उत्तराखण्ड -सभ्यता एवं कला (Uttarakhand – Civilization and Art)

उत्तराखण्ड की सांस्कृतिक धरोहर: कला, परंपरा और त्योहारों का संगम

उत्तराखण्ड की समृद्ध सभ्यता और कला को समझना एक दिलचस्प अनुभव है। यह प्रदेश अपनी भौगोलिक सुंदरता के साथ-साथ अपनी अनूठी सांस्कृतिक धरोहर के लिए भी प्रसिद्ध है। यहाँ की कला, खानपान, वेशभूषा, लोकगीत और नृत्य आदि सभी मिलकर एक अनोखी सांस्कृतिक पहचान बनाते हैं। आइए, इस ब्लॉग के माध्यम से उत्तराखण्ड की सभ्यता और कला का विस्तार से परिचय प्राप्त करते हैं।

उत्तराखण्ड - सभ्यता एवं कला

उत्तराखण्ड का भौगोलिक परिचय

उत्तराखण्ड, जिसे 'देवभूमि' के नाम से भी जाना जाता है, एक पर्वतीय प्रदेश है। यहाँ की भौगोलिक स्थिति और जलवायु इसे एक विशेष सांस्कृतिक पहचान प्रदान करती है। यहाँ की ठण्डी जलवायु के कारण लोग पक्के मकानों में निवास करते हैं, जिनकी दीवारें पत्थरों की होती हैं और पुराने घरों की छतें भी पत्थरों से बनाई जाती हैं। वर्तमान में, लोग सीमेंट का उपयोग करने लगे हैं, लेकिन पारंपरिक वास्तुकला की झलक आज भी दिखाई देती है।

खानपान और जीवन शैली

उत्तराखण्ड के लोगों की जीवन शैली सरल और आत्मनिर्भर होती है। यहाँ के अधिकांश लोग रात को रोटी और दिन में भात (चावल) खाना पसंद करते हैं। गहत, रैंस, भट्ट जैसी दालें और मण्डुवा व झुंगोरा जैसे मोटे अनाज यहाँ के मुख्य आहार का हिस्सा हैं। हालांकि, अब लोग बाजार से गेहूं और चावल भी खरीदने लगे हैं।

पारंपरिक तौर पर उत्तराखण्ड के लोग पशुपालन और कृषि पर निर्भर रहते हैं। घर में उत्पादित अनाज कुछ ही महीनों के लिए पर्याप्त होता है, इसलिए अतिरिक्त आय के लिए कुछ लोग दूध का व्यवसाय भी करते हैं। पहाड़ के लोग बहुत परिश्रमी होते हैं और खेतों को सीढ़ीदार बनाकर खेती करते हैं, जो इनके मेहनत और संकल्प का प्रतीक है।

प्रमुख उत्तराखण्डी व्यंजन:

  • आलू टमाटर का झोल: एक सरल और स्वादिष्ट सब्जी जो आलू और टमाटर से बनाई जाती है।
  • चैंसू: एक विशेष प्रकार की दाल।
  • झोई: एक खट्टा दही बेस्ड सूप।
  • कापिलू: विशेष प्रकार की हरी सब्जी।
  • मंण्डुए की रोटी: मंडुआ के आटे से बनी रोटी, जो पौष्टिक होती है।
  • पीनालू की सब्जी: विशेष प्रकार की सब्जी जो केवल उत्तराखण्ड में पाई जाती है।
  • बथुए का पराँठा: बथुए की सब्जी से भरा पराठा।
  • बाल मिठाई: प्रसिद्ध मिठाई जो खासतौर पर उत्तराखण्ड में ही बनाई जाती है।
  • सिसौंण का साग: सिसौंण की पत्तियों से बना साग।
  • गौहत की दाल: पौष्टिक और स्वादिष्ट दाल।

उत्तराखण्ड की वेशभूषा

उत्तराखण्ड की पारंपरिक वेशभूषा प्रदेश की संस्कृति का एक अनमोल हिस्सा है। यहाँ की महिलाएं घाघरा और आँगड़ी पहनती थीं, जबकि पुरुष चूड़ीदार पजामा और कुर्ता पहनते थे। समय के साथ, ये परिधान आधुनिक कपड़ों जैसे पेटीकोट, ब्लाउज और साड़ी से बदल गए हैं। जाड़ों में ऊनी कपड़ों का उपयोग होता है।

