उत्तराखंड के जंगली खाद्य पदार्थ: पहाड़ों की अनमोल धरोहर (Wild Foods of Uttarakhand: Priceless Heritage of Mountains)

उत्तराखंड के जंगली खाद्य पदार्थ: पहाड़ों की अनमोल धरोहर

उत्तराखंड के पहाड़ न केवल अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए मशहूर हैं, बल्कि यहाँ के जंगलों में पाए जाने वाले जंगली खाद्य पदार्थ भी अनमोल धरोहर के रूप में जाने जाते हैं। इनमें कई पौधे, फल, और जड़ें शामिल हैं, जो न केवल स्वादिष्ट होते हैं बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी अत्यधिक लाभकारी हैं। आइए, इन अद्भुत जंगली खाद्य पदार्थों के बारे में विस्तार से जानें।

काफल: पहाड़ों का स्वादिष्ट फल

काफल, जिसे पहाड़ों का अमृत भी कहा जाता है, उत्तराखंड के जंगलों में पाया जाने वाला एक अद्वितीय फल है। बचपन में हरा, जवानी में लाल और बुढ़ापे में काला होकर यह फल अपने जीवन चक्र को पूरा करता है। इसके बारे में प्रसिद्ध कहावत है:

"बचपन में हरी भयो, भरी जवानी में लाल,
बुढ़ो पन में कालो भयो, कर पंछी विचार।"

काफल का स्वाद हर किसी के मन को भा जाता है। इसके अलावा, पहाड़ों में हिसालू, किल्मोड़ा, कैरू, चिगोड़ा, गेठी, और गिवें जैसे अन्य फेमस फल भी होते हैं जो स्वाद और पोषण से भरपूर होते हैं।

पानी के स्रोत और उनकी महत्ता

उत्तराखंड के पहाड़ों में अभी भी नौले और धारे (प्राकृतिक जल स्रोत) पाए जाते हैं। यहाँ के पानी की ठंडक और मिठास का कोई मुकाबला नहीं है। पत्तियों के दोने में रिसता पानी ताजगी से भर देता है और गाड़-गधेरे (जलधाराएँ) जंगल की ओर बढ़ने पर मिलते हैं। इन रास्तों पर चलते समय फिसलन का ध्यान रखना पड़ता है क्योंकि पानी के भीतर के ढुंगों (पत्थरों) पर काई जम जाती है।

जंगली बेल: शिव को अर्पित होने वाली पत्तियाँ

पंद्रह सौ मीटर की ऊंचाई पर जंगल में बेल के पेड़ मिलते हैं। बेल पत्ती, जिसे भोले भंडारी की प्रिय पत्ती माना जाता है, शिवलिंग पर अर्पित की जाती है। इसका रस सिरदर्द, थकान, और अवसाद को दूर करने के लिए भी उपयोगी होता है। इसके फल का मुरब्बा बनता है, जो पाचन तंत्र के लिए लाभकारी होता है।

अन्य जंगली फल और उनकी महत्ता

जंगल में लिसोड़ा, च्यूरा, दया, तुस्यारि, बेडु, तिमुल, नागफिणि और महुआ के पेड़ भी पाए जाते हैं। इन सबके पके फल खाने में स्वादिष्ट होते हैं। किल्मोड़ा, करोंदा, हिसालू, तुंग, गोगिना, मकोई, और वन ककड़ी जैसे फल भी पहाड़ी क्षेत्रों में पाए जाते हैं। अमरा का पका रसीला फल खाने के साथ-साथ इसकी पत्तियों से चटनी और अचार भी बनाया जाता है।

कंद और जड़ें: पहाड़ों का सजीव पोषण

क्योल, बण भड़, सिरालू, और बिदारी कंद जैसे कंद (जड़ें) पहाड़ों में मिलने वाले पोषक तत्वों का अद्वितीय स्रोत हैं। बिदारी कंद, जिसे ताकत बढ़ाने के लिए जाना जाता है, शरीर को ऊर्जा से भर देता है। इसी तरह, गेठी और सिंसौण की जड़ें भी पौष्टिक और स्वास्थ्यवर्धक होती हैं।

