कुर्मांचल में 'चंदवंश' का संस्थापक सोमचंद
सोमचंद को कुर्मांचल में 'चंदवंश' का संस्थापक माना जाता है। उनका जन्म संभवतः इलाहाबाद में गंगा पार स्थित 'झुंसी' के चंद्रवंशी राजवंश से हुआ था। वह तीर्थयात्रा के लिए कुमाऊं क्षेत्र में आए थे, और यहीं पर उन्होंने अपने राजवंश की नींव रखी।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhuJD1OSYyIge6zC3BK7cZikObzlzqEMSoU2_4YVxTo6ExZb5AnuRW2UWBYVahLptgRwMJZFn9WqhijbPBtytEm9huv2a3v8gw1YCcCQuQ1f4Fd1yyIMpUd7cmTgU-yERK2T_v6_jTuVNqsVQi5BJEMwiq5bVno15y-rIymV9yc8xlZlZfJXzh4d6LaNyYP/w640-h360-rw/%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%9A%E0%A4%B2%20%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82%20'%E0%A4%9A%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A4%B5%E0%A4%82%E0%A4%B6'%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A4%95%20%E0%A4%B8%E0%A5%8B%E0%A4%AE%E0%A4%9A%E0%A4%82%E0%A4%A6.png)
कुमाऊं क्षेत्र के प्रसिद्ध कत्यूरी नरेश ब्रह्मदेव की मृत्यु के बाद सोमचंद ने चंदवंश की स्थापना की और चंपावती देवी के नाम पर चम्पावत नगर की स्थापना कर उसे अपनी राजधानी बनाया। उन्होंने अपने राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था को मजबूत करने के लिए अपने किले 'राजबंगा' के आस-पास विभिन्न जातियों और समुदायों को बसाया। इनमें विद्वान ब्राह्मणों, गजकोली, बखरिया, विश्वकर्मा, तमोटा, बाजदार, और बजनियां आदि प्रमुख थे।
सोमचंद ने कुमाऊं के काली कुमाऊं क्षेत्र में फैले विभिन्न ठकुराइयों के बीच अपनी शक्ति स्थापित की। इस क्षेत्र में खस, नाग, भेद, चाण्डाल जैसे ठकुराइयों का प्रभाव था, और ये दो भागों में विभक्त थे। इनमें से महरा और फर्त्याल ने इन ठकुराइयों का नेतृत्व किया था। सोमचंद ने राज्य विस्तार से पहले चार किलेदार नियुक्त किए - कार्की, बोरा, तड़ागी और चौधरी, जो मुख्यतः नेपाल से आए थे। इन किलों को 'चारआल' अथवा 'चाराल' के नाम से जाना जाता था।
शासन की शुरुआत और किलेदारों की नियुक्ति
सोमचंद ने राज्य की राजनीति को मजबूत करने के लिए द्रोणकोट के रावतों को परास्त किया और महरा तथा फर्त्याल को मंत्री और सेनापति नियुक्त किया। इन दोनों का राज्य के प्रशासन में महत्वपूर्ण स्थान था और राज्य की पूरी राजनीति इन दोनों के इर्द-गिर्द घूमती थी। महरा कटोलगढ़ के वासी थे और फर्त्याल सुई के किले के निकट 'डुंगरी' में रहते थे। सोमचंद ने जनसामान्य के बीच अपनी राजभक्ति को स्थापित करने के लिए महरा और फर्त्याल को सम्मानित किया।
चंदवंश का उत्थान और पतन
सोमचंद के बाद, इस वंश का अगला शासक ससांरचंद बना। इसके बाद क्रमशः सुधाचंद, हरिचंद, और बीनाचंद ने गद्दी संभाली, हालांकि इन शासकों की कोई विशेष उपलब्धि इतिहास में नहीं मिलती है। विशेषतः वीनाचंद, जो एक विलासी प्रवृत्ति का शासक था, अपनी अयोग्यता के कारण अधिक समय तक सत्ता में नहीं रह सका। इसके शासन के दौरान आस-पास के खस राजाओं ने अपनी स्थिति को मजबूत करना शुरू कर दिया और इस विद्रोह के कारण चंदवंश की मांडलिक स्थिति समाप्त हो गई। परिणामस्वरूप, चंदवंश के शासक खस राजाओं के अधीनस्थ बन गए।
सोमचंद की मांडलिक स्थिति
सोमचंद संभवतः एक मांडलिक राजा था, जो डोटी के राजा के अधीनस्थ था। डोटी के राजा मल्लवंशी थे, जिन्हें 'रैका राजा' कहा जाता था, और सोमचंद के समकालीन डोटी राजा जयदेव मल्ल थे। सोमचंद की कुलदेवी चंपावती थी, और उनकी मृत्यु भी एक मांडलिक राजा के रूप में हुई थी, जिसमें उन्हें अपने साम्राज्य का उत्थान और पतन देखना पड़ा।
निष्कर्ष
सोमचंद ने कुर्मांचल क्षेत्र में 'चंदवंश' की नींव रखी, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद वंश में कमजोर शासक आ गए, जिनकी अयोग्यता और खस विद्रोह के कारण चंदवंश का पतन हुआ। सोमचंद की संघर्षपूर्ण जीवन यात्रा और उनके द्वारा किए गए प्रशासनिक प्रयास आज भी कुर्मांचल के इतिहास में महत्वपूर्ण माने जाते हैं।
टिप्पणियाँ