शिव प्रसाद डबराल: उत्तराखंड के महान इतिहासकार (Shiv Prasad Dabral: The Great Historian of Uttarakhand)

शिव प्रसाद डबराल: उत्तराखंड के महान इतिहासकार

जन्म: 12 नवम्बर 1912
मृत्यु: 24 नवम्बर 1999 (आयु 87)
गांव: गहली, पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड
पेशा: इतिहासकार, लेखक, प्रोफेसर
भाषा: हिंदी, गढ़वाली
राष्ट्रीयता: भारतीय
अल्मा मेटर: मेरठ कॉलेज (बीए), इलाहाबाद कॉलेज (एमए), आगरा विश्वविद्यालय (पीएचडी)

उत्तराखंड का इतिहासकार और साहित्यकार

शिव प्रसाद डबराल, जिन्हें उनके कलम नाम 'चरण' से जाना जाता है, उत्तराखंड के एक प्रमुख भारतीय इतिहासकार, भूगोलवेत्ता, शिक्षाविद और लेखक थे। उन्हें 'उत्तराखंड के विश्वकोश' के रूप में भी जाना जाता है। उनके कार्यों में उत्तराखंड का इतिहास (12 खंड), 2 कविता संग्रह, 9 नाटक, और हिंदी तथा गढ़वाली में संपादित पुस्तकों का संकलन शामिल हैं। उनका सबसे प्रसिद्ध कार्य "उत्तराखंड का इतिहास" को विद्वानों द्वारा संदर्भ के रूप में प्रयोग किया जाता है और यह उत्तराखंड के इतिहास के बारे में गहन जानकारी प्रदान करता है। उन्होंने गढ़वाली भाषा की दुर्लभ पुस्तकों को पुनः प्रकाशित कर उन्हें विलुप्त होने से बचाया।

प्रारंभिक जीवन और परिवार

चरण का जन्म 12 नवम्बर 1912 को उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के गहली गांव में हुआ था। उनके पिता, कृष्ण दत्त डबराल, एक स्थानीय प्राथमिक विद्यालय के प्रधानाध्यापक थे और उनकी माता का नाम भानुमति देवी था। 1935 में उनका विवाह विश्वेश्वरी देवी से हुआ।

शिक्षा और कैरियर

चरण ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मंडई और गढ़सिर के प्राथमिक विद्यालयों से प्राप्त की। इसके बाद, उन्होंने मेरठ कॉलेज से बीए और इलाहाबाद कॉलेज से बीएड की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से भूगोल में एमए किया और 1962 में पीएचडी पूरी की।

चरण 1948 से 1975 तक दुगड्डा स्थित डीएबी कॉलेज के प्राचार्य रहे। उनका शिक्षा क्षेत्र में योगदान अत्यधिक महत्वपूर्ण रहा।

कार्य और अनुसंधान

चरण ने उत्तराखंड के भोटिया और चरवाहों के जीवनशैली पर गहराई से शोध किया और इसके परिणामस्वरूप उनकी कई महत्वपूर्ण किताबें प्रकाशित हुईं। उन्होंने 'अलकनंदा-बेसिन: ए स्टडी ऑफ ट्रांसह्यूमेंस, नोमेडिज्म एंड सीजनल माइग्रेशन' के विषय पर तीन किताबें प्रकाशित कीं। साथ ही, उन्होंने उत्तराखंड के पुरातत्व और पारिस्थितिकी पर भी कई किताबें लिखीं।

शिव प्रसाद डबराल ने अपने स्वयं के प्रेस 'वीरगाथा प्रकाशन' के माध्यम से कई महत्वपूर्ण ग्रंथों का प्रकाशन किया। इसके अतिरिक्त, उन्होंने 'उत्तराखंड विद्या भवन' नाम से एक पुस्तकालय और संग्रहालय भी स्थापित किया, जिसमें दुर्लभ पुस्तकों और पांडुलिपियों का संग्रह किया गया।

प्रमुख कार्य

उनके प्रमुख कार्यों में निम्नलिखित पुस्तकें शामिल हैं:

  • उत्तराखंड का इतिहास (12 खंड)
  • उत्तरांचल के अभिलेख एवं मुद्रा
  • अलकनंदा-बेसिन ट्रांसह्यूमैन्स (3 किताबें)
  • उत्तराखंड के भूतांतिक और पशुचारक
  • गढ़वाली
  • संघर्ष संगीत
  • प्राकृतिक और सांस्कृतिक धरोहर पर आधारित कई शोध ग्रंथ

जीवन भर के योगदान

चरण ने गढ़वाल के इतिहास, काव्य, नाटक और लोक साहित्य से संबंधित बीस से अधिक दुर्लभ ग्रंथों का पुनर्प्रकाशन किया। इन ग्रंथों में उन्होंने सार्थक टिप्पणियाँ जोड़ीं। इसके अलावा, उन्होंने गढ़वाली भाषा की संरक्षित और प्राचीन रचनाओं का पुनर्प्रकाशन कर उन्हें विलुप्त होने से बचाया।

उनकी काव्य रचनाओं में "शक्तिमत की गाथा", "मातृदेवी" और "राष्ट्र रक्षा काव्य" शामिल हैं, जिनका साहित्यिक और सांस्कृतिक महत्व बहुत बड़ा है।

समापन

शिव प्रसाद डबराल का कार्य उत्तराखंड की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षित करने में बेहद महत्वपूर्ण रहा। उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा, और उनका शोध और साहित्य उत्तराखंड के इतिहास और संस्कृति को समझने में अहम भूमिका निभाएंगे।

FQCs (Frequently Asked Questions) 

1. शिव प्रसाद डबराल कौन थे?

