप में पूजा जाता है। यह स्थान विशेष रूप से जौनसार-बावर क्षेत्र के लोगों के बीच आस्था का केंद्र है।


महासू देवता की पूजा और महिमा

महासू देवता को न्याय का देवता माना जाता है। उनके बारे में कहा जाता है कि वह अपने भक्तों के मामलों में न्याय करते हैं और पीड़ितों को उनकी परेशानियों से मुक्ति दिलाते हैं। उनकी पूजा खासतौर पर गांवों में होती है, जहां लोग अपनी समस्याओं का समाधान पाने के लिए मंदिर में अर्जी लगाते हैं। यह पूजा बहुत ही पारंपरिक तरीके से की जाती है, जिसमें लोक देवताओं का आह्वान होता है और न्याय का आशीर्वाद प्राप्त करने की कामना की जाती है।

राष्ट्रपति भवन से कनेक्शन

हम बात कर रहे हैं देहरादून के जनजातीय क्षेत्र जौनसार-बावर स्थित महासू देवता मंदिर की. प्रसिद्ध महासू देवता का यह मंदिर चकराता के पास हनोल गांव में टोंस नदी के पूर्वी तट पर स्थित है. लोगों की आस्था उन्हें इस पवित्र धाम में खींच लाती है. मंदिर की दिव्यता के बारे में सुनकर ही देश के अन्य प्रांतों से भारी संख्या में श्रद्धालु यहां शीष नवाने आते हैं. मंदिर की बेजोड़ वास्तु और स्थापत्यकला लोगों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती है. इस मंदिर में श्रद्धालुओं को प्रकृति के साथ ही मिश्रित शैली की स्थापत्य कला को देखने का मौका मिलता है. इस मंदिर को पुरातत्व सर्वेक्षण में भी शामिल किया गया है. महासू देवता जौनसार बावर के साथ ही हिमाचल प्रदेश के ईष्ट देव भी हैं. इसके साथ ही महासू देवता मंदिर का राष्ट्रपति भवन से भी सीधा कनेक्शन है. मंदिर में हर साल दिल्ली से राष्ट्रपति भवन की ओर से नमक भेंट किया जाता है.

महासू असल में एक देवता नहीं बल्कि 4 देवताओं का सामूहिक नाम है. स्थानीय भाषा में महासू शब्द का अर्थ भगवान शिव से है. चारों महासू भाइयों के नाम बासिक महासू, पबासिक महासू, बूठिया महासू (बौठा महासू) और चालदा महासू है, जो सभी बाबा भोलेनाथ के ही रूप हैं. इनमें बासिक महासू बड़े हैं, जबकि बौठा महासू, पबासिक महासू, चालदा महासू दूसरे तीसरे और चौथे नंबर पर हैं. मान्यता है कि महासू ने किसी शर्त पर हनोल का यह मंदिर जीता था. वहीं, इनकी पालकी को लोग पूजा-अर्चना के लिए नियमित अंतराल पर एक जगह से दूसरी जगह प्रवास पर ले जाते हैं. बौठा महासू के हनोल मंदिर में छात्रा गांव के लोग पुजारी हैं. चारों देवताओं के जौनसार बावर में चार छोटे-छोटे पुरानी मंदिर भी स्थित है.

महासू मंदिर के 4 दरवाजे

महासू मंदिर में प्रवेश के 4 दरवाजे हैं. प्रवेशद्वार की छत पर नव ग्रह सूर्य, चंद्रमा, गुरू, बुध, शुक्र, शनि, मंगल, केतु व राहु की कलाकृति बनी है. पहले और दूसरे द्वार पर विभिन्न देवी-देवताओं की आकृतियां उकेरी गई हैं. वहीं, दूसरे द्वार पर ढोल नगाड़े के साथ पूजा-अर्चना होती है. तीसरे द्वार पर स्थानीय लोग, श्रद्धालु और सैलानी माथा टेकते हैं. अंतिम द्वार से गर्भ गृह में सिर्फ पुजारी को ही जाने की अनुमति है और वह भी पूजा के समय ही जा सकते हैं. किवदंतियां हैं कि पांडवों ने घाटा पहाड़ के पत्थरों को ढोकर विश्वकर्मा जी से हनोल मंदिर का निर्माण कराया था.

