जोशीमठ का नृसिंह मंदिर: भगवान नृसिंह का शांत रूप (Narasimha Temple of Joshimath: The peaceful form of Lord Narasimha)
जोशीमठ का नृसिंह मंदिर: भगवान नृसिंह का शांत रूप
भारत के विभिन्न हिस्सों में भगवान नृसिंह के कई मंदिर हैं, जहां वे रौद्र रूप में पूजे जाते हैं, लेकिन उत्तराखंड के देवभूमि में बद्रीनाथ मार्ग पर एक ऐसा मंदिर स्थित है, जहां भगवान नृसिंह को शांत रूप में पूजा जाता है। यह मंदिर चमोली जिले के जोशीमठ में स्थित गंधमादन पर्वत पर है, और इसे नृसिंह बदरी मंदिर भी कहा जाता है। यह दुनिया का इकलौता मंदिर है, जहां भगवान नृसिंह को शांत रूप में पूजा जाता है।
नृसिंह मंदिर की विशेषता
भगवान नृसिंह की 10 इंच की प्रतिमा इस मंदिर में विराजमान है, जिसमें वे कमल पर बैठे हुए हैं। मंदिर की मान्यता के अनुसार, यहां भगवान नृसिंह के दर्शन करने से सभी दुख, शत्रु बाधा और कष्ट दूर होते हैं। खास बात यह है कि नृसिंह भगवान की बाईं भुजा समय के साथ घिसने लगी है, और इसे संसार में निहित पाप से जोड़ा जाता है।
सनत कुमार संहिता की मान्यता
केदारखंड के सनत कुमार संहिता के अनुसार, जिस दिन भगवान नृसिंह की बाईं भुजा टूट जाएगी, उस दिन विष्णुप्रयाग के पास स्थित पटमिला नामक स्थान पर जय और विजय पर्वत मिलकर एक हो जाएंगे और तब बद्रीनाथ मंदिर का मार्ग हमेशा के लिए बंद हो जाएगा। इसके बाद जोशीमठ के तपोवन क्षेत्र में स्थित भविष्य बद्री मंदिर में भगवान बद्रीनाथ के दर्शन होंगे।
नृसिंह अवतार का महत्व
भगवान नृसिंह का अवतार भगवान विष्णु का चौथा अवतार है, जो शेर के सिर और मनुष्य के शरीर में अवतरित हुए थे। यह अवतार हिरण्यकशिपु के संहार और भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए लिया गया था। जोशीमठ के इस मंदिर में भगवान नृसिंह के साथ उद्धव और कुबेर के विग्रह भी स्थापित हैं। इस मंदिर की स्थापना के बारे में कई मान्यताएं हैं, जिनमें से कुछ लोग मानते हैं कि मूर्ति स्वयं प्रकट हुई थी।
आदि गुरु शंकराचार्य और नृसिंह मंदिर
आदि गुरु शंकराचार्य से इस मंदिर का भी गहरा संबंध है। राजतरंगिणी ग्रंथ के अनुसार, आठवीं शताब्दी में कश्मीर के राजा ललितादित्य ने नृसिंह मंदिर का निर्माण उग्र नृसिंह की पूजा के लिए किया था। वहीं कुछ मान्यताओं के अनुसार, आदि गुरु शंकराचार्य ने स्वयं भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप की स्थापना की थी। आज भी इस मंदिर में आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी स्थापित है, जिसे श्रद्धालु विशेष आदर से देखते हैं।
नृसिंह द्वादशी और मंदिर की महिमा
फाल्गुन महीने के शुक्लपक्ष की द्वादशी को नृसिंह द्वादशी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन विशेष रूप से भगवान नृसिंह की पूजा होती है। जोशीमठ में भगवान नृसिंह के दर्शन बिना बद्रीनाथ यात्रा अधूरी मानी जाती है। मंदिर में भगवान नृसिंह के साथ राम, सीता, हनुमान जी, गरुड़, और कालिका माता की मूर्तियां भी स्थापित हैं।
मंदिर में शालिग्राम पत्थर की मूर्ति
इस मंदिर में भगवान नृसिंह की मूर्ति शालिग्राम पत्थर से बनी है, जो आठवीं शताब्दी में कश्मीर के राजा ललितादित्य के शासनकाल के दौरान स्थापित की गई थी। कुछ मान्यताएं कहती हैं कि मूर्ति स्वयं-प्रकट हो गई थी।
जोशीमठ का यह नृसिंह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यहां की आस्था और परंपराएं भी इस स्थान को एक अद्वितीय महत्व प्रदान करती हैं। बद्रीनाथ यात्रा से पहले यहां के दर्शन करना प्रत्येक श्रद्धालु के लिए अत्यधिक पुण्यकारी माना जाता है।
नृसिंह मंदिर, जोशीमठ - अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
जोशीमठ में नृसिंह मंदिर कहाँ स्थित है?
