90% दिव्यांग फिर भी असाधारण: डॉ. साई कौस्तभ की प्रेरणादायक कहानी (90% disabled yet extraordinary: Dr. Sai Kaustubh's inspiring story.)

90% दिव्यांग होते हुए भी विभिन्न प्रतिभाओं के धनी: डॉ. साई कौस्तभ दासगुप्ता की प्रेरणादायक कहानी

जीवन हमें हमेशा हमारी कल्पना या इच्छाओं के अनुरूप नहीं मिलता, लेकिन हमें इसे एक खेल की तरह अपनाना चाहिए और हर पल का आनंद लेना चाहिए। कठिनाइयों को अवसर में बदलने का जज़्बा ही इंसान को सच्ची सफलता दिलाता है। यही प्रेरक विचार हैं सिलीगुड़ी (पश्चिम बंगाल) के रहने वाले डॉ. साई कौस्तभ दासगुप्ता के, जो 90% दिव्यांग होते हुए भी अपनी अनोखी प्रतिभाओं के चलते विश्व विख्यात हो गए हैं। व्हीलचेयर पर पूरी तरह आश्रित होने के बावजूद वे एक जाने-माने अंतर्राष्ट्रीय ग्राफिक डिज़ाइनर, गायक, संगीतकार, लेखक और मोटिवेशनल स्पीकर हैं।

कठिनाइयों के बावजूद असाधारण सफलता

कौस्तभ बचपन से ही Brittle Bone Disease से ग्रस्त थे, जिससे उनकी हड्डियाँ अत्यधिक नाज़ुक थीं और उनके शरीर में कई बार फ्रैक्चर हो चुका था। लेकिन उन्होंने अपनी विषमताओं को सहज रूप से स्वीकारते हुए अपने जीवन को सकारात्मक दृष्टिकोण से जिया। 27 वर्ष की आयु तक उन्होंने असंख्य कठिनाइयों का सामना किया, और उनका अधिकतर जीवन एक कमरे तक सीमित रहा। लेकिन जब वे व्हीलचेयर पर बैठने में सक्षम हुए, तो उन्होंने अपने जीवन को एक नई ऊर्जा के साथ समझना और जीना शुरू किया।

अभूतपूर्व उपलब्धियाँ

उनका बायाँ हाथ ही आंशिक रूप से सक्रिय है और उसी के सहारे उन्होंने कई असाधारण कार्य किए। अपनी एक ही ऊँगली के सहारे उन्होंने मात्र 52 सेकंड में 28 शब्द टाइप कर रिकॉर्ड स्थापित किया, जिसे लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स, इंडिया बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स (2018), एशिया बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स में दर्ज किया गया।


इसके अलावा, कौस्तभ वर्ल्ड डिसेबल्ड लीडरशिप सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व भी कर चुके हैं। उनकी अद्वितीय प्रतिभा और आत्मबल ने उन्हें पूरी दुनिया में एक मिसाल बना दिया है।

प्रेरणा का स्रोत: परिवार और सकारात्मक सोच

कौस्तभ अपनी सफलता का श्रेय अपने परिवार को देते हैं, जिनके प्रोत्साहन और समर्थन ने उन्हें आत्मबल और आत्मविश्वास दिया। वे हमेशा जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने की सलाह देते हैं और मुस्कान के साथ हर कठिनाई का सामना करने का संदेश देते हैं।

उनकी प्रेरणादायक यात्रा यह दर्शाती है कि किसी भी प्रकार की शारीरिक सीमाएं हमें अपने सपनों को पूरा करने से नहीं रोक सकतीं। हमें सिर्फ अपने भीतर आत्मविश्वास और सकारात्मक सोच विकसित करनी होगी, क्योंकि 'इच्छाशक्ति और मेहनत से कोई भी बाधा पार की जा सकती है।'

टिप्पणियाँ