मंदिर में जलती है अखंड ज्योति

बताया जाता है कि गर्भगृह में एक दिव्य ज्योत सदैव जलती रहती है और मंदिर के अंदर ही जल की धारा निकलती है, जिसका जल बाहर नहीं दिखता. जल को ही यहां प्रसाद के रूप में दिया जाता है. किवदंती है कि त्यूणी-मोरी रोड पर बना महासू देवता का मंदिर जिस गांव में बना है उस गांव का नाम हुना भट्ट ब्राह्मण के नाम पर रखा गया है. पहले इस स्थान को चकरपुर के रूप में जानी जाता था. बताया जाता है कि पांडव लाक्षागृह से निकलकर यहां आए थे. इसलिए हनोल का मंदिर श्रद्धालुओं के लिए किसी तीर्थ स्थान से कम नहीं है. महासू देवता मंदिर को पांचवें धाम के रूप में दर्जा देने की मांग चल रही है.

जानकारों की राय

इतिहास के जानकार श्रीचंद शर्मा बताते हैं कि जौनसार बावर प्राचीन देश रहा है. जौनसार बावर में पांडवों का सम्मान भी रहा है और यह मान्यता प्रबल हो जाती है कि काष्ट कला के मंदिर के अनेक आयाम जुड़े हैं, जिनके भक्त स्थानीय ही नहीं देश के अन्य प्रांतों के लोग भी हैं. साथ ही लोगों द्वारा मंदिर में पूजा सामग्री भेजी जाती रही है.वहीं सामाजिक कार्यकर्ता भारत चौहान महासू देवता को न्याय प्रिय देवता मानते हैं. उन्होंने बताया कि संपूर्ण विश्व में जो भी शक्तिशाली होता है उससे न्याय की उम्मीद होती है. इसी प्रकार से जौनसार बावर के आराध्य महासू देवता पर हिमाचल, जौनपुर, टिहरी गढ़वाल के लोग अटूट श्रद्धा रखते हैं और न्याय की गुहार लगाते हैं.हनोल महासू मंदिर के पुजारी राय दत्त जोशी का कहना है कि दिल्ली से गूगल धूप डाक द्वारा प्रतिवर्ष भेजा जाता है, लेकिन यह पता नहीं है कि कौन इसे भेजता है. हर वर्ष यह गूगल धूप हनोल मंदिर को प्राप्त होता है. उन्होंने बताया कि जो भी लोग कोर्ट कचहरी से थक हार जाते हैं वह हनोल मंदिर में अपनी सच्ची आस्था से न्याय दिलाने के साथ ही कष्टों के निवारण के लिए फरियाद कर सकते हैं. लोगों का मानना है कि सच्चे मन से उपासना करने से हर मुराद यहां पूरी होती है.

महासू देवता के पूजन का तरीका
महासू देवता की पूजा बहुत खास है। पूजा के दौरान, खासतौर पर भोग, हवन और यज्ञ का आयोजन किया जाता है। यज्ञ में समिधा, गाय के घी और विशेष लकड़ी का उपयोग होता है। लोक संगीत, भजन और गीत भी पूजा में हिस्सा होते हैं, जो वातावरण को एक धार्मिक और शांति से भर देते हैं।


हनोल गांव का इतिहास और संस्कृति

हनोल गांव देहरादून जिले के जौनसार-बावर क्षेत्र में स्थित है और महासू देवता के मंदिर के कारण यह क्षेत्र अत्यधिक धार्मिक महत्व रखता है। हनोल गांव का ऐतिहासिक महत्व भी है, क्योंकि यह क्षेत्र प्राचीन समय में हिमालयी बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म के मिलन का केंद्र था। यहां के निवासी मुख्य रूप से गढ़वाली और हिमाचली समुदाय के हैं, जो अपनी विशिष्ट संस्कृति, भाषाओं और रीति-रिवाजों के लिए प्रसिद्ध हैं।