विवाह और अन्य शुभ अवसरों पर पारंपरिक परिधानों का विशेष महत्व होता है। कुछ क्षेत्रों में अभी भी सनील का घाघरा पहनने की परम्परा है। आभूषणों की बात करें तो गले में गलोबन्द, चर्‌यो, जै माला, नाक में नथ, कानों में कर्णफूल, कुण्डल, सिर में शीषफूल, हाथों में पौंजी, और पैरों में बिछुए, पायजेब, पौंटा पहने जाते हैं। विवाहित महिलाएं गले में चरेऊ पहनकर अपनी पहचान दर्शाती हैं। पिछौड़ा पहनने का चलन भी यहाँ के परंपरागत परिधानों का हिस्सा है।

उत्तराखण्ड के प्रमुख त्योहार

उत्तराखण्ड में त्योहारों का विशेष महत्व है। ये न केवल धार्मिक उत्सव होते हैं बल्कि सामाजिक मेलजोल और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक भी हैं।

प्रमुख स्थानीय त्योहार:

  • देवीधुरा मेला (चम्पावत): यह मेला प्रसिद्ध बग्वाल युद्ध के लिए जाना जाता है।
  • पूर्णागिरि मेला (चम्पावत): चैत्र मास में मनाया जाने वाला धार्मिक मेला।
  • नन्दा देवी मेला (अलमोड़ा): अलमोड़ा में नंदा देवी के सम्मान में आयोजित मेला।
  • गौचर मेला (चमोली): कृषि और पशुपालन से संबंधित मेला।
  • वैशाखी (उत्तरकाशी): नए वर्ष का स्वागत करने के लिए मनाया जाता है।
  • माघ मेला (उत्तरकाशी): धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व का मेला।
  • उत्तरायणी मेला (बागेश्वर): नए फसल की खुशी में मनाया जाता है।
  • विशु मेला (जौनसार बावर): धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन।
  • हरेला (कुमाऊँ): प्रकृति के सम्मान में मनाया जाने वाला त्योहार।
  • गंगा दशहरा: गंगा नदी के सम्मान में मनाया जाता है।
  • नन्दा देवी राजजात यात्रा: एक धार्मिक यात्रा जो नंदा देवी के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है।

उत्तराखण्ड की लोक कला और संगीत

उत्तराखण्ड की लोक कला इसकी सांस्कृतिक धरोहर का एक अभिन्न हिस्सा है। घर की सजावट में लोक कला सबसे पहले देखने को मिलती है। महिलाएँ घर में ऐंपण (अल्पना) बनाती हैं, जो शुभ अवसरों पर आंगन या सीढ़ियों को सजाने के लिए किया जाता है। गेरू से लीपा हुआ आंगन और चावल के लेप से बने आकर्षक चित्र यहाँ की पारंपरिक कला का अद्वितीय उदाहरण हैं।

प्रमुख ऐंपण चित्र:

  • नामकरण चौकी: नवजात शिशु के नामकरण पर बनाया जाता है।
  • सूर्य चौकी: सूर्य भगवान के सम्मान में।
  • स्नान चौकी: धार्मिक स्नान के अवसर पर।
  • जन्मदिन चौकी: जन्मदिन के उत्सव के लिए।
  • यज्ञोपवीत चौकी: जनेऊ संस्कार के लिए।
  • विवाह चौकी: विवाह समारोह के लिए विशेष।
  • धूमिलअर्ध्य चौकी: विशेष धार्मिक अवसरों के लिए।
  • वर चौकी: वर के सम्मान में।
  • आचार्य चौकी: गुरु के सम्मान में।
  • अष्टदल कमल: कमल के फूल का प्रतीक।
  • स्वास्तिक पीठ: शुभता का प्रतीक।
  • विष्णु पीठ: भगवान विष्णु के लिए।
  • शिव पीठ: भगवान शिव के लिए।
  • शिव शक्ति पीठ: शक्ति और शिव का संयोग।
  • सरस्वती पीठ: ज्ञान की देवी सरस्वती के लिए।

डिकारे

हरेला आदि पर्वों पर मिट्टी के डिकारे बनाए जाते हैं, जो भगवान के प्रतीक माने जाते हैं। इनकी पूजा की जाती है। कुछ लोग मिट्टी की अच्छी-अच्छी मूर्तियाँ (डिकारे) भी बनाते हैं, जो पारंपरिक कलात्मकता का उत्कृष्ट उदाहरण हैं।

