फूलदेई त्यौहार 2025
उत्तराखंड के बाल लोक पर्व के रूप में प्रसिद्ध फूलदेई त्यौहार 2025 में 15 मार्च 2025 को मनाया जाएगा।
उत्तराखंड में बच्चों के त्यौहार के रूप में प्रसिद्ध इस पर्व में बच्चे गांव में सभी के दरवाजे पर पुष्प अर्पित कर उस घर की मंगलकामना करते हैं। बदले में गृहस्वामी उन्हें चावल, गुड़, और अन्य भेंट देते हैं। कुमाऊँ मंडल में इसे "फूलदेई" कहा जाता है, जबकि गढ़वाल के कुछ क्षेत्रों में इसे "फुलारी" त्यौहार के नाम से जाना जाता है। कुमाऊँ में यह पर्व एक दिन तक मनाया जाता है, जबकि गढ़वाल में कहीं यह आठ दिन, कहीं पंद्रह दिन और कहीं तीस दिन तक मनाया जाता है।

फूलदेई 2024 से प्रतिवर्ष बाल पर्व के रूप में मनाया जाता है
फूलदेई पर्व 2023 के अवसर पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा था कि किसी भी राज्य की संस्कृति एवं परंपराओं में लोक पर्वों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। उन्होंने घोषणा की कि अब से प्रतिवर्ष फूलदेई को बाल पर्व के रूप में मनाया जाएगा।
नव वर्ष और बसंत के स्वागत का पर्व
फूलदेई त्यौहार सनातन नववर्ष और बसंत के स्वागत का पर्व है। देवतुल्य छोटे-छोटे बच्चे घर की देहली सजा कर नववर्ष और बसंत ऋतु का स्वागत करते हैं। यह मात्र एक त्यौहार नहीं बल्कि प्रकृति के प्रति बच्चों के स्नेह और जागरूकता का परिचायक है। दुनिया के सभी समाजों में नववर्ष के अवसर पर उत्सव मनाने की परंपरा रही है, और उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में भी इस परंपरा को जीवंत रखा गया है।
फूलदेई छम्मा देई के गीत द्वारा शुभकामनाएं
प्रत्येक वर्ष की भांति फूलदेई 2025 में भी देवतुल्य बच्चों द्वारा "फूलदेई छम्मा देई" गाकर प्रत्येक घर को आशीर्वाद और मंगलकामनाएँ दी जाएँगी। इस गीत का अर्थ है: "यह देहली फूलों से सजी रहे, यह द्वार सदा खुशियों से भरा रहे। हम इस देहली को बार-बार नमस्कार करते हैं।"
फूलदेई के पारंपरिक गीत

कुमाउनी भाषा में फूलदेई गीत:
फूलदेई छम्मा देई ।
फूल देई छम्मा देई ।दैणी, द्वार भर भकार।यो देलि कु नमस्कार ।जतुके दियाला, उतुके सई ।।
इस गीत के माध्यम से बच्चे घर की देहरी पर फूल डालकर घर की खुशहाली और सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं।
गढ़वाली भाषा में फूलदेई गीत:
ओ फुलारी घौर।
जै माता का भौंर ।।क्यौलिदिदी फुलकंडी गौर ।डंडी बिराली छौ निकोर।।चला छौरो फुल्लू को।खांतड़ि मुतड़ी चुल्लू को।।हम छौरो की द्वार पटेली।तुम घौरों की जिब कटेली।।
गढ़वाली लोकगीत: चला फुलारी फूलों को
गढ़वाली लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी जी द्वारा गाया गया लोकप्रिय गीत "चला फुलारी फूलों को" फूलदेई पर्व से संबंधित है। इसे पांडवास की टीम ने एक नए रूप में प्रस्तुत किया था जिसे लोगों ने खूब पसंद किया।
चला फुलारी फूलों को
सौदा-सौदा फूल बिरौला।
हे जी सार्यूं मा फूलीगे ह्वोलि फ्योंली लयड़ी
मैं घौर छोड्यावा ।
हे जी घर बौण बौड़ीगे ह्वोलु बालो बसंत
मैं घौर छोड्यावा ।।
फूलदेई की परंपराएँ
बच्चों द्वारा पुष्पार्पण: बच्चे फूलों से सजे थाल या झोले लेकर गाँवभर में घूमते हैं और सभी घरों की देहरी पर फूल चढ़ाते हैं।
बड़ों का आशीर्वाद: बदले में गृहस्वामी उन्हें चावल, गुड़, और अन्य उपहार देकर शुभकामनाएँ देते हैं।
सांस्कृतिक गीत और नृत्य: कुछ क्षेत्रों में इस दिन विशेष गीत गाए जाते हैं और लोकनृत्य भी होते हैं।
फूलदेई पर कविता
निष्कर्ष
फूलदेई पर्व उत्तराखंड की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा और प्रकृति प्रेम का अद्भुत उदाहरण है। यह पर्व न केवल बच्चों को अपनी जड़ों से जोड़ता है, बल्कि समाज में परस्पर सहयोग और सद्भावना की भावना को भी प्रोत्साहित करता है। 2025 में भी यह पर्व पूरे उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाएगा।
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