उत्तर: शिव प्रसाद डबराल एक प्रसिद्ध भारतीय इतिहासकार, भूगोलवेत्ता, लेखक और शिक्षाविद थे, जिन्हें उत्तराखंड के इतिहास और संस्कृति के लिए महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाना जाता है। उन्हें 'उत्तराखंड के विश्वकोश' के रूप में भी जाना जाता है।

2. शिव प्रसाद डबराल का जन्म कब और कहां हुआ था?

उत्तर: शिव प्रसाद डबराल का जन्म 12 नवंबर 1912 को उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के गहली गांव में हुआ था।

3. शिव प्रसाद डबराल के प्रमुख कार्य क्या थे?

उत्तर: उनके प्रमुख कार्यों में 'उत्तराखंड का इतिहास' (12 खंड), 'अलकनंदा-बेसिन ट्रांसह्यूमैन्स', और कई अन्य काव्य, नाटक और ऐतिहासिक शोध पुस्तकें शामिल हैं। उन्होंने उत्तराखंड के पुरातत्व और पारिस्थितिकी पर भी कई किताबें लिखीं।

4. शिव प्रसाद डबराल के प्रमुख शोध क्षेत्र क्या थे?

उत्तर: उनके प्रमुख शोध क्षेत्र उत्तराखंड के भोटिया और चरवाहों के जीवनशैली, उत्तराखंड के धार्मिक स्थल, मंदिरों और पुरातात्विक अवशेषों पर केंद्रित थे। उन्होंने गढ़वाल और कुमाऊं के इतिहास पर भी गहन शोध किया।

5. शिव प्रसाद डबराल ने 'उत्तराखंड का इतिहास' किस प्रकार तैयार किया?

उत्तर: शिव प्रसाद डबराल ने 'उत्तराखंड का इतिहास' 12 खंडों में तैयार किया, जिसमें उन्होंने उत्तराखंड के इतिहास, संस्कृति, और पुरातात्विक अवशेषों का गहन अध्ययन किया। यह कार्य विद्वानों द्वारा संदर्भ के रूप में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।

6. शिव प्रसाद डबराल का शिक्षा जीवन कैसा था?

उत्तर: उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मंडई और गढ़सिर के प्राथमिक विद्यालयों से प्राप्त की और फिर मेरठ कॉलेज से बीए, इलाहाबाद कॉलेज से बीएड और आगरा विश्वविद्यालय से भूगोल में एमए की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने 1962 में भूगोल में अपनी डॉक्टरेट (पीएचडी) भी पूरी की।

7. शिव प्रसाद डबराल की मृत्यु कब हुई थी?

उत्तर: शिव प्रसाद डबराल का निधन 24 नवंबर 1999 को हुआ था, वे 87 वर्ष के थे।

8. शिव प्रसाद डबराल ने गढ़वाली भाषा के लिए क्या योगदान दिया?

उत्तर: शिव प्रसाद डबराल ने गढ़वाली भाषा की 22 दुर्लभ पुस्तकों को पुनः प्रकाशित किया और उन्हें विलुप्त होने से बचाया। इसके अलावा, उन्होंने गढ़वाली लोक साहित्य और नाटकों पर भी काम किया।

9. शिव प्रसाद डबराल के द्वारा लिखी गई किताबों में कौन सी प्रमुख हैं?

उत्तर: उनके द्वारा लिखी गई प्रमुख किताबों में 'उत्तराखंड का इतिहास' (12 खंड), 'अलकनंदा-बेसिन ट्रांसह्यूमैन्स', 'उत्तराखंड के अभिलेख और मुद्रा', 'गढ़वाली', और 'शक्तिमत की गाथा' शामिल हैं।

10. शिव प्रसाद डबराल का योगदान उत्तराखंड के इतिहास के क्षेत्र में कैसे महत्वपूर्ण था?

उत्तर: शिव प्रसाद डबराल ने उत्तराखंड के ऐतिहासिक घटनाओं और सांस्कृतिक धरोहरों को संरक्षित करने के लिए महत्वपूर्ण कार्य किया। उनका 'उत्तराखंड का इतिहास' इस राज्य के इतिहास का एक महत्वपूर्ण स्रोत बन गया है, जिसका उपयोग विद्वान और शोधकर्ता संदर्भ के रूप में करते हैं।

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