द्रोण सागर: काशीपुर का पौराणिक तीर्थ स्थल
द्रोण सागर, उत्तराखंड के काशीपुर में स्थित एक पौराणिक और ऐतिहासिक स्थल है। यह झील महाभारत के महान गुरु द्रोणाचार्य और पांडवों की कहानी से जुड़ी हुई है। वर्तमान में, काशीपुर एक महत्वपूर्ण औद्योगिक शहर है, और द्रोण सागर इस क्षेत्र की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
कैसे पहुंचें
- बाय एयर:काशीपुर से निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर है।
- ट्रेन द्वारा:दिल्ली और रुद्रपुर से काशीपुर रेल मार्ग द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है।
- सड़क के द्वारा:दिल्ली और रुद्रपुर से काशीपुर सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है।
द्रोण सागर का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व
- महाभारत काल का संबंध:द्रोण सागर का उल्लेख महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। यह माना जाता है कि यहां पांडवों ने गुरु द्रोणाचार्य के सम्मान में यह झील खुदवाई थी।
- गोविषाण किले का इतिहास:एक अन्य मान्यता के अनुसार, यह झील हर्षवर्धन शासन के दौरान गोविषाण किले के लिए मिट्टी की खुदाई का परिणाम है।
- तीर्थ स्थल का महत्व:प्राचीन काल में, यह चार धाम यात्रा का एक पवित्र पड़ाव था। कहा जाता है कि द्रोण सागर में गंगा के समान पवित्र जल है, और यहां स्नान करना शुभ माना जाता है।
द्रोण सागर की वर्तमान स्थिति
द्रोण सागर झील लगभग 3 हेक्टेयर भूमि में फैली हुई है, लेकिन वर्तमान में यह झील दयनीय स्थिति में है। झील में पानी का स्तर कम है और वह भी वनस्पतियों से ढका हुआ है। ठोस कचरे और जल प्रवाह की कमी ने झील की स्थिति को और खराब कर दिया है।
सरकार की योजनाएं और सुधार कार्य
हाल ही में, झील के सौंदर्यीकरण के लिए कई योजनाएं बनाई गई हैं:
- झील के चारों ओर जीर्णोद्धार कार्य के लिए 5 करोड़ रुपये का बजट।
- मुख्य द्वार, फूड कोर्ट, ओपन एयर थिएटर, बच्चों के लिए पार्क और पार्किंग जैसी सुविधाओं का निर्माण।
- झील में पानी की आपूर्ति के लिए सिंचाई विभाग को 67 लाख रुपये आवंटित किए गए हैं।
हालांकि, स्थानीय लोग झील को पवित्र तीर्थ स्थल के रूप में संरक्षित रखने की मांग कर रहे हैं, न कि इसे मात्र एक पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने की।
द्रोण सागर का भविष्य
यदि जल आपूर्ति और संरक्षण के प्रयास नहीं किए गए, तो इस प्राचीन झील का और अधिक क्षरण अपरिहार्य है। झील को बचाने के लिए संबंधित विभाग को समर्पित प्रयास करने होंगे।
निष्कर्ष
द्रोण सागर न केवल काशीपुर की सांस्कृतिक धरोहर है, बल्कि भारतीय इतिहास और धर्म का एक अमूल्य हिस्सा भी है। इसे संरक्षित करना हमारी जिम्मेदारी है ताकि आने वाली पीढ़ियां भी इस पवित्र स्थल की महिमा का अनुभव कर सकें।
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