साग-सब्जी: जंगली पौधों से बनी व्यंजन

सिंसौण, सिमल, और कुलफी जैसे पौधों की कलियाँ और पत्तियाँ स्वादिष्ट साग-सब्जी बनाने के लिए उपयोग की जाती हैं। लिंगुड़ के डंठल और बेथु के पत्तों का साग भी पहाड़ी व्यंजनों का हिस्सा होता है। इन पौधों से बनी व्यंजन पहाड़ों की रसोई की अद्वितीय पहचान हैं।

तिमुर, जखिया और गुलबंश: पहाड़ी मसाले और चाय

तिमुर के बीज और जखिया पहाड़ी मसालों का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। तिमुर की चटनी बनती है और दाँत दर्द के उपचार में इसका उपयोग किया जाता है। गुलबंश के फूलों से बनी चाय पहाड़ी लोगों की सुबह को एक नई ऊर्जा देती है।

बाँज और दयार का पानी: शुद्धता और ताजगी का स्रोत

जैसे-जैसे हम और ऊंचाई की ओर बढ़ते हैं, हमें बांज और दयार के पेड़ मिलते हैं, जिनका ठंडा और मीठा पानी प्यास बुझाने का सबसे शुद्ध स्रोत होता है। यहाँ से आगे बढ़ते ही हिमालय की बर्फीली चोटियों का दृश्य दिखाई देने लगता है।

काफल की कहावत: जीवन के अनुभवों का सार

काफल के पेड़ से जुड़ी एक प्रसिद्ध कहावत है:

"काफवक बोट बै सैणए देखी।"
इस कहावत का अर्थ है कि किसी चीज़ की वास्तविकता को दूर से नहीं समझा जा सकता, उसे नजदीक से जानना जरूरी है। काफल का यह फल और इसके पेड़ जन-जन से जुड़े हुए हैं और उत्तराखंड की संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।


उत्तराखंड के पहाड़ों में मिलने वाले ये जंगली खाद्य पदार्थ न केवल स्वाद और पोषण से भरपूर होते हैं, बल्कि इनमें छिपी कहानियाँ और अनुभव हमें जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने का अवसर भी देते हैं। जब भी आपको मौका मिले, इन अनमोल धरोहरों का आनंद लेने के लिए उत्तराखंड की यात्रा अवश्य करें।

उत्तराखंड की जंगली संपदा: प्राकृतिक धरोहर और पारंपरिक स्वाद

उत्तराखंड के पहाड़ अपनी अद्वितीय प्राकृतिक संपदा और सांस्कृतिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध हैं। यहां के जंगलों में पाए जाने वाले जंगली फल, सब्जियाँ और औषधीय पौधे स्थानीय लोगों के जीवन का अहम हिस्सा हैं। इनकी उपयोगिता न केवल भोजन में है बल्कि ये पारंपरिक ज्ञान, लोकगीतों, लोकोक्तियों और पहेलियों में भी गहराई से रची-बसी हैं। आइए, जानते हैं उत्तराखंड के इन प्राकृतिक उपहारों के बारे में।

काफल: पहाड़ की अनमोल सौगात

गर्मी के मौसम में उत्तराखंड के पहाड़ों पर काफल का मौसम छा जाता है। इस फल का विशेष महत्व है और यह लोकगीतों और लोकोक्तियों में भी दर्ज है। काफल के फल को तीन अलग-अलग अवस्थाओं में देखा जाता है: बचपन में हरा, जवानी में लाल, और बुढ़ापे में काला। इसके जीवन चक्र को ध्यान में रखते हुए कहा गया है:

"बचपन में हरी भयो, भरी जवानी में लाल
बुढ़ो पन में कालो भयो, कर पंछी विचार।"

