उत्तराखंड की लोकभाषाएं - कुमाऊँनी | Uttarakhand ki Lok Bashayen - Kumauni
उत्तराखंड की लोकभाषाओं में कुमाऊँनी एक प्रमुख भाषा है, जिसे प्रसिद्ध भाषाशास्त्री सर जॉर्ज ग्रियर्सन ने 'मध्य पहाड़ी भाषा' के रूप में संबोधित किया है। कुमाऊँनी और गढ़वाली दोनों ही भाषाएँ मध्य हिमालय क्षेत्र की विशेष बोलियाँ हैं, जिनका भारतीय प्राकृत, वैदिक और संस्कृत से गहरा संबंध है। यह भाषा अपने प्राचीन स्वरूप और ध्वनियों को आज भी अपने लोकगीतों और परंपराओं में संजोए हुए है। कुमाऊँनी बोली विशेष रूप से कुमाऊँ क्षेत्र के लोगों की मातृभाषा है और यह संस्कृत के शब्दों का प्रयोग करने के साथ-साथ प्राचीन आर्य भाषाओं से भी प्रभावित है।
कुमाऊँनी की उत्पत्ति और विशेषताएँ
कुमाऊँनी बोली में दरद / खस प्राकृत का प्रभाव देखा जाता है, साथ ही अवधी बोली की विशेषताएँ भी इसमें विद्यमान हैं। 14वीं शती के शिलालेखों और ताम्रपत्रों में संस्कृत शब्दों के साथ कुमाऊँनी बोली का प्रयोग मिलता है, जो इसकी प्राचीनता को दर्शाता है।
कुमाऊँनी बोली की कई उपबोलियाँ हैं, जिनका उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है। इन उपबोलियों में विशेष शब्द, ध्वनियाँ और उच्चारण होते हैं, जो उनके क्षेत्रीय प्रभावों को प्रदर्शित करते हैं। उदाहरण स्वरूप, कुमाऊँनी में हिंदी वाक्य "एक समय में दो विख्यात योद्धा थे" को विभिन्न उपबोलियों में अलग-अलग रूपों में बोला जाता है।
कुमाऊँनी बोली की उपबोलियाँ
- अस्कोटी: पिथौरागढ़ जनपद के सीरा क्षेत्र में बोली जाने वाली बोली अस्कोटी कही जाती है। इसमें सिराली, नेपाली और जोहारी बोलियों का प्रभाव है।(उदाहरण: कै बखत मा द्वि नामि पैक छि)
- सिराली: पिथौरागढ़ के असकोट के पश्चिम और गंगोली के पूर्व क्षेत्र में बोली जाने वाली बोली सिराली कहलाती है।(उदाहरण: कै बखत मा द्वि नामी पैक छयो)
- सोरयाली: पिथौरागढ़ जनपद के सोर परगने में बोली जाने वाली बोली सोरयाली है।(उदाहरण: कै बखत मा बड़ा जोधा छया)
- कुमय्या: काली कुमय्या क्षेत्र में बोली जाने वाली बोली कुमय्या या कुमाई कहलाती है।(उदाहरण: कै वक्त में द्वि बड़ा वीर योद्धा छया)
- गंगोली: गंगोलीहाट के आसपास बोली जाने वाली बोली गंगोली या गंगोई कही जाती है।(उदाहरण: कै बखत में द्वि बड़ा जोधा छया)
- दनपुरिया: अल्मोड़ा जनपद के दानपुर परगने में बोली जाने वाली बोली दनपुरिया कहलाती है। इसमें महाप्राण ध्वनियों का अभाव है।(उदाहरण: पैल बखत माई दो देव्या भड़ छिलो)
- चोगरखिया: यह बोली काली कुमय्या के उत्तर-पश्चिमी से लेकर पश्चिम में बारामण्डल परगने तक फैली है।(उदाहरण: कै समय द्वि नामी पैक छिया)
- खसपर्जिया: अल्मोड़ा के बारामण्डल परगने में बोली जाने वाली बोली खसपर्जिया कहलाती है।(उदाहरण: कै समय में द्वि नामी पैक छि)
- पछाई: अल्मोड़ा जनपद के पालि पछाऊँ क्षेत्र में बोली जाने वाली बोली पछाई कहलाती है।(उदाहरण: कै दीना माँ द्वि गाहिन पैक छिया)
- रौ-चौभेंसी: उत्तर-पूर्व नैनीताल जनपद के रौ और चौभेंसी क्षेत्र में बोली जाने वाली बोली रौ-चौभेंसी है।(उदाहरण: कै जमाना माँ जी दुई नामवर पैक छिया)
कुमाऊँनी और गढ़वाली की समानताएँ और अंतर
कुमाऊँनी और गढ़वाली बोली दोनों ही मध्य पहाड़ी बोली की शाखाएँ हैं, जो उत्तराखंड के अलग-अलग क्षेत्रों में बोली जाती हैं। गढ़वाली का मुख्य क्षेत्र गढ़वाल और कुमाऊँनी का कुमाऊँ क्षेत्र है। हालांकि, दोनों बोलियों में कुछ समानताएँ हैं, जैसे आर्य भाषा से निकले हुए शब्द और ध्वनियाँ, लेकिन इन दोनों में क्षेत्रीय शब्दों, उच्चारण और वाक्य संरचना में अंतर पाया जाता है।