हिमालयी संस्कृति का प्रभाव
हनोल गांव में देखने को मिलती है हिमालयी संस्कृति का गहरा प्रभाव। यहां के लोग अपनी पारंपरिक वेशभूषा में नजर आते हैं, और उनके रीति-रिवाज भी खास होते हैं। गांव के लोग खेती, पशुपालन और पारंपरिक कारीगरी में लगे होते हैं। साथ ही, यहां के लोक गीत, नृत्य और कला का भी बड़ा महत्व है।


महासू देवता मंदिर का वास्तुशिल्प और संरचना

महासू देवता मंदिर की संरचना बहुत ही अद्वितीय और आकर्षक है। यह मंदिर पारंपरिक गढ़वाली वास्तुकला का बेहतरीन उदाहरण है। मंदिर की छत की संरचना, दरवाजे, और दीवारों पर उकेरे गए धार्मिक चित्र और प्रतीक बहुत ध्यान आकर्षित करते हैं। मंदिर के अंदर एक छोटी सी जगह है जहां महासू देवता की मूर्ति रखी गई है। यहां की वास्तुशिल्प शैली प्राकृतिक लकड़ी और पत्थर के संयोजन से बनी हुई है, जो इसे एक प्राचीन लेकिन मजबूत संरचना प्रदान करती है।


महासू देवता मंदिर की धार्मिक महत्ता

महासू देवता का मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह क्षेत्र के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का हिस्सा है। यहां आने वाले श्रद्धालु केवल पूजा करने के लिए नहीं, बल्कि अपने व्यक्तिगत जीवन के दुखों और समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए भी आते हैं। इस मंदिर का धार्मिक महत्व इसलिए भी है क्योंकि यहां पर लोग अपनी समस्याओं को देवता के सामने रखते हैं और अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव की कामना करते हैं।


मंदिर तक पहुंचने का मार्ग

देहरादून से महासू देवता मंदिर तक पहुंचने के लिए कई मार्ग उपलब्ध हैं। आप यहां सड़क मार्ग, बस, और निजी वाहन से पहुंच सकते हैं। देहरादून से लगभग 45 किलोमीटर की दूरी पर हनोल गांव स्थित है, और इस यात्रा में आपको पहाड़ी रास्तों से गुजरना पड़ता है। यह रास्ता दर्शनीय है, जहां आप हिमालयी वन्यजीवन, झरनों और खूबसूरत पहाड़ों का दृश्य देख सकते हैं।

गाड़ी से यात्रा
देहरादून से हनोल तक जाने के लिए गाड़ी या टैक्सी की सेवाएं उपलब्ध हैं। आप मसूरी, विकासनगर होते हुए हनोल पहुंच सकते हैं। रास्ते में हरियाली, पहाड़ों और जलप्रपातों का आनंद लिया जा सकता है।


विशेष पर्व और मेले

महासू देवता मंदिर में विशेष अवसरों पर मेलों और त्यौहारों का आयोजन होता है। यहां प्रमुख पर्व महासू मेला, नाग पंचमी, और दीपावली जैसे अवसरों पर विशेष अनुष्ठान और पूजा होती है। इन पर्वों के दौरान मंदिर के आस-पास गांववाले और श्रद्धालु इकट्ठा होते हैं और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं।

महासू मेला
महासू मेला एक प्रसिद्ध मेला है, जो हर साल महासू देवता के पूजन के दौरान आयोजित होता है। इस मेले में दूर-दूर से लोग आते हैं और मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं। यह मेला धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का एक आदान-प्रदान बन जाता है।