काफल को खाते समय बुजुर्गों की यह सलाह भी ध्यान देने योग्य है कि इसके बाद पानी पीने से बचना चाहिए।

उत्तराखंड के अन्य जंगली फल और उनकी महत्ता

काफल के अलावा, उत्तराखंड के जंगलों में कई और भी जंगली फल पाए जाते हैं, जो अपने अनोखे स्वाद और गुणों के लिए जाने जाते हैं। इनमें गिवै या गोविन, काउ हिसाउ, तरुआ या चूख, रामकिया या गोफल, भंग या भालू, जमुना या जामुन, और भमोर प्रमुख हैं। ये फल पकने पर अत्यधिक स्वादिष्ट हो जाते हैं और इनके खट्टे-मीठे स्वाद का आनंद स्थानीय लोग खूब लेते हैं।

प्रमुख फल:

  • गिवै या गोविन: जब पूरी तरह पक जाते हैं, तो इनके स्वाद में ऐसी मिठास होती है जो लार ग्रंथियों को भी पूरी तरह सक्रिय कर देती है।
  • रामकिया या गोफल: यह फल जंगलों में आसानी से मिल जाता है और इसका स्वाद लाजवाब होता है।
  • जामुन: यह फल खटास और मिठास के मिश्रण के कारण खाने में बहुत पसंद किया जाता है।

तीन हजार फीट की ऊंचाई पर मिलने वाले पौधे

तीन हजार फीट की ऊंचाई पर, जंगलों में कुछ विशेष प्रकार के पौधे और फल मिलते हैं जो पहाड़ों की तासीर के हिसाब से महत्वपूर्ण होते हैं। इनमें उगव, झंगरा या उगौव के पत्तों का साग, और उगल के काले दाने शामिल हैं। इनका उपयोग छोलिया रोटी और पूए बनाने में किया जाता है, जो पहाड़ी खानपान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

विशेष पौधे:

  • उगव: इसके पत्तों का साग पहाड़ों की तासीर के हिसाब से बेहद पौष्टिक होता है।
  • उगल: इसके काले दाने से बनने वाली छोलिया रोटी लोचदार और स्वादिष्ट होती है।

बुरांश: पहाड़ की लाली

बुरांश के लाल फूल पहाड़ों की हरियाली के बीच लालिमा बिखेरते हैं। इसके फूलों से बनाई गई पकोड़ी का स्वाद बेमिसाल होता है, और इसका शरबत दिल-दिमाग को तरावट देने के लिए प्रसिद्ध है। इसे पहाड़ का 'रूह अफ्ज़ा' कहा जा सकता है।

ऊंचे पहाड़ों की विशेष वनस्पतियाँ

जैसे-जैसे हम ऊंचाई पर जाते हैं, वहाँ के जंगलों में सिरकुटि, गाविज, सिपल, कबासी, और मनजियारि जैसी वनस्पतियाँ मिलती हैं। सिरकुटि का पेड़ और उसके फल, मनजियारि की जड़, और जम्बू की घास जैसी पत्तियाँ, जो सब्जियों और दालों में छौंक के रूप में इस्तेमाल की जाती हैं, यहां की विशेष पहचान हैं।

निष्कर्ष: प्रकृति की धरोहर का संरक्षण

उत्तराखंड के जंगलों में पाई जाने वाली ये वनस्पतियाँ न केवल पारंपरिक खान-पान का हिस्सा हैं बल्कि इनका सांस्कृतिक और औषधीय महत्व भी है। कुमाऊं और गढ़वाल के क्षेत्रों में ऐसी नब्बे से अधिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जबकि पश्चिमी हिमालय में ढाई सौ और उत्तर-पूर्व में तीन सौ से अधिक प्रजातियाँ मिलती हैं। विशेषज्ञों ने हिमालय में आठ हज़ार से ज्यादा ऐसी किस्मों की पहचान की है जिन्हें स्थानीय लोग चाव से खाते हैं।

इन प्राकृतिक धरोहरों का संरक्षण अत्यंत आवश्यक है, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इनके लाभों का आनंद ले सकें और पहाड़ों की यह अनमोल विरासत हमेशा बनी रहे।

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सवाल: उत्तराखंड के पहाड़ों में मिलने वाले काफल के तीन प्रमुख रंग कौन-कौन से होते हैं?

