13 कुमाऊं रेजीमेंट के शौर्य व पराक्रम की अमर गाथा (The immortal saga of the bravery and valor of the 13 Kumaon Regiment.)

13 कुमाऊं रेजीमेंट के शौर्य व पराक्रम की अमर गाथा

"वो झेल रहे थे गोली" – रेजांगला की अमर गाथा

भारतीय सेना की वीरता और बलिदान की कई कहानियाँ हमारे इतिहास में दर्ज हैं, लेकिन 13 कुमाऊं रेजीमेंट के रेजांगला युद्ध (1962) में दिखाए गए शौर्य की गाथा सबसे अनोखी और गौरवशाली है।


रेजांगला: वीरता की भूमि

24 अक्टूबर 1962 को चीन के आक्रमण के चलते 13 कुमाऊं रेजीमेंट की चार्ली (C) कंपनी को रेजांगला की सुरक्षा का जिम्मा सौंपा गया। यह स्थान लद्दाख के चुशूल सेक्टर में 18,000 फुट की ऊँचाई पर स्थित है।

मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में तीन कमीशन अधिकारी और 124 भारतीय जवानों ने अपनी जान की बाज़ी लगाकर इस महत्वपूर्ण दर्रे की रक्षा की।


18 नवंबर 1962: बलिदान की दीपावली

18 नवंबर 1962 को जब पूरा देश दिवाली की तैयारियों में व्यस्त था, तब 2000 से अधिक चीनी सैनिकों ने रेजांगला पर हमला कर दिया। हर एक भारतीय सैनिक को 20 चीनी सैनिकों का सामना करना पड़ा। लेकिन भारतीय जवानों ने शौर्य और वीरता की जो मिसाल पेश की, वह इतिहास में अमर हो गई।


तीन चरणों में हुआ था आक्रमण

चीनी सेना ने तीन बार हमला किया, लेकिन हर बार भारतीय सैनिकों ने उनका डटकर मुकाबला किया। तीसरे आक्रमण में तो चीनी सैनिकों को अपने ही साथियों की लाशों पर चलकर आगे बढ़ना पड़ा। लेकिन भारतीय सैनिकों ने गोला-बारूद समाप्त होने के बावजूद संगीनों और डंडों से लड़ाई जारी रखी।

  • नायक सिंहराम ने कई चीनी सैनिकों को चट्टान पर पटककर मार डाला।

  • हवलदार रामकुमार ने नौ गोलियां लगने के बावजूद छह मील चलकर मुख्यालय तक संदेश पहुँचाया।

  • नायक सिंहराम और सिपाही कंवर सिंह, जो सगे भाई थे, एक ही बंकर में शहीद मिले।


114 जवानों का सर्वोच्च बलिदान

इस युद्ध में 114 भारतीय सैनिकों ने वीरगति प्राप्त की, लेकिन बदले में 1700 से अधिक चीनी सैनिकों को मार गिराया। रेजांगला की घाटी चीनी सैनिकों की लाशों से पट गई।


चीनी सेना भी हुई नतमस्तक

भारतीय सैनिकों की बहादुरी देखकर चीनी सैनिकों ने प्लास्टिक की पट्टी पर ‘BRAVE’ (बहादुर) लिखकर शहीदों के शवों के पास रखा। साथ ही, सम्मान के प्रतीक के रूप में संगीन गाड़कर उस पर अपनी टोपी लटकाकर चले गए


शहीदों के शव, बर्फ में जमे लेकिन हथियार थामे हुए

तीन महीने बाद, 11 फरवरी 1963 को, जब भारतीय सेना के अधिकारी और रेडक्रॉस दल वहाँ पहुँचे, तो देखा कि शहीदों के शव जमे हुए थे, लेकिन वे अब भी हथियार थामे हुए थे। उनकी वीरता का यह नज़ारा पूरे देश के लिए गर्व और प्रेरणा का स्रोत बन गया।


मेजर शैतान सिंह का बलिदान

मेजर शैतान सिंह ने आखिरी समय तक युद्ध का नेतृत्व किया और वीरगति प्राप्त की। उनका पार्थिव शरीर हवाई मार्ग से जोधपुर लाया गया। उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।


रेजांगला युद्ध स्मारक

आज भी चुशूल में रेजांगला युद्ध स्मारक भारतीय सेना के उन वीर सैनिकों की शहादत को याद दिलाता है, जिन्होंने अपने अदम्य साहस से चीन को इस क्षेत्र पर कब्जा करने से रोका।


‘ए मेरे वतन के लोगो’ – रेजांगला के शहीदों को समर्पित

लता मंगेशकर जी द्वारा गाया गया अमर गीत ‘ए मेरे वतन के लोगो’ की यह पंक्ति विशेष रूप से रेजांगला के शहीदों को समर्पित थी:

“जब देश में थी दिवाली, वो खेल रहे थे होली, जब हम बैठे थे घरों में, वो झेल रहे थे गोली।”


निष्कर्ष

13 कुमाऊं रेजीमेंट के रणबांकुरों ने 1962 के भारत-चीन युद्ध में जिस शौर्य और बलिदान की गाथा लिखी, वह सदा अमर रहेगी। उनकी वीरता आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनी रहेगी। जय हिंद! 🇮🇳🚩

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