पद्मश्री प्रीतम भरतवाण जागर गायन के बादशाह (Pritam Bharatwan: Inspirational Biography of Jagar Samrat | Padma Shri Awardee)
प्रीतम भरतवाण : जागर सम्राट की प्रेरणादायक जीवनी | पद्मश्री सम्मानित
उत्तराखंड के जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण का नाम लोक संगीत की दुनिया में बेहद सम्मान के साथ लिया जाता है। वे न केवल उत्तराखंड बल्कि विदेशों में भी अपने जागर गायन के लिए प्रसिद्ध हैं। लोकगीत, जागर, पवांडा, और घुयांल जैसे पारंपरिक गीतों को उन्होंने वैश्विक मंच पर पहचान दिलाई है।
प्रारंभिक जीवन और संगीत से लगाव
प्रीतम भरतवाण का जन्म उत्तराखंड के देहरादून जिले के रायपुर ब्लॉक के सिला गांव में हुआ। उनके परिवार में संगीत एक परंपरा थी। उनके पिता और दादा जी घर में ढोल, थाली और अन्य वाद्ययंत्र बजाते थे। उन्होंने बचपन से ही थाली बजाकर गीत गाने का अभ्यास शुरू किया।
6 वर्ष की उम्र से प्रीतम ने संगीत की दुनिया में कदम रखा और अपने चाचा तथा पिता के साथ विभिन्न पर्वों और धार्मिक अनुष्ठानों में जागर गाने लगे। उनका पहला सार्वजनिक प्रदर्शन तब हुआ, जब उनके चाचा ने थकावट के चलते उनसे जागर गाने को कहा।
संगीत की औपचारिक शुरुआत
प्रीतम ने अपनी शुरुआती शिक्षा में ही संगीत का प्रदर्शन करना शुरू कर दिया था। तीसरी कक्षा में उन्हें "रामी बौराणी" नाटक में बाल आवाज देने का मौका मिला। इसके बाद स्कूल के कार्यक्रमों में उनकी प्रतिभा को सराहा गया। 12 वर्ष की उम्र में उन्होंने पहली बार सार्वजनिक मंच पर जागर प्रस्तुत किया।
संगीत करियर की सफलता
प्रीतम भरतवाण को 1995 में "तौंसा बौ" गाने से पहली बड़ी सफलता मिली। इसके बाद उनकी एलबम "सुरुली मेरु जिया लगीगो" ने उन्हें उत्तराखंड का स्टार बना दिया।
वे अब तक 50 से अधिक एलबम और 350 से अधिक गीत गा चुके हैं। उनके प्रसिद्ध गीतों में "पैंछि माया," "सुबेर," "रौंस," "तुम्हारी खुद," और "बांद अमरावती" शामिल हैं। 1988 में उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो पर पहली बार अपनी प्रस्तुति दी।
जागर सम्राट का खिताब और योगदान
प्रीतम भरतवाण को जागर सम्राट के नाम से जाना जाता है। जागर, जो कि उत्तराखंड की पारंपरिक पवित्र संगीत परंपरा है, उसे दुनिया भर में पहचान दिलाने का श्रेय उन्हें जाता है। उन्होंने विभिन्न देशों जैसे अमेरिका, इंग्लैंड, कनाडा, जर्मनी, ओमान, और दुबई में अपनी प्रस्तुतियां दी हैं।
सम्मान और पुरस्कार
प्रीतम भरतवाण को कई प्रतिष्ठित पुरस्कार और उपाधियां मिलीं, जिनमें शामिल हैं:
- उत्तराखंड विभूषण
- भागीरथी पुत्र
- जागर शिरोमणि
- सुर सम्राट
- हिमालय रत्न
2019 में उन्हें भारत सरकार द्वारा "पद्मश्री" से सम्मानित किया गया।
लोक संगीत और जागर के लिए प्रयास
17 अक्टूबर 2021 को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने देहरादून में "प्रीतम भरतवाण जागर ढोल सागर इंटरनेशनल अकादमी" का शुभारंभ किया। यह अकादमी लोक संगीत और पारंपरिक वाद्य यंत्रों के संरक्षण और प्रशिक्षण का कार्य करती है।
प्रीतम भरतवाण का योगदान
- 1,000 से अधिक लोक गीत रिकॉर्ड कर चुके हैं।
- जागर और लोक संगीत की परंपरा को नए मंचों तक पहुंचाया।
- उत्तराखंड की संस्कृति को बचाने और आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई।
- विभिन्न विश्वविद्यालयों जैसे इलिनोइस विश्वविद्यालय और सिनसिनाटी विश्वविद्यालय में अतिथि व्याख्याता के रूप में सेवाएं दीं।
जागर: उत्तराखंड की परंपरा का प्रतीक
जागर उत्तराखंड की एक पवित्र स्वर परंपरा है, जो देवी-देवताओं को प्रसन्न करने और प्रकृति के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए गाई जाती है। प्रीतम भरतवाण इस परंपरा के प्रतिनिधि माने जाते हैं।
निष्कर्ष
प्रीतम भरतवाण उत्तराखंड की संस्कृति और परंपरा के अमूल्य रत्न हैं। उनकी मेहनत और लगन ने न केवल जागर को बचाया, बल्कि इसे नई ऊंचाइयों पर भी पहुंचाया। उनकी उपलब्धियां और योगदान उत्तराखंड के लिए गर्व का विषय हैं।
प्रीतम भरतवाण की यह जीवनी उत्तराखंड की लोक संस्कृति और उसके संरक्षण की प्रेरणादायक कहानी है
FQCs (Frequently Queried Content)
1. प्रीतम भरतवाण कौन हैं?