जवाब: काफल के तीन प्रमुख रंग होते हैं—बचपन में हरा, जवानी में लाल, और बुढ़ापे में काला।


सवाल: काफल का फल खाने के बाद बड़े बुजुर्ग किस चीज़ से परहेज करने की सलाह देते हैं?

जवाब: काफल का फल खाने के बाद पानी पीने से परहेज करने की सलाह दी जाती है।


सवाल: उत्तराखंड के जंगलों में मिलने वाले कौन-कौन से अन्य फल प्रमुख हैं?

जवाब: हिसालू, किल्मोड़ा, कैरू, चिगोड़ा, गेठी, गिवें, गोफल, भालू, जमुना, बण काकड़, और माल्यो जैसे फल उत्तराखंड के जंगलों में प्रमुख रूप से मिलते हैं।


सवाल: बेल के पत्ते का धार्मिक महत्व क्या है?

जवाब: बेल के पत्ते भोले भंडारी (भगवान शिव) के प्रिय होते हैं। इसका तीन पत्तियों वाला पत्ता शिवलिंग पर चढ़ाया जाता है और इसे शुभ माना जाता है।


सवाल: कौन से कंद उत्तराखंड के पहाड़ों में जमीन से खोद कर निकाले जाते हैं और खाए जाते हैं?

जवाब: क्योल, बण भड़, सिरालू, बिरालु या बिदारी कंद, और गेठी जैसे कंद उत्तराखंड के पहाड़ों में खोद कर निकाले जाते हैं और खाए जाते हैं।


सवाल: जंगली पौधों से बनाई जाने वाली कौन सी खटाई प्रसिद्ध है?

जवाब: भिलमोडा और चलमोड़ की पत्तियों से बनाई जाने वाली खटाई या चटनी बहुत प्रसिद्ध है।


सवाल: जखिया या जखी का उपयोग किसमें होता है?

जवाब: जखिया या जखी के बीज का उपयोग छौंकने (तड़का लगाने) में होता है। यह दालों और सब्जियों के स्वाद को बढ़ाने में उपयोगी होता है।


सवाल: पहाड़ों में किस पेड़ के फूलों से चाय बनाई जाती है?

जवाब: पहाड़ों में गुलबंश के फूलों से चाय बनाई जाती है, जिसे सुखा कर अलग किस्म का स्वाद मिलता है।


सवाल: बुरांश के लाल फूलों से क्या-क्या बनाया जा सकता है?

जवाब: बुरांश के लाल फूलों से पकोड़ी और शरबत बनाया जा सकता है। शरबत दिल और दिमाग को तरावट देने वाला माना जाता है।


सवाल: हिमालयी क्षेत्र में पाए जाने वाले कितनी जंगली खाद्य पौधों की पहचान की गई है?

जवाब: हिमालयी क्षेत्र में आठ हज़ार से अधिक जंगली खाद्य पौधों की पहचान की गई है। इनमें अकेले कुमाऊं में ही 90 से अधिक प्रजातियां शामिल हैं।


सवाल: काफल के पेड़ से क्या संदेश मिलता है?

जवाब: काफल के पेड़ से संदेश मिलता है कि दूर से हकीकत नहीं जानी जा सकती, इसीलिए कहा गया है, “काफवक बोट बै सैणए देखी”


सवाल: उत्तराखंड के पहाड़ों में कौन-सी वनस्पतियाँ गर्भनिरोधक गुण रखती हैं?

