प्राक् एवं आद्य
ऐतिहासिक उत्तराखण्ड
पुरातात्विक साक्ष्य - स्थल - विशेषता
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- 1. गोरखा उड्यार (मानव, भेड़ बारहसिंगा लोमड़ी आदि के रंगीन चित्र) - डुंग्री ग्राम, चमोली - पीले रंग की धारीधार चट्टान पर गुलाबी व लाल रंग से अंकित चित्र
- 2. किमनीग्राम शैलाश्रय (हथियार+पशुचित्र) - कर्णप्रयाग-ग्वालदम मोटर मार्ग पर, पिण्डर घाटी - श्वेत रंग का चित्रित शैलाश्रय
- 3. काले रंग का आलेख - यमुनाघाटी, उत्तरकाशी - शख लिपि म लिखा
- 4. लखु उड्यार नर
ककाल, मिटटी के
बर्तन, जानवरों के
अंग - अल्मोड़ा-पिथौरागढ मोटर मार्ग, अल्मोडा - नागफनी अकार का भव्य शिलाश्रय, मुख्य सामूहिक (লাল, सफेद रंग) विपय काला,
- 5. फड़कानौला शैलाश्रय (खोज 1985 ई० में डा० मठपाल) - सुयालन्दी तट पर, अलमोड़ा - चित्रित शैलाश्रय
- 6. पेटशाला ग्राम शैलाश्रय (खोज 1989 ई० में डॉ० मठपाल) - लखु उड्यार से 2 किमी दक्षिण-पश्चिम, अल्मोडा - 2 चित्रित शैलाश्रय
- 7. फलसीमाग्राम शिलाश्रय -जनपद अल्मोड़ा
- 8. कसार देवी शैलाश्रय पहाड़ - जनपद अल्मोडा
- 9. लवेथाप ग्राम शैलाश्रय - अल्मोड़ा मोटर मार्ग पर विनसर - लाल रंग से निर्मित चित्र
इस क्षेत्र का नाम कूर्माचल पड़ा। आगे चलकर कूर्माचल का
प्राकृत भाषा में "कुमू" और हिन्दी में कुमाऊँ नाम पड़ा। कुमाऊँ शब्द का
सर्वाधिक उल्लेख स्कन्द पुराण के मानस खण्ड में हुआ है। ब्रह्मपुराण एवं वायुपुराण
के किरात, किन्नर, गंधर्व, यक्ष नाग, विद्याधर आदि जातियों
का निवास इस क्षेत्र में बताया गया है। महाभारत से किरात, किन्नर, यक्ष, तंगव, कुलिंद तथा खस जातियों के निवास की पुष्टि
करता है।
प्राचीन काल से ही इस क्षेत्र में नाग जाति के निवास की पुष्टि बेनीनाग, धौलनाग, कालीनाग, पिंलगनाग, बासुकीनाग, खरहरनाग आदि स्थलों से प्राप्त नाग देवता के मन्दिरों से होती है। इनमें सर्वप्रसिद्ध नाग मन्दिर बेनीनाग (पिथौरागढ़) में स्थित है। इस क्षेत्र में भी खसकाल में ही बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार हुआ। किरातों के वंशज आज भी अस्कोट एवां डीडीहाट क्षेत्रों में निवास करते है। इन्होंने अपना स्वतंत्र भापाई अस्तित्व बनाया हुआ। इनकी भापा "मुंडा" है। कुमाऊँ क्षेत्र पर राजपूत नियत्रण से पूर्व तक खस जाति का आधिपत्य बना रहा।
तलिका-1
पुरातात्विक साक्ष्य
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स्थल
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ताम्र मानव आकृतियाँ |
बनकोट (8), नैनीपातल (5). अल्मोड़ा |
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ओखली (Cup Marks) |
चन्द्रशेखर मन्दिर, द्वारहाट नौगाँव, मुनिया की दाई तथा
जोयों गाँव, ज० अल्मोडा
डॉ० जोशी ने कुमाऊँ में जसकोट देवीधुरा में, डॉ० कटौच को गोपेश्वर एवं पश्चिमी नयार
घाटी में इसके अवशेष मिले है। |
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ताम्र उपकरण तथा
गैरिक सदृश मदभाण्ड (Ochre
coloured Pot) |
बहादराबाद, हरिद्वार |
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कालसी घाटी से
प्राप्त उपकरण |
जनपद देहरादून, आरम्भिक पापाणकालीन |
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मलारी ग्राम शवाधान
(burials) (लौह उपकरण +
पशु कंकाल, मानव कंकाल
+ स्वर्ण मुखैटा + 10 मृतिका
पात्र |
जनपद चमोली |
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सिस्ट तथा अने बरियल
(दो प्रकार का शवाधान) |
सानड़ा, बसेड़ी ग्राम
(भिकियासैण) |
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तलिका-2
प्राक् एवं आद्य
ऐतिहासिक उत्तराखण्ड
|
पुरातात्विक साक्ष्य |
स्थल |
विशेषता |
1 |
गोरखा उड्यार (मानव, भेड़ बारहसिंगा
लोमड़ी आदि के रंगीन चित्र) |
डुंग्री ग्राम, चमोली |
पीले रंग की धारीधार
चट्टान पर गुलाबी व लाल रंग से अंकित चित्र |
2 |
किमनीग्राम शैलाश्रय
(हथियार+पशुचित्र) |
कर्णप्रयाग-ग्वालदम
मोटर मार्ग पर, पिण्डर घाटी |
श्वेत रंग का
चित्रित शैलाश्रय |
3 |
काले रंग का आलेख |
यमुनाघाटी, उत्तरकाशी |
शख लिपि म लिखा |
4 |
लखु उड्यार नर कंकाल, मिटटी के बर्तन, जानवरों के अंग |
अल्मोड़ा-पिथौरागढ
मोटर मार्ग, अल्मोडा |
नागफनी अकार का भव्य
शिलाश्रय, मुख्य
सामूहिक (লাল, सफेद रंग) विपय काला, |
5 |
फड़कानौला शैलाश्रय
(खोज 1985 ई० में डा०
मठपाल) |
सुयालन्दी तट पर, अलमोड़ा |
3 चित्रित शैलाश्रय |
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