महासू देवता की पूजा से जुड़ी लोककथाएं और मान्यताएं

महासू देवता की पूजा से जुड़ी कई लोककथाएं और मान्यताएं हैं, जो उनके भक्तों में विश्वास और आस्था को बनाए रखती हैं। इन कथाओं में महासू देवता के न्याय और बलिदान की कहानियां सुनाई जाती हैं, जो उन्हें एक आदर्श देवता के रूप में प्रस्तुत करती हैं।

लोककथा - महासू देवता का न्याय
एक प्रचलित लोककथा है जिसमें महासू देवता ने एक गांव के राजा के खिलाफ न्याय किया था, जो गरीबों से अत्याचार कर रहा था। देवता ने अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए राजा को सजा दिलवाया और उसके अत्याचारों का अंत किया। यह कथा महासू देवता के न्यायप्रिय स्वभाव को दर्शाती है।


आधुनिक समय में महासू देवता मंदिर

आजकल, महासू देवता मंदिर केवल स्थानीय लोगों का ही नहीं, बल्कि पर्यटकों का भी ध्यान आकर्षित करता है। मंदिर के आसपास का क्षेत्र प्राकृतिक सुंदरता से भरा हुआ है, और यहां आने वाले लोग न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि पर्यटन की दृष्टि से भी इस क्षेत्र का आनंद लेते हैं। इसके अलावा, सरकार और स्थानीय प्रशासन इस मंदिर के संरक्षण और विकास के लिए प्रयासरत हैं।


सारांश

महासू देवता मंदिर, देहरादून का एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है, जो न केवल अपनी धार्मिक महिमा के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां की संस्कृति और ऐतिहासिक धरोहर भी इसे एक खास स्थान देती है। इस मंदिर में आने वाले श्रद्धालु अपने जीवन की समस्याओं का समाधान पाने के लिए देवी-देवताओं से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यह मंदिर धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्वपूर्ण है और भविष्य में इसके महत्व में और वृद्धि हो सकती है।

FAQs: महासू देवता मंदिर, देहरादून

  1. महासू देवता मंदिर कहाँ स्थित है? महासू देवता मंदिर देहरादून जिले के हनोल गांव में स्थित है, जो जौनसार-बावर क्षेत्र के अंतर्गत आता है।

  2. महासू देवता कौन हैं और उनकी पूजा क्यों की जाती है? महासू देवता को न्याय के देवता के रूप में पूजा जाता है। वे अपने भक्तों के मामलों में न्याय करते हैं और पीड़ितों को राहत दिलाते हैं। खासकर जौनसार-बावर क्षेत्र के लोग उन्हें न्याय और कष्टों से मुक्ति के लिए पूजते हैं।

  3. महासू देवता मंदिर के 4 दरवाजे क्यों हैं? महासू देवता मंदिर में चार दरवाजे हैं, जो मंदिर के महत्व और धार्मिक विविधताओं को दर्शाते हैं। पहले और दूसरे द्वार पर देवी-देवताओं की आकृतियां उकेरी गई हैं, तीसरे द्वार पर श्रद्धालु पूजा करते हैं, और अंतिम द्वार से केवल पुजारी को गर्भगृह में प्रवेश की अनुमति है।

  4. महासू देवता के मंदिर में कौन सी विशेषताएँ हैं? महासू देवता मंदिर की विशेषता इसकी स्थापत्य कला में निहित है, जो पारंपरिक गढ़वाली शैली में बनी हुई है। मंदिर में एक दिव्य ज्योत हमेशा जलती रहती है, और यहां जल की धारा प्रसाद के रूप में दी जाती है।

  5. महासू देवता मंदिर तक कैसे पहुँचा जा सकता है? देहरादून से हनोल गांव तक सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है। यहां तक पहुँचने के लिए टैक्सी, बस और निजी वाहन की सेवाएं उपलब्ध हैं। रास्ते में सुंदर प्राकृतिक दृश्य, पहाड़ी झरने और हिमालयी वन्यजीवन का अनुभव किया जा सकता है।

