चक्रवर्ती राजगोपालाचारी: आधुनिक भारत के चाणक्य
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, जिन्हें 'राजाजी' के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय राजनीति के एक प्रमुख नेता, समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी थे। वे आधुनिक भारत के इतिहास के 'चाणक्य' माने जाते हैं और 1954 में उन्हें 'भारत रत्न' से सम्मानित किया गया था।
जन्म और प्रारंभिक जीवन
राजगोपालाचारी का जन्म 10 दिसंबर 1878 को मद्रास (तमिलनाडु) के सेलम ज़िले के होसूर के पास 'धोरापल्ली' नामक गांव में हुआ था। वे एक वैष्णव ब्राह्मण परिवार से थे। उनके पिता श्री नलिन चक्रवर्ती सेलम न्यायालय में न्यायधीश थे। प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने बैंगलोर के सेंट्रल कॉलेज से हाई स्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की। बाद में मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज से बी.ए. और वकालत की पढ़ाई पूरी की।
सामाजिक और राजनीतिक जीवन
राजगोपालाचारी वकालत के क्षेत्र में उत्कृष्ट थे, लेकिन स्वामी विवेकानंद के विचारों से प्रभावित होकर वे समाज सुधार की ओर आकर्षित हुए। उन्होंने सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाई और जनता के समर्थन से सेलम की म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन के अध्यक्ष चुने गए। उन्होंने सेलम में पहले सहकारी बैंक की स्थापना भी की।
गांधी जी का सान्निध्य और स्वतंत्रता संग्राम
1915 में जब महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे, तो राजगोपालाचारी उनके विचारों से अत्यधिक प्रभावित हुए। 1919 में रॉलेक्ट एक्ट के खिलाफ सत्याग्रह आंदोलन के दौरान वे गांधी जी के संपर्क में आए और मद्रास में सत्याग्रह का नेतृत्व किया। इसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा। इसके बाद उन्होंने अपनी वकालत छोड़कर खुद को पूरी तरह स्वतंत्रता संग्राम को समर्पित कर दिया।
1930 के नमक सत्याग्रह में उन्होंने वेदयासम के सागर तट पर नमक कानून का उल्लंघन कर जागरूकता अभियान चलाया, जिसके चलते उन्हें फिर से जेल भेजा गया। उन्होंने गांधी जी के साथ कई आंदोलनों में भाग लिया और कांग्रेस पार्टी के एक महत्वपूर्ण नेता बने।
राजनीतिक दूरदर्शिता और असहयोग आंदोलन
राजगोपालाचारी ने असहयोग आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया और कई बार जेल गए। वे अपने सिद्धांतों और राजनीतिक सूझबूझ के लिए प्रसिद्ध थे। 1931-32 में हरिजनों के पृथक मताधिकार को लेकर गांधी जी और भीमराव अंबेडकर के बीच मतभेद उत्पन्न हो गए थे, जिसे राजगोपालाचारी ने बड़ी चतुराई से सुलझाया।
1937 में मद्रास प्रांत में कांग्रेस के नेतृत्व में चुनाव जीतने के बाद उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने ब्रिटिश सरकार को समर्थन देने के बदले पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की, जिसके कारण वे गांधी जी और कांग्रेस के कई नेताओं से मतभेद रखते थे।
स्वतंत्र भारत में योगदान
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, राजगोपालाचारी 1948 से 1950 तक स्वतंत्र भारत के पहले भारतीय गवर्नर जनरल बने। इसके बाद वे केंद्रीय गृह मंत्री भी रहे। 1959 में उन्होंने 'स्वतंत्र पार्टी' की स्थापना की, जो कांग्रेस की नीतियों का विरोध करने के लिए बनाई गई थी। वे भारतीय राजनीति में नैतिकता और स्वच्छ प्रशासन के पक्षधर थे।
निधन और विरासत
28 दिसंबर 1972 को चक्रवर्ती राजगोपालाचारी का निधन हो गया। वे एक दूरदर्शी राजनेता, प्रभावशाली लेखक, कुशल प्रशासक और स्वतंत्रता संग्राम के योद्धा थे। भारतीय राजनीति और समाज में उनके योगदान को सदैव याद किया जाएगा।
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