तीलू रौतेली: महान वीरांगना, अदम्य साहस की प्रतीक (Teelu Rauteli: The great hero, the epitome of indomitable courage)

तीलू रौतेली: महान वीरांगना, अदम्य साहस की प्रतीक

उत्तराखंड की वीर भूमि ने कई साहसी वीरांगनाओं को जन्म दिया है, जिनमें तीलू रौतेली का नाम विशेष रूप से लिया जाता है। उन्हें "उत्तराखंड की झांसी की रानी" और "गढ़वाल की लक्ष्मीबाई" के रूप में सम्मान से जाना जाता है। मात्र 15 से 20 वर्ष की आयु में सात युद्ध लड़ने वाली तीलू रौतेली ने अपनी वीरता का अद्वितीय कीर्तिमान स्थापित किया।


उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं तीलू रौतेली

वीर भूमि उत्तराखंड का गौरव

उत्तराखंड की भूमि प्राचीन काल से ही वीरों और वीरांगनाओं की जन्मभूमि और कर्मभूमि रही है। भारतीय इतिहास में यहां की रानी कर्णावती और तीलू रौतेली को अदम्य साहस के प्रतीक के रूप में आदरपूर्वक याद किया जाता है। दुश्मनों से उत्तराखंड की रक्षा करने के लिए तीलू रौतेली ने अपने साहस और रणकौशल से कई युद्ध जीते और दुश्मनों के पांव उखाड़े।

तीलू रौतेली का जीवन परिचय

तीलू रौतेली चौंदकोट के थोकदार भूपसिंह की पुत्री और भगतु और पत्वा नाम के दो बहादुर जुड़वा भाइयों की बहन थीं। उनका वास्तविक नाम तिलोत्तमा देवी था। मात्र 15 वर्ष की आयु में उनकी मंगनी भुप्पा नेगी के पुत्र से हुई थी, लेकिन दुर्भाग्यवश उनके पिता, मंगेतर, और दोनों भाइयों ने युद्ध में वीरगति प्राप्त की। इन व्यक्तिगत क्षतियों से आहत होकर तीलू ने आक्रमणकारी कत्यूरियों का विनाश करने का संकल्प लिया और युद्ध के मैदान में कूद पड़ीं।

युद्ध यात्रा और विजय की गाथा

  • खैरागढ़: सबसे पहले तीलू रौतेली ने खैरागढ़ को कत्यूरियों से मुक्त कराया।
  • टकोली खाल: इसके बाद टकोली खाल में उन्होंने शत्रु सेना का सामना किया और गढ़वाली झंडा फहराया।
  • उमटागढ़ और सल्ट महादेव: उमटागढ़ में शत्रु का विनाश कर विजय का प्रतीक बूंगी देवी मंदिर की स्थापना की। सल्ट महादेव में विजय के उपलक्ष्य में एक शिव मंदिर स्थापित किया और संतू उन्याल को मंदिर की पूजा का अधिकार सौंपा।
  • भिलण भौन और ज्यूंदाल्यूं: कई युद्धों के दौरान तीलू की सहेलियों बेल्लू और देवली ने भी वीरगति प्राप्त की। ज्यूंदाल्यूं में भी दुश्मन पर विजय पाई।
  • चौखुटिया और देघाट: यहां पर विजय प्राप्त कर उन्होंने गढ़राज्य की सीमाओं को मजबूत किया और चारों दिशाओं में अपनी जीत का परचम लहराया।

अंततः तल्ला काण्डा शिविर के पास नयार नदी में स्नान करते समय एक कत्यूरि सैनिक के प्राणघातक हमले में तीलू रौतेली वीरगति को प्राप्त हुईं।

उत्तराखंड की महान विरांगना की अमर गाथा

तीलू रौतेली की वीरता की गाथाएं आज भी उत्तराखंड में लोकगीतों और जागरों के रूप में गाई जाती हैं। गढ़वाल और कुमाऊं के विभिन्न क्षेत्रों में हर वर्ष उनकी स्मृति में मेलों का आयोजन होता है और उनकी मूर्ति की पूजा की जाती है। उत्तराखंड सरकार भी "तीलू रौतेली पुरस्कार" के माध्यम से राज्य की साहसी महिलाओं को सम्मानित करती है, जो समाज में उल्लेखनीय कार्य कर रही हैं।

तीलू रौतेली की वीरता का यह वृत्तांत आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बना रहेगा।

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