महासू देवता का मंदिर: न्याय के देवता का स्थल
उत्तराखंड का हनोल गांव, जो देहरादून जिले के जनजातीय क्षेत्र जौनसार-बावर में स्थित है, लोक देवता महासू का मुख्य मंदिर स्थल है। यह मंदिर केवल धार्मिक महत्व का नहीं है, बल्कि ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और स्थापत्य दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। चलिए, जानते हैं महासू देवता के मंदिर के बारे में विस्तार से।
महासू देवता का परिचय
महासू देवता, जिन्हें न्याय के देवता के रूप में पूजा जाता है, चार देवताओं का सामूहिक नाम है। यह देवता स्थानीय भाषा में 'महाशिव' के रूप में भी जाने जाते हैं। चार महासू भाइयों के नाम बासिक महासू, पबासिक महासू, बूठिया महासू (बौठा महासू), और चालदा महासू हैं। इनका संबंध भगवान शिव से माना जाता है और इन्हें न्याय के देवता के रूप में पूजा जाता है।
हनोल का मंदिर
हनोल का मंदिर, जो टोंस नदी के पूर्वी तट पर स्थित है, नवीं सदी का माना जाता है, हालांकि पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के रिकार्ड में इसका निर्माण 11वीं-12वीं सदी का बताया गया है। यह मंदिर मिश्रित स्थापत्य शैली में बना हुआ है, जिसमें विशेष रूप से शिवलिंग, दुर्गा, विष्णु-लक्ष्मी, सूर्य, कुबेर और अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ पाई गई हैं, जो हनोल संग्रहालय में संरक्षित हैं। मंदिर का गर्भगृह सभी भक्तों के लिए निषेध है और इसमें केवल पुजारी को ही प्रवेश की अनुमति है।
मंदिर की विशेषताएँ
मंदिर के गर्भगृह में एक रहस्यमय जल धारा बहती है, जिसका स्रोत और गंतव्य अभी तक ज्ञात नहीं हो पाया है। इसके अलावा, यहां एक दिव्य ज्योति भी सदैव जलती रहती है। यह मंदिर अपनी स्थापत्य कला के कारण भी बहुत प्रसिद्ध है। यह मंदिर बिना गारे की चिनाई से बना है और इसके 32 कोने हैं, जो इसे अन्य मंदिरों से अलग बनाते हैं। यहाँ एक विशालकाय पत्थर भी स्थापित है, जिसे घाटा पहाड़ से लाया गया था।
महासू देवता और न्यायालय
महासू देवता का मंदिर न केवल धार्मिक स्थल है, बल्कि इसे न्यायालय के रूप में भी माना जाता है। यहाँ के लोग न्याय की गुहार लगाने के लिए आते हैं, और मान्यता है कि महासू देवता उनकी समस्याओं का समाधान करते हैं। विभिन्न क्षेत्रों से लोग अपनी समस्याएँ लेकर इस मंदिर में आते हैं और उनका समाधान प्राप्त करते हैं।
महासू देवता के चार भाइयों के मंदिर
हनोल मंदिर में बूठिया महासू (बौठा महासू) की पूजा होती है, जबकि अन्य महासू भाइयों के मंदिर विभिन्न स्थानों पर स्थित हैं। बासिक महासू का मंदिर मैंद्रथ में है, पबासिक महासू का मंदिर बंगाण क्षेत्र के ठडियार और देवती-देववन में है, और चालदा महासू विभिन्न क्षेत्रों में भ्रमण करते रहते हैं। इन देवताओं के पूजा स्थल अलग-अलग होते हैं और हर साल देव-डोली के साथ इनकी पूजा की जाती है।
महासू देवता के बारे में रोचक तथ्य
- महासू देवता के मंदिर में पानी की धारा का रहस्य और दिव्य ज्योति की निरंतर जलती रहने की विशेषता भक्तों को आकर्षित करती है।
- राष्ट्रपति भवन से हर साल इस मंदिर में नमक भेंट किया जाता है, जो इस मंदिर के महत्व को दर्शाता है।
- महासू देवता के दर्शन करने के लिए श्रद्धालु लंबी यात्रा करते हैं, और इसके दर्शन के लिए कई पीढ़ियाँ गुजर जाती हैं।
महासू देवता के मंदिर तक पहुँचने का रास्ता
हनोल मंदिर तक पहुँचने के लिए तीन प्रमुख मार्ग हैं:
- देहरादून-चकराता-त्यूणी मार्ग (188 किमी)
- देहरादून-मसूरी-नैनबाग-पुरोला-मोरी मार्ग (175 किमी)
- देहरादून-विकासनगर-छिबरौ डेम-क्वाणू-मिनस मार्ग (178 किमी)
निष्कर्ष
महासू देवता का मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक धरोहर और धार्मिक मान्यताओं का प्रतीक है। यहाँ का अद्भुत स्थापत्य, रहस्यमय जल धारा और न्याय के देवता के रूप में महासू देवता की प्रतिष्ठा इसे एक महत्वपूर्ण स्थान बनाती है। यह मंदिर न केवल उत्तराखंड, बल्कि हिमाचल प्रदेश और अन्य क्षेत्रों के लोगों के लिए भी एक श्रद्धा का केंद्र है।
Frequently Asked Questions (FAQ)
1. महासू देवता कौन हैं?