प्रीतम भरतवाण उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक गायक और जागर सम्राट हैं। उन्हें पारंपरिक लोक गायन और जागर के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए जाना जाता है।
2. प्रीतम भरतवाण का जन्म कहां हुआ था?
उनका जन्म देहरादून जिले के रायपुर ब्लॉक के सिला गांव में हुआ था।
3. प्रीतम भरतवाण को जागर सम्राट क्यों कहा जाता है?
प्रीतम भरतवाण ने उत्तराखंड की जागर परंपरा को न केवल भारत बल्कि विदेशों में भी पहचान दिलाई। उनकी गायकी ने जागर को एक नई ऊंचाई दी है।
4. प्रीतम भरतवाण को पहला बड़ा ब्रेक कब और कैसे मिला?
उनकी पहली बड़ी सफलता 1995 में "तौंसा बौ" कैसेट से मिली। इसके बाद, "सुरुली मेरू जिया लगीगो" ने उन्हें उत्तराखंड का सुपरस्टार बना दिया।
5. प्रीतम भरतवाण ने कितने गीत गाए हैं?
प्रीतम भरतवाण ने अब तक 50 से अधिक एल्बम और 1000 से अधिक लोक गीत रिकॉर्ड किए हैं।
6. प्रीतम भरतवाण को कौन-कौन से पुरस्कार मिले हैं?
उन्हें पद्मश्री (2019), उत्तराखंड विभूषण, जागर शिरोमणि, सुर सम्राट, और हिमालय रत्न सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।
7. प्रीतम भरतवाण की शिक्षा और प्रशिक्षण कैसे हुआ?
प्रीतम ने अपने चाचा और परिवार के अन्य सदस्यों से जागर, लोकगीत, और वाद्य यंत्रों का प्रशिक्षण लिया। उनका औजी परिवार संगीत और वाद्य यंत्रों की परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए जाना जाता है।
8. प्रीतम भरतवाण का अंतरराष्ट्रीय योगदान क्या है?
उन्होंने अमेरिका, इंग्लैंड, कनाडा, जर्मनी, मस्कट, ओमान, और दुबई जैसे देशों में मंच पर अपनी प्रस्तुतियां दी हैं।
9. प्रीतम भरतवाण की कौन-कौन सी प्रसिद्ध एलबम हैं?
उनकी प्रसिद्ध एलबमों में पैंछि माया, सुबेर, रौंस, और बांद अमरावती शामिल हैं।
10. प्रीतम भरतवाण द्वारा स्थापित अकादमी क्या है?
2017 में देहरादून में 'प्रीतम भरतवाण जागर ढोल सागर इंटरनेशनल अकादमी' की स्थापना की गई, जिसका उद्देश्य उत्तराखंडी लोक कला और संस्कृति को संरक्षित करना है।
11. प्रीतम भरतवाण का लोक संगीत में क्या योगदान है?
उन्होंने पारंपरिक लोकगीत, पवांडा, और घुयांल गायन को विश्व स्तर पर प्रसिद्ध किया। साथ ही, वे ढोल, दमाऊ, हुड़का, और डौंर थकुली जैसे उत्तराखंडी वाद्य यंत्रों के भी ज्ञाता हैं।
12. प्रीतम भरतवाण का बचपन कैसा था?
प्रीतम बचपन में अपने पिताजी और चाचा के साथ शादी और पर्वों में जागर गाने जाया करते थे। 12 साल की उम्र में उन्होंने पहली बार पब्लिक परफॉर्मेंस दी।
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