निष्कर्ष
कुमाऊँनी बोली उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है और यह पहाड़ी संस्कृति, परंपराओं और लोकगीतों का आधार है। इसका संरक्षण और प्रचार-प्रसार हमारे सांस्कृतिक और भाषाई विविधता को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कुमाऊँनी और गढ़वाली जैसी भाषाओं की उपबोलियों को समझकर हम न केवल इनकी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित कर सकते हैं, बल्कि इनकी भाषाई समृद्धि और लोकपरंपराओं को भी सहेज सकते हैं।
FAQs: उत्तराखंड की लोकभाषाएं - कुमाऊँनी
कुमाऊँनी भाषा क्या है? कुमाऊँनी उत्तराखंड की एक प्रमुख लोकभाषा है, जो मुख्य रूप से कुमाऊँ क्षेत्र में बोली जाती है। यह मध्य पहाड़ी भाषा की एक शाखा है, जो संस्कृत, प्राकृत और वैदिक भाषाओं से गहरे रूप से जुड़ी हुई है।
कुमाऊँनी और गढ़वाली में क्या अंतर है? कुमाऊँनी और गढ़वाली दोनों ही मध्य पहाड़ी भाषाएँ हैं, लेकिन इन दोनों के बोलने के क्षेत्र अलग-अलग हैं। कुमाऊँनी कुमाऊँ क्षेत्र में बोली जाती है, जबकि गढ़वाली गढ़वाल क्षेत्र में। दोनों बोलियों में उच्चारण, वाक्य संरचना और कुछ शब्दों का प्रयोग भिन्न है।
कुमाऊँनी भाषा में कितनी उपबोलियाँ होती हैं? कुमाऊँनी भाषा में कई उपबोलियाँ हैं, जैसे अस्कोटी, सिराली, सोरयाली, कुमय्या, गंगोली, दनपुरिया, चोगरखिया, खसपर्जिया, पछाई और रौ-चौभेंसी।
कुमाऊँनी में "कै बखत मा द्वि नामि पैक छि" का क्या अर्थ है? यह वाक्य कुमाऊँनी बोली के एक उदाहरण है, जिसका हिंदी में अर्थ है "किसी समय में दो प्रसिद्ध योद्धा थे।"
कुमाऊँनी भाषा में क्या संस्कृत शब्दों का प्रयोग होता है? हां, कुमाऊँनी में संस्कृत शब्दों का प्रचुर मात्रा में प्रयोग होता है। 14वीं शती के शिलालेखों और ताम्रपत्रों में संस्कृत शब्दों का उपयोग देखा गया है, जो कुमाऊँनी की प्राचीनता को दर्शाता है।
कुमाऊँनी बोली का इतिहास क्या है? कुमाऊँनी बोली का इतिहास बहुत पुराना है और इसका संबंध प्राचीन आर्य भाषाओं से है। यह भाषा संस्कृत, प्राकृत और वैदिक भाषाओं के प्रभाव से विकसित हुई है।
क्या कुमाऊँनी भाषा का कोई साहित्य भी है? हाँ, कुमाऊँनी भाषा में कई लोकगीत, कविता, और साहित्यिक रचनाएँ हैं, जो कुमाऊँ क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर को प्रदर्शित करती हैं। कुमाऊँनी साहित्य में लोककाव्य और धार्मिक गीतों का विशेष स्थान है।
कुमाऊँनी बोलियों के संरक्षण के लिए क्या प्रयास किए जा रहे हैं? कुमाऊँनी बोलियों के संरक्षण के लिए कई शैक्षिक संस्थान, सांस्कृतिक संगठन और सरकारी योजनाएँ काम कर रही हैं। कुमाऊँनी को बढ़ावा देने के लिए भाषा और साहित्य पर शोध किया जा रहा है और विभिन्न माध्यमों से इसके प्रचार-प्रसार की कोशिशें की जा रही हैं।
कुमाऊँनी बोलियों में क्या फर्क होता है? कुमाऊँनी की विभिन्न उपबोलियाँ एक-दूसरे से उच्चारण, शब्दावली और व्याकरण में भिन्न होती हैं, जो विभिन्न क्षेत्रों की सांस्कृतिक और भाषाई विविधताओं को दर्शाती हैं।
कुमाऊँनी बोलियों को सीखने के लिए कौनसे साधन उपलब्ध हैं? कुमाऊँनी बोलियों को सीखने के लिए पुस्तकें, ऑनलाइन पाठ्यक्रम, और स्थानीय भाषाई केंद्रों से मदद ली जा सकती है। कुमाऊँनी संस्कृति और भाषा से संबंधित दस्तावेज़ों का अध्ययन भी एक अच्छा तरीका हो सकता है।
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