महासू देवता दरअसल चार देवताओं का सामूहिक नाम है, जो भगवान शिव के रूप माने जाते हैं। इनके नाम बासिक महासू, पबासिक महासू, बूठिया महासू (बौठा महासू) और चालदा महासू हैं। ये देवता उत्तराखंड के जौनसार-बावर और हिमाचल प्रदेश के कई क्षेत्रों में पूजा जाते हैं।
2. हनोल मंदिर का इतिहास क्या है?
हनोल मंदिर का निर्माण 9वीं शताब्दी में हुआ माना जाता है। यह मंदिर भगवान शिव के रूप महासू देवता को समर्पित है और टोंस नदी के पूर्वी तट पर स्थित है। एएसआई द्वारा संरक्षित इस मंदिर की स्थापत्य शैली मिश्रित है, जिसमें शिल्पकला का अनूठा प्रदर्शन देखने को मिलता है।
3. महासू देवता के मंदिर में जाने के लिए क्या नियम हैं?
हनोल मंदिर के गर्भगृह में श्रद्धालुओं का प्रवेश निषेध है। वहां केवल मंदिर के पुजारी को ही जाने की अनुमति है। गर्भगृह में एक जलधारा भी फूटती है, जिसका स्रोत और जल की निकासी का स्थान आज तक रहस्य बना हुआ है।
4. हनोल मंदिर का मुख्य आकर्षण क्या है?
हनोल मंदिर का मुख्य आकर्षण चार महासू देवताओं की पूजा है। इसके अलावा, यहां एक अद्भुत ज्योति हमेशा जलती रहती है और एक रहस्यमयी जलधारा गर्भगृह में से निकलती है। मंदिर में स्थित दो विशाल गोलों का वजन करीब 240 किलो और 360 किलो है, जो पांडवों के समय के कंचों के रूप में माने जाते हैं।
5. महासू देवता के मंदिर में जलते रहने वाली ज्योति का रहस्य क्या है?
हनोल मंदिर के गर्भगृह में एक दिव्य ज्योति हमेशा जलती रहती है। यह ज्योति दशकों से जल रही है और इसके बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है कि यह कैसे जलती रहती है।
6. महासू देवता का किससे संबंध है?
महासू देवता को न्याय के देवता के रूप में पूजा जाता है। इनका मंदिर न्यायालय के रूप में भी माना जाता है, और भक्त यहां न्याय की गुहार लगाने आते हैं। उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के जौनसार-बावर, रंवाई परगना और सिरमौर जैसे क्षेत्रों में महासू देवता को इष्ट देव के रूप में पूजा जाता है।
7. हनोल मंदिर तक पहुंचने के लिए कौन-कौन से रास्ते हैं?
हनोल मंदिर तक पहुँचने के लिए तीन प्रमुख सड़क मार्ग हैं:
- देहरादून से 188 किमी का मार्ग, जो विकासनगर, चकराता, और त्यूणी होते हुए हनोल पहुँचता है।
- देहरादून से 175 किमी का मार्ग, जो मसूरी, नैनबाग, पुरोला और मोरी होते हुए हनोल पहुँचता है।
- देहरादून से 178 किमी का मार्ग, जो विकासनगर, छिबरौ डैम, क्वाणू, मिनस, हटाल और त्यूणी होते हुए हनोल पहुँचता है।
8. महासू देवता के कौन-कौन से प्रमुख मंदिर हैं?
महासू देवता के प्रमुख मंदिरों में हनोल (बूठिया महासू), मैंद्रथ (बासिक महासू), ठडियार (पबासिक महासू), और विभिन्न पूजा स्थलों पर चालदा महासू की पूजा होती है। हर मंदिर में अलग-अलग पुजारी पूजा करते हैं और पूजा का समय निर्धारित होता है।
9. महासू देवता को पूजा जाने के विशेष अवसर क्या हैं?
महासू देवता की पूजा सालभर में कई बार की जाती है, विशेष रूप से उन स्थानों पर जहां उनके विभिन्न रूपों के मंदिर स्थित हैं। चालदा महासू, जो भ्रमणप्रिय हैं, 12 साल तक उत्तरकाशी और देहरादून के विभिन्न क्षेत्रों में भ्रमण करते हैं। इस दौरान वहां पर पूजा अर्चना की जाती है।
10. राष्ट्रपति भवन से महासू देवता को क्या भेंट भेजी जाती है?
हर साल राष्ट्रपति भवन से महासू देवता को नमक की भेंट भेजी जाती है, जो इस मंदिर के विशेष संबंध को दर्शाता है।
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