- जोशीमठ के गंधमादन पर्वत पर स्थित नृसिंह मंदिर उत्तराखंड में है। यह मंदिर भगवान नृसिंह के शांत रूप की पूजा के लिए प्रसिद्ध है।
भगवान नृसिंह की मूर्ति किस रूप में स्थापित है?
- मंदिर में भगवान नृसिंह की 10 इंच की मूर्ति शालिग्राम पत्थर से बनी है, जिसमें वे कमल पर विराजमान हैं।
नृसिंह मंदिर की स्थापना कब हुई थी?
- नृसिंह मंदिर की स्थापना के बारे में कई मान्यताएं हैं। एक मान्यता के अनुसार, आठवीं शताब्दी में कश्मीर के राजा ललितादित्य ने इस मंदिर का निर्माण किया था।
नृसिंह मंदिर में भगवान नृसिंह के अलावा और कौन-कौन से देवता की मूर्तियां हैं?
- नृसिंह के अलावा, इस मंदिर में भगवान राम, माता सीता, हनुमान जी, गरुड़, कालिका माता, उद्धव और कुबेर की मूर्तियां भी स्थापित हैं।
नृसिंह मंदिर की विशेषता क्या है?
- इस मंदिर की विशेषता यह है कि भगवान नृसिंह को शांत रूप में पूजा जाता है। इसके अलावा, भगवान नृसिंह की बाईं भुजा समय के साथ घिसने लगी है, जिसे संसार के पाप से जोड़ा जाता है।
क्या नृसिंह मंदिर का संबंध बद्रीनाथ से है?
- हाँ, यह मंदिर बद्रीनाथ धाम से संबंधित है। माना जाता है कि जोशीमठ में भगवान नृसिंह के दर्शन किए बिना बद्रीनाथ यात्रा अधूरी मानी जाती है।
नृसिंह द्वादशी कब मनाई जाती है और इसका महत्व क्या है?
- नृसिंह द्वादशी फाल्गुन महीने के शुक्लपक्ष की द्वादशी को मनाई जाती है। यह दिन विशेष रूप से भगवान नृसिंह की पूजा के लिए महत्वपूर्ण है।
नृसिंह मंदिर में दर्शन करने से क्या लाभ होता है?
- मंदिर में भगवान नृसिंह के दर्शन से सभी दुख, शत्रु बाधा और कष्ट दूर होने की मान्यता है। कहा जाता है कि यहां मन्नतें पूरी होती हैं और भगवान नृसिंह भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी करते हैं।
क्या नृसिंह मंदिर की मूर्ति स्वयं प्रकट हुई थी?
- कुछ मान्यताओं के अनुसार, नृसिंह की मूर्ति स्वयं-प्रकट हुई थी और बाद में इसे स्थापित किया गया।
आदि गुरु शंकराचार्य का नृसिंह मंदिर से क्या संबंध है?
- आदि गुरु शंकराचार्य का इस मंदिर से गहरा संबंध है। माना जाता है कि उन्होंने ही नृसिंह भगवान के शालिग्राम स्वरूप की स्थापना की थी। इस मंदिर में उनकी गद्दी भी स्थित है।
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