काष्ठ कला

उत्तराखण्ड के घरों को बनाते समय लोक कला प्रदर्शित होती है। पुराने समय के घरों के दरवाजों और खिड़कियों पर लकड़ी की सजावट देखने को मिलती है। दरवाजों के चौखट पर देवी-देवताओं, हाथी, शेर, मोर आदि के चित्र नक्काशी करके बनाए जाते हैं। घरों की छत पर चिड़ियों के घोंसलें बनाने के लिए स्थान भी छोड़ा जाता है। अल्मोड़ा सहित कई स्थानों में आज भी काष्ठ कला देखने को मिलती है।

प्राचीन मंदिरों, नौलों में पत्थरों को तराश कर विभिन्न देवी-देवताओं के चित्र बनाए गए हैं। गुफाओं और उड्यारों में भी शैल चित्र देखे जा सकते हैं, जो प्राचीन कला के प्रतीक हैं।

संगीत और नृत्य

उत्तराखण्ड की लोक धुनें भी अन्य प्रदेशों से भिन्न हैं। यहाँ के वाद्य यंत्रों में नगाड़ा, ढोल, दमुआ, रणसिंग, भेरी, हुड़का, बीन, डौंरा, कुरूली, अलगाजा प्रमुख हैं। ढोल-दमुआ और बीन बाजा विशिष्ट वाद्ययंत्र हैं जिनका उपयोग आमतौर पर हर आयोजन में किया जाता है।

प्रमुख लोक गीत:

  • न्योली: पहाड़ी प्रेम गीत।
  • जोड़: सामाजिक और सांस्कृतिक गीत।
  • झोड़ा: उत्सव के समय गाया जाने वाला गीत।
  • छपेली: शृंगारिक गीत।
  • बैर: विरह के गीत।
  • फाग: होली के अवसर पर गाया जाने वाला गीत।

लोक नृत्य:

  • छोलिया नृत्य: तलवारों और ढालों के साथ किया जाने वाला युद्ध नृत्य। यह नृत्य राजाओं के ऐतिहासिक युद्ध का प्रतीक है।
  • झुमैला नृत्य: एक विशेष लोक नृत्य जो सामूहिक रूप से किया जाता है।
  • झोड़ा नृत्य: महिलाओं और पुरुषों द्वारा गोल घेरे में किया जाने वाला नृत्य।
  • सर्प नृत्य: सर्प के समान लयबद्ध नृत्य।
  • पाण्डव नृत्य: महाभारत के पात्रों पर आधारित।
  • जौनसारी: जौनसार-बावर क्षेत्र का विशेष नृत्य।
  • चाँचरी: कुमाऊँ और गढ़वाल का पारंपरिक नृत्य।

उत्तराखण्डी सिनेमा

उत्तराखण्ड का सिनेमा और इसके नाट्य पूर्ववृत्त उस जागृति के परिणाम हैं जो स्वतंत्रता के बाद आरम्भ हुई थी। 60, 70 और 80 के दशकों में सांस्कृतिक और कलात्मक रूपों का उद्भव हुआ, और 1990 के दशक में इसका विस्फोटक रूप से उदय हुआ।

प्रमुख चलचित्र:

  • जगवाल (1983): पराशर गौर द्वारा निर्देशित पहला उत्तराखण्डी चलचित्र।
  • तेरी सौं (2003): उत्तराखण्ड आन्दोलन के संघर्ष पर आधारित चलचित्र।

2008 में उत्तराखण्ड के कलात्मक समुदाय द्वारा उत्तराखण्ड सिनेमा की 25वीं वर्षगांठ मनाई गई, जो इस कला के प्रति उनकी श्रद्धा को दर्शाता है।


निष्कर्ष

उत्तराखण्ड की सभ्यता और कला एक अद्वितीय सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। यहाँ की कला, संगीत, नृत्य, खानपान और परंपराएँ प्रदेश की सांस्कृतिक समृद्धि को दर्शाती हैं। आधुनिकता के इस दौर में, इन पारंपरिक धरोहरों को संरक्षित करना और उन्हें आगे बढ़ाना अत्यंत महत्वपूर्ण है, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इनका आनंद ले सकें और अपने इतिहास पर गर्व कर सकें।

उत्तराखण्ड की संस्कृति और कला न केवल यहाँ के लोगों के जीवन का हिस्सा हैं, बल्कि यह भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण अंग भी हैं। इस अनमोल धरोहर को संजोकर रखना हमारी जिम्मेदारी है।

उत्तराखण्ड का सांस्कृतिक परिचय

  1. उत्तराखण्ड को 'देवभूमि' क्यों कहा जाता है?
    इसे 'देवभूमि' कहा जाता है क्योंकि यहाँ कई प्राचीन मंदिर और धार्मिक स्थल स्थित हैं।