जवाब: बेल के पत्तों का रस लगातार सेवन करने से गर्भनिरोधक गुण पाया जाता है। उपराड़ा वाले बैद पंत जी के अनुसार, यह वीर्य को पतला करने में भी सहायक होता है।


सवाल: बिदारी कंद का सेवन क्यों किया जाता है?

जवाब: बिदारी कंद पौष्टिक होता है और शरीर को ताकत से भर देता है। इसे मेद (मोटापा) कम करने और शरीर को चुस्त-दुरुस्त रखने के लिए सेवन किया जाता है। यह साठे के पाथा बनाने के गुप्त फॉर्मूले का एक प्रमुख घटक है।


सवाल: कौन-सी जड़ें उत्तराखंड में शिवरात्रि और जन्माष्टमी के दौरान खाई जाती हैं?

जवाब: तरुड़ की जड़ें शिवरात्रि और जन्माष्टमी के दौरान खाई जाती हैं। इसे उबाल कर या पिसे लूण (नमक) के साथ खाया जाता है।


सवाल: तिमुल और तिमुर के बीज किस काम में आते हैं?

जवाब: तिमुर के बीज का उपयोग मसाले के रूप में बघार (छौंक) लगाने के लिए किया जाता है। इसकी चटनी भी बनाई जाती है और यह दाँत के दर्द को ठीक करने में सहायक होता है।


सवाल: बुरांश के पेड़ का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व क्या है?

जवाब: बुरांश के लाल फूलों का उपयोग धार्मिक कार्यों में किया जाता है और यह पहाड़ की हरियाली में लाल रंग के छींटे बिखेर देता है। इसके फूलों की पकोड़ी और शरबत प्रसिद्ध हैं, जो दिल और दिमाग को तरावट देने के लिए जाने जाते हैं।


सवाल: पहाड़ों में किस पौधे का उपयोग औषधीय चाय बनाने के लिए किया जाता है?

जवाब: गुलबंश के फूलों का उपयोग औषधीय चाय बनाने के लिए किया जाता है। इसे सुखा कर पीने से अलग स्वाद और स्वास्थ्य लाभ मिलता है।


सवाल: कौन-सा फल उत्तराखंड के जंगलों में आसानी से पहचाना जा सकता है और पकने पर खाया जाता है?

जवाब: बण काकड़, माल्यो, और गिवे उत्तराखंड के जंगलों में आसानी से पहचाने जा सकते हैं और पकने पर खाए जाते हैं।


सवाल: उत्तराखंड के पहाड़ों में कौन-सी जड़ी-बूटियाँ पत्थरीली जमीन में गहराई तक जाती हैं?

जवाब: तरुड़ और बिदारी कंद की जड़ें उत्तराखंड के पहाड़ों में पाई जाती हैं, जो पत्थरीली जमीन में गहराई तक जाती हैं। इनको खोदने में काफ़ी मेहनत करनी पड़ती है।


सवाल: उत्तराखंड के जंगलों में लिंगुड़ या लिंगोड़ का क्या उपयोग होता है?

जवाब: लिंगुड़ या लिंगोड़ के डंठल का उपयोग सूखी सब्जी बनाने के लिए किया जाता है। यह एक लोकप्रिय पहाड़ी व्यंजन है, जिसमें बारीक रेशों के कारण विशेष स्वाद मिलता है।


सवाल: कौन-सा पहाड़ी फल खटास भरी मिठास के साथ जीभ को जर-जर और भारी कर देता है?

जवाब: जमुना या जामुन का छोटा काला फल खटास भरी मिठास के साथ जीभ को जर-जर और भारी कर देता है।


सवाल: कौन-सी वनस्पति की पत्तियों का उपयोग पहाड़ी कड़ी और चटनी बनाने में किया जाता है?

जवाब: अमरा या अमियाँ की पत्तियों का उपयोग पहाड़ी कड़ी और चटनी बनाने में किया जाता है। इसकी पत्तियों से अचार भी बनाया जाता है।


 

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