खून की कमी पूरी करता है कंडाली का स्वादिष्ट साग (Kandali's delicious greens fulfill the lack of blood)
खून की कमी पूरी करता है कंडाली का स्वादिष्ट साग
उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में बिच्छू घास से बनने वाला कंडाली का साग बेहद लोकप्रिय और पौष्टिक व्यंजन है। उत्तराखंड में इसे कंडाली, काल्डी आला और सिसौण जैसे नामों से जाना जाता है। यह वही घास है जिसे पहाड़ों में कभी मास्टर जी बच्चों को अनुशासन सिखाने के लिए उपयोग करते थे। हिंदी में इसे बिच्छू घास या बिच्छू बूटी कहते हैं।
बिच्छू घास का नाम सुनते ही रौंगटे खड़े हो जाते हैं, क्योंकि अगर यह शरीर को छू जाए तो प्रभावित हिस्से में लंबे समय तक झनझनाहट होती है। लेकिन यही कंडाली जब साग के रूप में पकाया जाता है, तो इसका स्वाद अविस्मरणीय हो जाता है। यह साग मुख्य रूप से सर्दियों में खाया जाता है क्योंकि इसकी तासीर गर्म होती है।
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हिमाचल में बिच्छू बूटी का साग
हिमाचल प्रदेश के ऊपरी क्षेत्रों में सर्दियों के मौसम में बिच्छू बूटी का साग एक लोकप्रिय डिश है, जिसे ‘भाभरो रा साग’ कहा जाता है। इसे मक्की की रोटी के साथ खाया जाता है, जिससे इसका स्वाद और भी बढ़ जाता है। सरसों के साग की तुलना में यह साग अधिक पौष्टिक और स्वादिष्ट माना जाता है।
भाभर की कई प्रजातियां पहाड़ों में पाई जाती हैं, लेकिन इसके गहरे हरे रंग की छोटी पत्तियों वाले पौधों का ही साग बनाया जाता है। इसे आग की लपटों में झुलसाकर तैयार किया जाता है, जिससे इसके कांटे जल जाते हैं और साग को एक स्मोकी फ्लेवर मिलता है।
कंडाली का साग बनाने की विधि
कंडाली का साग बनाने के लिए इसकी नई और मुलायम कोंपलें सबसे उपयुक्त होती हैं। कोपलों को सावधानीपूर्वक तोड़कर इकट्ठा किया जाता है। इसके बाद इसे साफ करके निम्न प्रक्रिया अपनाई जाती है:
साफ और झुलसाना: कंडाली की कोंपलों को आग की तेज लपटों के सामने हल्का झुलसाया जाता है। इससे कांटे जल जाते हैं और साग अधिक स्वादिष्ट बनता है।
पकाना और मसाले मिलाना: कंडाली की कोंपलों को लोहे की कढ़ाही में पानी के साथ पकाएं। स्वाद बढ़ाने के लिए इसमें अमिल्डा की पत्तियां भी डालें। पकने के बाद इसे सिल-बट्टे पर पीसकर या करछी से घोंटकर गाढ़ा घोल तैयार करें।
तड़का लगाना: गर्म तेल में लहसुन, हींग, जख्या और लाल मिर्च का तड़का लगाकर इसमें कंडाली का घोल डालें। इसे अच्छी तरह से पकाएं और आवश्यकतानुसार मसाले डालें।
परोसना: इसे मक्की की रोटी, झंगोरा या मंडुवे की रोटी के साथ घी लगाकर परोसा जाता है। भूनी हुई पहाड़ी मिर्च के साथ इसका स्वाद और भी लाजवाब हो जाता है।
कंडाली के औषधीय गुण
कंडाली का पौधा खनिज, विटामिन और औषधीय गुणों से भरपूर होता है। इसमें भरपूर मात्रा में आयरन पाया जाता है, जो खून की कमी (एनीमिया) को दूर करने में सहायक है।
औषधीय लाभ:
विटामिन और खनिज: इसमें विटामिन ए, फोरमिक ऐसिड और एसटिल कोलाइट प्रचुर मात्रा में होते हैं।
गठिया और मोच: यह रक्त संचार में सुधार करता है और दर्द से राहत देता है।
कैंसर रोधी: इसके बीजों से कैंसर की दवाइयां बनाई जाती हैं।
डायबिटीज और एलर्जी: यह रक्त शर्करा को नियंत्रित करने और एलर्जी को खत्म करने में सहायक है।
कंडाली के अन्य उपयोग
हर्बल चाय: इसकी सूखी पत्तियों से हर्बल चाय बनाई जाती है।
सूप: कंडाली का सूप पौष्टिक और पाचन में सहायक होता है।
साबुन और रस्सियां: इसके डंठलों से साबुन और रस्सियां बनाई जाती हैं।
संतुलन के लिए टोपी: कंडाली की छाल से बनी टोपी मानसिक संतुलन के लिए उपयोगी मानी जाती है।
निष्कर्ष
कंडाली का साग न केवल स्वादिष्ट है, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत लाभकारी है। यह उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश की परंपरागत पाक संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यदि आपको मौका मिले, तो इस अद्भुत व्यंजन का आनंद अवश्य लें और इसके औषधीय गुणों का लाभ उठाएं।
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