उत्तराखंड पृथक राज्य गठन की मांग से संबंधित संस्थाएं (Organizations demanding separate state of Uttarakhand)

उत्तराखंड पृथक राज्य गठन की मांग से संबंधित संस्थाएं

उत्तराखंड के पृथक राज्य के गठन के लिए कई संस्थाओं और आंदोलनों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन संस्थाओं ने उत्तराखंड की पहचान और स्वतंत्र राज्य के लिए संघर्ष किया। इन आंदोलनों ने उत्तराखंड के लोगों को जागरूक किया और एक मजबूत राज्य आंदोलन की नींव रखी।

आइए जानते हैं, उत्तराखंड राज्य गठन के लिए प्रमुख संस्थाओं के बारे में:

  1. कुमाऊँ परिषद् (1916)
    कुमाऊं क्षेत्र में उत्तराखंड के पृथक राज्य की आवश्यकता को महसूस किया गया और कुमाऊं परिषद् की स्थापना की गई। यह संस्था 1916 में स्थापित हुई थी और इसका उद्देश्य उत्तराखंड के विभिन्न मुद्दों को उठाना था।

  2. हिमालय सेवा संघ (1938)
    हिमालय सेवा संघ की स्थापना 1938 में हुई थी। यह संस्था उत्तराखंड की पर्वतीय जीवनशैली, संस्कृति और विकास के लिए काम करती रही। इसकी शुरुआत का उद्देश्य पर्वतीय क्षेत्रों के सामाजिक और आर्थिक विकास को बढ़ावा देना था।

  3. गढ़वाल जागृति संस्था (1939)
    गढ़वाल क्षेत्र में सामाजिक जागरूकता लाने के लिए 1939 में गढ़वाल जागृति संस्था का गठन किया गया। यह संस्था राज्य गठन के संघर्ष में सक्रिय रूप से भागी रही और गढ़वाल क्षेत्र के विकास के लिए आवाज उठाई।

  4. पर्वतीय विकास जन समिति (1950)
    पर्वतीय क्षेत्रों में विकास की आवश्यकता को महसूस करते हुए पर्वतीय विकास जन समिति की स्थापना की गई। यह संस्था स्थानीय समस्याओं को हल करने और पर्वतीय क्षेत्रों के विकास के लिए कार्यरत रही।

  5. पर्वतीय राज्य परिषद् (1950)
    पर्वतीय राज्य परिषद् की स्थापना भी 1950 में हुई थी, जिसका मुख्य उद्देश्य उत्तराखंड को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में देखना था। इस परिषद ने पर्वतीय राज्य की आवश्यकता पर बल दिया और इसके लिए कई आंदोलनों का समर्थन किया।

  6. कुमाऊं राष्ट्रीय मोर्चा (1970)
    कुमाऊं राष्ट्रीय मोर्चा ने उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र के लिए पृथक राज्य की मांग उठाई। इस मोर्चे ने राज्य गठन के मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर उभारा और आंदोलन को मजबूती दी।

  7. पृथक पर्वतीय राज्य परिषद (1973)
    1973 में पृथक पर्वतीय राज्य परिषद का गठन हुआ, जो उत्तराखंड को पृथक राज्य बनाने के लिए सशक्त रूप से सक्रिय रही। इस परिषद ने आंदोलन को सही दिशा में आगे बढ़ाया।

  8. उत्तराखंड यूथ काउन्सिल (1976)
    उत्तराखंड यूथ काउन्सिल का गठन 1976 में हुआ था, और इसका उद्देश्य उत्तराखंड की युवा शक्ति को एकत्रित कर राज्य निर्माण की दिशा में कार्य करना था। इस काउन्सिल ने युवाओं को राज्य आंदोलन से जोड़ा और आंदोलन को नया उत्साह दिया।

  9. उत्तराखंड क्रांति दल (यू० के० डी०) (1979)
    उत्तराखंड क्रांति दल (UKD) की स्थापना 1979 में हुई थी, और यह राज्य गठन के आंदोलन का एक प्रमुख संगठन बनकर उभरा। UKD ने राज्य निर्माण के लिए संघर्ष को तेज किया और इस आंदोलन को जन समर्थन प्रदान किया।

  10. उत्तराखंड उत्थान परिषद् (1988)
    उत्तराखंड उत्थान परिषद् की स्थापना 1988 में हुई थी, जो राज्य गठन की मांग को लेकर व्यापक रूप से सक्रिय रही। इस परिषद ने उत्तराखंड की सामाजिक और आर्थिक समस्याओं को उजागर किया और राज्य गठन के मुद्दे को जन जन तक पहुंचाया।

  11. उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति (1989)
    1989 में उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति का गठन किया गया था, जो राज्य गठन के लिए विभिन्न सामाजिक संगठनों को एकजुट करने का कार्य करती थी। इस समिति ने विभिन्न आंदोलनों और संस्थाओं को एक मंच पर लाकर संघर्ष को और तेज किया।

  12. उत्तराखंड मुक्ति मोर्चा (1991)
    उत्तराखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना 1991 में हुई थी। यह संगठन राज्य गठन के आंदोलन को राजनीतिक रूप से मजबूती प्रदान करने के लिए सक्रिय रहा। इस मोर्चे ने राज्य गठन के लिए व्यापक जन समर्थन जुटाया।

  13. संयुक्त उत्तराखंड राज्य मोर्चा (1994)
    संयुक्त उत्तराखंड राज्य मोर्चा का गठन 1994 में हुआ, और यह संगठन राज्य गठन के लिए संघर्ष में एकीकृत रूप से काम करता रहा। इस मोर्चे ने उत्तराखंड के स्वतंत्र राज्य की आवश्यकता को समाज के हर वर्ग तक पहुंचाया।

  14. उत्तराखंड पीपुल्स फ्रन्ट (यू० पी० एफ०) (1994)
    उत्तराखंड पीपुल्स फ्रन्ट की स्थापना भी 1994 में हुई थी, जो उत्तराखंड को एक स्वतंत्र राज्य बनाने की दिशा में अग्रसर था। इस संगठन ने राज्य गठन के आंदोलन को मजबूती से आगे बढ़ाया और अनेक जन जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए।

निष्कर्ष:
उत्तराखंड राज्य के गठन के लिए विभिन्न संस्थाओं और आंदोलनों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। इन संगठनों के संघर्ष ने राज्य गठन की दिशा में जन जागरूकता और समर्थन बढ़ाया, जो अंततः उत्तराखंड के 2000 में राज्य बनने का कारण बना। इन संस्थाओं के प्रयासों से उत्तराखंड की जनता को एक नया राज्य और पहचान मिली, जो आज भी इन संस्थाओं के योगदान को याद करती है।

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