  2. उत्तराखण्ड की प्रमुख बोलियाँ कौन-सी हैं?
    गढ़वाली, कुमाऊँनी और जौनसारी प्रमुख बोलियाँ हैं।

  3. उत्तराखण्ड के पारंपरिक मकान किससे बने होते हैं?
    पारंपरिक मकान पत्थर, लकड़ी और मिट्टी से बनाए जाते हैं।

  4. उत्तराखण्ड की पारंपरिक जीवनशैली कैसी है?
    यहाँ की जीवनशैली सरल, आत्मनिर्भर और प्रकृति-आधारित है।


खानपान और पारंपरिक व्यंजन

  1. उत्तराखण्ड के प्रमुख पारंपरिक व्यंजन कौन-से हैं?
    मंण्डुए की रोटी, गहत की दाल, आलू-टमाटर का झोल, झोई, सिसौंण का साग आदि।

  2. बाल मिठाई कहाँ की प्रसिद्ध मिठाई है?
    यह अल्मोड़ा जिले की प्रसिद्ध मिठाई है।

  3. उत्तराखण्ड में खाए जाने वाले मोटे अनाज कौन-से हैं?
    मंण्डुआ, झुंगोरा, गहत और भट्ट।

  4. गौहत की दाल किस प्रकार की होती है?
    यह एक पौष्टिक दाल है जो विशेष रूप से उत्तराखण्ड में बनाई जाती है।


वेशभूषा और आभूषण

  1. उत्तराखण्ड की पारंपरिक वेशभूषा क्या है?
    महिलाओं की वेशभूषा में घाघरा-आँगड़ी और पुरुषों के लिए चूड़ीदार पजामा-कुर्ता प्रमुख हैं।

  2. यहाँ की महिलाएँ कौन-कौन से आभूषण पहनती हैं?
    गलोबन्द, नथ, पौंजी, बिछुए, जै माला आदि।

  3. पिछौड़ा किस अवसर पर पहना जाता है?
    विवाह, धार्मिक और शुभ अवसरों पर महिलाएँ पिछौड़ा पहनती हैं।


लोक कला और परंपराएँ

  1. उत्तराखण्ड की प्रमुख लोक कलाएँ कौन-सी हैं?
    ऐंपण, काष्ठ कला और शिल्प कला।

  2. 'ऐंपण' क्या है?
    यह एक पारंपरिक अल्पना शैली है जो घरों की सजावट के लिए बनाई जाती है।

  3. काष्ठ कला किससे संबंधित है?
    यह लकड़ी पर की जाने वाली नक्काशी कला है, जो मंदिरों और दरवाजों पर देखी जा सकती है।

  4. उत्तराखण्ड की लोक कथाओं का प्रमुख विषय क्या होता है?
    पौराणिक कहानियाँ, देवी-देवताओं की गाथाएँ और वीर गाथाएँ।


त्योहार और मेलों का महत्व

  1. उत्तराखण्ड के प्रमुख त्योहार कौन-से हैं?
    हरेला, बग्वाल, उत्तरायणी मेला, नन्दा देवी मेला आदि।

  2. बग्वाल मेला कहाँ मनाया जाता है?
    देवीधुरा, चम्पावत में।

  3. हरेला किसका प्रतीक है?
    यह प्रकृति और कृषि का प्रतीक है।

  4. गौचर मेला का महत्व क्या है?
    यह कृषि, पशुपालन और व्यापार के लिए प्रसिद्ध है।

  5. उत्तरायणी मेला कहाँ लगता है?
    बागेश्वर में, मकर संक्रांति के अवसर पर।


संगीत और नृत्य

  1. उत्तराखण्ड के प्रमुख लोक गीत कौन-से हैं?
    न्योली, झोड़ा, छपेली, बैर और फाग।

  2. छोलिया नृत्य किससे संबंधित है?
    यह एक युद्ध शैली का नृत्य है जो तलवार और ढाल के साथ किया जाता है।

  3. पाण्डव नृत्य क्या दर्शाता है?
    यह महाभारत की कहानियों पर आधारित नृत्य है।

  4. लोक संगीत में कौन-से वाद्य यंत्र प्रमुख हैं?
    ढोल, दमुआ, रणसिंग, भेरी, हुड़का, बीन बाजा।

  5. उत्तराखण्ड के लोक संगीत की विशेषता क्या है?
    यह प्रकृति, प्रेम, संघर्ष और समाज से जुड़े विषयों को दर्शाता है।

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