अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ: शहीद और कवि की प्रेरक कहानी Ashfaq Ullah Khan: Shaheed Aur Kavi Ki Prerak Kahani
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ: भारत के पहले मुस्लिम क्रांतिकारी
जीवन परिचय
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रांतिकारी थे। वे काकोरी कांड में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए प्रसिद्ध हैं। 19 दिसंबर 1927 को ब्रिटिश शासन ने उन्हें फैजाबाद जेल में फांसी पर लटका दिया। अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ उर्दू भाषा के बेहतरीन शायर भी थे और उनके उर्दू तखल्लुस 'हसरत' के नाम से कविताएँ लिखते थे। उनके जीवन की कहानी भारत में हिंदू-मुस्लिम एकता का अनुपम उदाहरण है।
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का जन्म उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर जिले के कदनखैल जलालनगर मुहल्ले में 22 अक्टूबर 1900 को हुआ था। उनके पिता का नाम मोहम्मद शफीक उल्ला ख़ाँ था, और उनकी मां मजहूरुन्निशाँ बेगम अत्यंत सुंदर और शिक्षित थीं। अशफ़ाक़ के परिवार में उनके ननिहाल वाले उच्च शिक्षित थे, लेकिन उनके खुद के परिवार में कोई भी ग्रेजुएट नहीं था। अशफ़ाक़ ने अपनी मेहनत और कुरबानी से इस दाग को धो डाला।
बचपन और शिक्षा
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का बचपन खेलकूद, तैराकी, घुड़सवारी और बंदूक चलाने में बीता। देश के प्रति उनके मन में गहरा अनुराग था। वे स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलनों में रुचि रखते थे और क्रांतिकारी जीवन के प्रति उनका झुकाव बढ़ता गया। वे राम प्रसाद बिस्मिल से मिलने की कोशिश करने लगे और धीरे-धीरे उनके दल के भरोसेमंद साथी बन गए। अशफ़ाक़ ने यह साबित कर दिया कि मंदिर और मस्जिद उनके लिए समान हैं और वे हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे।
राम प्रसाद बिस्मिल के साथ दोस्ती
अशफ़ाक़ और राम प्रसाद बिस्मिल की दोस्ती स्वतंत्रता संग्राम की प्रेरणादायक कहानियों में शामिल है। बिस्मिल के साथ उनका जुड़ाव और दोस्ती ने उन्हें क्रांतिकारी जीवन की ओर अग्रसर किया। उनके बीच कविताओं और शायरी की जुगलबंदी भी होती थी, जो उर्दू के मुशायरे के रूप में प्रसिद्ध थी।
काकोरी कांड
9 अगस्त 1925 को अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ और उनके क्रांतिकारी साथियों ने सहारनपुर-लखनऊ 8 डाउन पैसेंजर ट्रेन में धन लूटने की योजना बनाई। इस घटना के बाद ब्रिटिश सरकार ने कठोर कार्रवाई की और कई क्रांतिकारियों को गिरफ्तार किया। अशफ़ाक़ ने भागकर बनारस और फिर बिहार में काम किया, लेकिन अंततः उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
अशफ़ाक़ की रचनाएँ
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ की रचनाएँ स्वतंत्रता संग्राम के उनके संकल्प और देशभक्ति को दर्शाती हैं:
- "कस ली है कमर अब तो, कुछ करके दिखाएँगे, आज़ाद ही हो लेंगे, या सर ही कटा देंगे।"
- "हटने के नहीं पीछे, डर कर कभी जुल्मों से, तुम हाथ उठाओगे, हम पैर बढ़ा देंगे।"
- "बेशस्त्र नहीं है हम, बल है हमें चरखे का, चरखे से जमीं को हम, ता चर्ख गुँजा देंगे।"
- "परवा नहीं कुछ दम की, गम की नहीं, मातम की, है जान हथेली पर, एक दम में गवाँ देंगे।"
- "उफ़ तक भी जुबां से हम हरगिज न निकालेंगे, तलवार उठाओ तुम, हम सर को झुका देंगे।"
- "सीखा है नया हमने लड़ने का यह तरीका, चलवाओ गन मशीनें, हम सीना अड़ा देंगे।"
- "दिलवाओ हमें फाँसी, ऐलान से कहते हैं, खूं से ही हम शहीदों के, फ़ौज बना देंगे।"
- "मुसाफ़िर जो अंडमान के तूने बनाए ज़ालिम, आज़ाद ही होने पर, हम उनको बुला लेंगे।"
विचार
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ के विचार स्वतंत्रता, देशभक्ति, और संघर्ष के प्रति उनके समर्पण को दर्शाते हैं:
- "देश भक्ति अपने साथ हर तरह की परेशानियां और दर्द लाती है, मगर जो व्यक्ति इसे चुनता है, उसके लिए ये सभी परेशानियां और दर्द, आराम और आसानी में बदल जाती है।"
- "सिर्फ इस देश के प्रति प्रेम की वजह से इतना सब कुछ सहता हूँ।"
- "मेरा कोई सपना नहीं है, और अगर है तो सिर्फ एक है, और वो है कि तुम मेरे बच्चों उसी के लिए संघर्षरत रहो जिसके लिए मैं खत्म हो रहा हूँ।"
- "भाई और दोस्त रोएंगे मेरे जाने के बाद मगर मैं रो रहा हूँ उनके व्यवहार, बेवफाई और जो रूखापन है उनमें अपनी मातृभूमि के प्रति की वजह से।"
- "मत रोना बच्चों, मत रोना कोई। मैं अमर हूँ! मैं अमर हूँ!!"
- "किए थे काम हमने भी जो कुछ भी हमसे बन पाये, ये बातें तब की हैं आज़ाद थे और था शबाब अपना; मगर अब तो जो कुछ भी हैं उम्मीदें बस वो तुमसे हैं, जबाँ तुम हो लबे-बाम आ चुका है आफताब अपना।"
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का जीवन और उनके योगदान स्वतंत्रता संग्राम के अमर अध्याय हैं। उनकी शहादत और काव्य रचनाएँ आज भी देशभक्ति और क्रांतिकारी भावना की प्रेरणा देती हैं।
टिप्पणियाँ