  6. महासू देवता मंदिर में कौन से प्रमुख त्यौहार और मेले होते हैं? महासू देवता मंदिर में प्रमुख त्यौहार और मेले जैसे महासू मेला, नाग पंचमी, और दीपावली के अवसर पर विशेष पूजा-अर्चना और अनुष्ठान होते हैं। इन पर्वों पर मंदिर में सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं।

  7. क्या महासू देवता मंदिर का राष्ट्रपति भवन से कोई कनेक्शन है? हाँ, महासू देवता मंदिर का राष्ट्रपति भवन से सीधा कनेक्शन है। हर साल दिल्ली से राष्ट्रपति भवन की ओर से नमक भेंट किया जाता है, जो इस मंदिर की धार्मिक और सांस्कृतिक महिमा को दर्शाता है।

  8. महासू देवता के पूजा का तरीका क्या है? महासू देवता की पूजा पारंपरिक तरीके से की जाती है, जिसमें भोग, हवन और यज्ञ का आयोजन किया जाता है। पूजा के दौरान लोक संगीत, भजन और गीत भी होते हैं, जो वातावरण को शांत और धार्मिक बनाते हैं।

  9. महासू देवता मंदिर की किवदंतियाँ क्या हैं? महासू देवता की पूजा से जुड़ी कई किवदंतियाँ हैं, जिनमें एक प्रचलित कथा है जिसमें महासू देवता ने गांव के राजा के खिलाफ न्याय किया था और उसके अत्याचारों का अंत किया था।

  10. क्या महासू देवता मंदिर एक पर्यटन स्थल भी है? हां, महासू देवता मंदिर धार्मिक स्थल होने के साथ-साथ एक प्रमुख पर्यटन स्थल भी है। यहां के प्राकृतिक दृश्य और हिमालयी संस्कृति का अनुभव पर्यटकों को आकर्षित करता है।

  11. महासू देवता मंदिर के आस-पास कौन सी अन्य धार्मिक स्थल हैं? महासू देवता मंदिर के आसपास अन्य कई धार्मिक स्थल भी हैं, जिनमें बौठा महासू, पबासिक महासू, और चालदा महासू के मंदिर शामिल हैं। इन स्थानों पर भी श्रद्धालु पूजा-अर्चना के लिए आते हैं।

  12. महासू देवता मंदिर का ऐतिहासिक महत्व क्या है? महासू देवता मंदिर का ऐतिहासिक महत्व इस तथ्य से जुड़ा है कि इसे पांडवों के समय से जुड़ा हुआ माना जाता है। यह क्षेत्र प्राचीन काल में हिमालयी बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म के मिलन का केंद्र था।

  13. क्या महासू देवता की पूजा केवल जौनसार-बावर क्षेत्र के लोग ही करते हैं? नहीं, महासू देवता की पूजा न केवल जौनसार-बावर क्षेत्र के लोग करते हैं, बल्कि हिमाचल प्रदेश, टिहरी गढ़वाल और अन्य क्षेत्रों से भी लोग इस मंदिर में आकर पूजा करते हैं और न्याय की प्राप्ति की कामना करते हैं।

  14. क्या महासू देवता मंदिर में हर वर्ष कुछ विशेष सामग्री भेजी जाती है? हां, मंदिर में हर साल दिल्ली से गूगल धूप भेजा जाता है, जिसे अनजान व्यक्ति भेजते हैं। यह गूगल धूप मंदिर के पुजारियों द्वारा स्वीकार किया जाता है और पूजा में उपयोग किया जाता है।

  15. महासू देवता की पूजा से जुड़ी कोई अन्य लोककथा क्या है? एक अन्य लोककथा के अनुसार, महासू देवता ने एक बार एक असत्य का पर्दाफाश किया था और न्याय का पालन करते हुए किसी दोषी को सजा दिलवायी थी। यह कथा देवता की न्यायप्रियता को उजागर करती है।

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