पप्पू कार्की: कुमाऊंनी संगीत के प्रसिद्ध लोकगायक की प्रेरणादायक जीवनी (Pappu Karki: The immortal singer of Kumaoni music)

पप्पू कार्की: कुमाऊंनी संगीत का अमर गायक

परिचय
पवेंद्र सिंह कार्की, जिन्हें हम प्यार से पप्पू कार्की के नाम से जानते हैं, उत्तराखंड के संगीत जगत का वह सितारा थे जिन्होंने कुमाऊंनी लोक संगीत को नई पहचान दिलाई। उनका जन्म 30 जून 1984 को पिथौरागढ़ जिले के शैलावन गांव में हुआ।

शुरुआती जीवन और शिक्षा
पप्पू कार्की का प्रारंभिक जीवन बेहद साधारण था। उनके पिता स्वर्गीय श्री कृष्ण सिंह कार्की और माता श्रीमती कमला देवी ने उन्हें पारंपरिक संस्कारों के साथ पाला। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा पिथौरागढ़ में प्राप्त की और स्नातक की पढ़ाई थल और बेरीनाग से पूरी की।

संगीत में रुचि और शुरुआत
बचपन से ही संगीत के प्रति गहरा लगाव रखने वाले पप्पू ने अपने पिता से प्रेरणा प्राप्त की। उनकी संगीत यात्रा की शुरुआत रामा कैसेट के साथ हुई, जिसमें उन्होंने पहली बार न्योली गाया। 1989 में अपने करियर की शुरुआत करने वाले पप्पू को कड़ी मेहनत करनी पड़ी।

लोकप्रियता और उपलब्धियां
2010 में आई उनकी एल्बम "झम्म लागदी" सुपरहिट साबित हुई। इसके बाद उनके पास एक के बाद एक हिट गाने आए। उन्होंने 2006 में उत्तराखंड आइडल में दूसरा स्थान हासिल किया और 2009 में सर्वश्रेष्ठ नवोदित लोकगायक का पुरस्कार जीता। 2014 में उन्हें यूका अवॉर्ड और 2015 में मुंबई में गोपाल बाबू गोस्वामी अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।

हिट गाने
उनके प्रसिद्ध गानों में शामिल हैं:

  • ऐ जा रे चैत बैशाखा
  • डीडीहाट की छमना छोरी
  • पहाड़ो ठंडो पांणी
  • तेरी रंगीली पिछौड़ी
  • देवी भगवती मैय्या
  • नीलू छोरी

दुखद निधन
9 जून 2018 को, पप्पू कार्की का कार दुर्घटना में निधन हो गया। यह हादसा हेड़ाखान रोड, हल्द्वानी के पास हुआ। उनकी इस असमय मृत्यु ने उत्तराखंड के संगीत प्रेमियों को गहरे शोक में डाल दिया।

परिवार और सहायता
उनकी पत्नी कविता कार्की और बेटा दक्ष, जो खुद भी संगीत में रुचि रखते हैं, उनके परिवार में हैं। उनके निधन के बाद बॉलीवुड अभिनेता संजय मिश्रा ने उनके बेटे की पढ़ाई का खर्च उठाने का निर्णय लिया।

संगीत और समाज के प्रति योगदान
पप्पू कार्की का मानना था कि युवाओं को अपनी संस्कृति को आगे बढ़ाते हुए आधुनिकता के साथ तालमेल बिठाना चाहिए। उनके गानों में पलायन और पहाड़ों की पीड़ा का दर्द झलकता था।

निष्कर्ष
पप्पू कार्की केवल एक गायक नहीं, बल्कि उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर के संवाहक थे। उनका संगीत हमेशा हमें प्रेरित करता रहेगा और उनकी यादें हमारे दिलों में अमर रहेंगी।

जय उत्तराखंड, जय लोक संगीत!

FQCs: पप्पू कार्की जीवनी

1. पप्पू कार्की कौन थे?

पप्पू कार्की उत्तराखंड के प्रसिद्ध कुमाऊंनी लोकगायक थे, जिन्होंने अपने गानों के माध्यम से पहाड़ी संस्कृति को विश्व भर में पहचान दिलाई।

2. पप्पू कार्की का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

पप्पू कार्की का जन्म 30 जून 1984 को पिथौरागढ़ जिले के शैलावन गांव में हुआ था।

3. पप्पू कार्की के परिवार में कौन-कौन हैं?

उनकी पत्नी का नाम कविता कार्की है, और उनका एक बेटा है जिसका नाम दक्ष कार्की है।

4. पप्पू कार्की ने अपने संगीत करियर की शुरुआत कब और कैसे की?

उन्होंने 1989 में अपने संगीत करियर की शुरुआत रामा कैसेट के साथ की। उनकी पहली रिकॉर्डिंग दिल्ली में हुई, जिसमें उन्होंने न्योली गाया था।

5. पप्पू कार्की की पहली सुपरहिट एल्बम कौन-सी थी?

2010 में रिलीज़ हुई उनकी एल्बम "झम्म लागदी" ने उन्हें अपार लोकप्रियता दिलाई।

6. पप्पू कार्की को कौन-कौन से अवॉर्ड मिले हैं?

  • 2006: उत्तराखंड आइडल (दूसरा स्थान)
  • 2009: सर्वश्रेष्ठ नवोदित लोकगायक का पुरस्कार
  • 2014: बेस्ट सिंगर के लिए यूका अवॉर्ड
  • 2015: गोपाल बाबू गोस्वामी अवॉर्ड (मुंबई)

7. पप्पू कार्की के कुछ प्रसिद्ध गाने कौन-कौन से हैं?

  • ऐ जा रे चैत बैशाखा
  • डीडीहाट की छमना छोरी
  • तेरी रंगीली पिछौड़ी
  • पहाड़ो ठंडो पांणी
  • देवी भगवती मैय्या

8. पप्पू कार्की का निधन कब और कैसे हुआ?

उनका निधन 9 जून 2018 को हेड़ाखान रोड, हल्द्वानी के पास एक कार दुर्घटना में हुआ।

9. पप्पू कार्की उत्तराखंड के युवाओं को क्या संदेश देना चाहते थे?

वह चाहते थे कि युवा अपनी संस्कृति को संरक्षित करते हुए संगीत में आधुनिकता लाएं और नई चीजों के प्रति दिलचस्पी बढ़ाएं।

10. पप्पू कार्की की विरासत को कौन आगे बढ़ा रहा है?

उनका बेटा दक्ष, जो खुद भी संगीत में रुचि रखता है, उनके सपनों को आगे बढ़ा रहा है।

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