लोक गायक जीत सिंह नेगी: गढ़वाली लोक संगीत के अप्रतिम स्तंभ (Folk singer Jeet Singh Negi: An unparalleled pillar of Garhwali folk music.)

लोक गायक जीत सिंह नेगी: गढ़वाली लोक संगीत के अप्रतिम स्तंभ

प्रारंभिक जीवन और सांस्कृतिक गतिविधियां

लोक गायक जीत सिंह नेगी का जन्म उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में हुआ था। उन्होंने बचपन से ही संगीत में रुचि दिखानी शुरू कर दी थी और अपने छात्र जीवन से ही गढ़वाली लोकगीतों को मंच पर प्रस्तुत करना शुरू कर दिया था।

  • 1942 में उन्होंने गढ़वाल की सांस्कृतिक राजधानी पौड़ी के नाट्य मंचों से स्वरचित गढ़वाली गीतों का गायन शुरू किया और प्रारंभ से ही आकर्षक, सुरीली धुनों के कारण लोकप्रिय हो गए।

  • 1949 में मुंबई की यंग इंडिया ग्रामोफोन कंपनी से उनके छह गढ़वाली गीतों की रिकॉर्डिंग हुई, जो अत्यंत प्रचलित हुए।

  • 1954 में मुंबई की मूवी इंडिया फिल्म कंपनी द्वारा निर्मित ‘खलीफा’ चलचित्र में सहायक निर्देशक की भूमिका निभाई। साथ ही फिल्म ‘चौदहवीं रात’ में भी सहायक निर्देशक के रूप में काम किया।

  • नेशनल ग्रामोफोन रिकॉर्डिंग कंपनी मुंबई में सहायक संगीत निर्देशक के पद पर कार्य किया।

  • 1955 में आकाशवाणी दिल्ली से गढ़वाली गीतों का प्रसारण आरंभ होने पर प्रथम बैच के ‘गीत गायक’ बने।

  • 1956 में तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री पं. गोविंद बल्लभ पंत द्वारा उद्घाटित पर्वतीय लोकगीत-नृत्य समारोह में गढ़वाल की टोली का नेतृत्व किया।

  • 1957 में लोक साहित्य समिति उत्तर प्रदेश के सचिव विद्यानिवास मिश्र द्वारा विशेष रिकॉर्डिंग के लिए आमंत्रण प्राप्त किया और उनकी गढ़वाली लोकगीतों की रिकॉर्डिंग हुई।

  • 1960-62 में पर्वतीय सांस्कृतिक सम्मेलन देहरादून के मंच से लोकगीत एवं नृत्य प्रस्तुत किए।

  • 1979 में मसूरी टीवी टावर के उद्घाटन अवसर पर दिल्ली दूरदर्शन के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया।

  • 1982 में पर्वतीय कला मंच की स्थापना के बाद देहरादून और चंडीगढ़ में कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया।

सम्मान और उपलब्धियां

लोक संगीत और सांस्कृतिक क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए उन्हें कई प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाजा गया।

  • 1955 में रघुमल आर्य कन्या पाठशाला दिल्ली द्वारा सांस्कृतिक योगदान के लिए सम्मानित।

  • 1956 में अखिल गढ़वाल सभा, देहरादून द्वारा उनके प्रथम गीत संग्रह ‘गीत गंगा’ के लिए सम्मानित।

  • 1962 में साहित्य सम्मेलन चमोली द्वारा ‘लोकरत्न’ की उपाधि दी गई।

  • 1990 में गढ़वाल भ्रातृ मंडल, मुंबई द्वारा ‘गढ़ रत्न’ सम्मान।

  • 1995 में उत्तर प्रदेश संगीत अकादमी द्वारा अकादमी पुरस्कार से सम्मानित।

  • 2000 में अल्मोड़ा संघ की ओर से ‘मोहन उप्रेती लोक संस्कृति पुरस्कार’ प्रदान किया गया।

  • 2016 में ‘दैनिक जागरण’ द्वारा आयोजित ‘स्वरोत्सव’ में ‘लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड’ से सम्मानित।

निष्कर्ष

लोक गायक जीत सिंह नेगी गढ़वाली लोक संगीत के आधार स्तंभों में से एक रहे हैं। उन्होंने अपने जीवन को संगीत और संस्कृति को समर्पित किया और उत्तराखंड की समृद्ध लोक परंपराओं को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। उनका योगदान गढ़वाली लोकसंगीत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा।

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