पहचान: लक्ष्य, मेहनत और सफलता की प्रेरक कहानी (Identity: An inspiring story of goals, hard work, and success.)

पहचान

जिस प्रकार दीपक का प्रकाश अंधेरा दूर करता है, उसी तरह हर अच्छा काम रोशनी बिखेरता है।

मिश्रा जी का बेटा जब बार-बार उठाने पर भी बिस्तर से नहीं उठा तो उन्होंने गुस्से में कहा, "न जाने यह आलसी किस्म का इंसान हमारे घर में कहां से आ गया है।"

मिश्रा जी की पत्नी ने उन्हें चाय का कप पकड़ाते हुए कहा, "अभी दिन शुरू नहीं हुआ और आपने मेरे लाड़ले बेटे को डांटना भी शुरू कर दिया है।"

मिश्रा जी बोले, "सारी दुनिया कब की अपना-अपना कामकाज शुरू कर चुकी है और तुम्हारा बेटा अभी भी चादर ओढ़ कर बिस्तर में पड़ा हुआ है। फिर भी तुम उसे कुछ कहने की बजाय उल्टा मुझे ही कोस रही हो।"

मां-बाप की नोक-झोंक सुनकर बेटे ने चादर में से मुंह बाहर निकाल कर कहा, "मां, इतना अच्छा सपना देख रहा था। सुबह-सुबह आपके शोर ने सारा मजा किरकिरा कर दिया।"

मिश्रा जी बोले, "मेरे प्यारे आलसी बेटे, जरा हमें भी तो बता कि ऐसा कौन-सा हसीन सपना देख रहा था जो हमारे बात करने से तेरी नींद में खलल पड़ गया है।"

बेटे ने थोड़ा सुस्ताते हुए कहा, "आज मैंने सपने में देखा कि मेरा एक पैर जमीन पर और दूसरा आसमान पर है।"

मिश्रा जी बोले, "ओ बेवकूफ इंसान, ऐसे सपने मत देखा कर वरना तेरे सारे कच्छे फट जाएंगे।"

बातों-बातों में माहौल बदल गया और बेटा झट से बिस्तर से उठकर बैठ गया।

मिश्रा जी की पत्नी ने प्यार से बेटे को पुचकारते हुए कहा, "बेटा, अब तेरी परीक्षा नजदीक आ गई है। कुछ दिन के लिए यह आलस छोड़ दे और मन लगाकर पढ़ाई कर, ताकि तेरे पिता के मन में जो तेरे प्रति आलसी इंसान की पहचान बन चुकी है, वह खत्म हो सके। इस बार कॉलेज की पढ़ाई में इतनी मेहनत करना कि परीक्षा में कम से कम 90 प्रतिशत नंबर आने चाहिए।"

बेटे ने मुस्कुराकर कहा, "मां, तुम बिल्कुल चिंता मत करो, इस बार 90 प्रतिशत नहीं, बल्कि मैं 100 प्रतिशत नंबर लेकर आऊंगा।"

मिश्रा जी बोले, "क्यों सुबह-सुबह मजाक कर रहा है?"

बेटे ने हंसते हुए कहा, "मजाक शुरू भी तो आप लोगों ने ही किया था।"

मिश्रा जी ने बेटे से पूछा, "कल तू बैंक से कर्ज लेने के लिए सारे कागज लेकर गया था, उसका क्या हुआ?"

बेटे ने जवाब दिया, "मैंने मैनेजर साहब से कहा था कि सर, मैंने सारे कागज पूरे कर दिए हैं, अब जल्दी से हमें कर्ज दिलवा दो। मैनेजर ने फाइल देखकर कहा कि अभी तुम्हारी फाइल में वजन नहीं है। मैंने झट से अपना जूता फाइल के ऊपर रख दिया और कहा कि अब तो फाइल पर वजन रख दिया, अब तो हमें कर्ज मिल जाएगा ना? बस इसी बात को लेकर वह नाराज हो गए और मुझसे झगड़ा करने लगे।"

बात सुनकर मिश्रा जी बोले, "मैं जानता हूं, तेरे जैसे अड़ियल टट्टू सिर्फ गरज सकते हैं, बरस नहीं सकते।"

पास खड़ी मिश्रा जी की पत्नी ने कहा, "आपको जिंदगी का बहुत तजुर्बा है, आप ही बेटे को कोई आसान सा काम शुरू क्यों नहीं करवा देते, जिसमें इसे अधिक मेहनत भी न करनी पड़े और इसे अच्छी कमाई भी हो जाए।"

मिश्रा जी बोले, "फिर तो ऐसे लोगों के लिए एक ही काम है, इसके लिए सुलभ शौचालय खुलवा देता हूं।"

पत्नी ने गंभीर होकर कहा, "किसी से भी नफरत करना बहुत आसान होता है और प्रेम करना मुश्किल। हमारे जीवन में सभी चीजें इसी तरह काम करती हैं—सारी अच्छी चीजों को पाना मुश्किल होता है और बुरी चीजें बहुत आसानी से मिल जाती हैं। आप अपना मन मैला मत करो, उम्र के साथ-साथ हमारा बेटा भी सब कुछ सीख जाएगा।"

मिश्रा जी बोले, "उम्र के साथ बुद्धिमत्ता भी आ जाए, यह जरूरी नहीं होता। कई लोगों की उम्र बस अपने-आप ऐसे ही गुजर जाती है। वैसे भी आज तक कभी कोई व्यक्ति संयोग से ज्ञानी नहीं बन पाया।"

उन्होंने बेटे की ओर देखा, तो वह मुंह फुलाकर बैठा था। इससे पहले कि मिश्रा जी उसे कुछ कहते, उनकी पत्नी ने उन्हें बड़े ही सहज स्वभाव से कहा, "क्रोध वह हवा है जो हमारी बुद्धि के हर दीप को बुझा देता है। कोई भी व्यक्ति कभी भी क्रोधित हो सकता है क्योंकि क्रोधित होना बहुत आसान है। लेकिन एक समझदार व्यक्ति की तरह सही सीमा में, सही समय पर, सही उद्देश्य के साथ सही तरीके से क्रोधित होना सभी के बस की बात नहीं है और यह काम करना इतना आसान भी नहीं है। आप तो हर समय अच्छे-अच्छे ग्रंथ पढ़ते रहते हो, उन पवित्र ग्रंथों को पढ़ने या सुनने का क्या फायदा? उनसे तो तभी फायदा हो सकता है जब आप उन्हें उपयोग में लाते हैं।"

पत्नी की इन बातों ने मिश्रा जी की सोच बदल दी। उन्होंने प्यार से बेटे को समझाया, "बेटा, जिंदगी में हम जो चाहते हैं, उसके न मिलने की केवल एक ही वजह होती है—हम उन कारणों को अच्छे से न जान पाएं कि हम वह चीजें क्यों नहीं पा सके। जीवन में ठीक से कोई लक्ष्य न होने की दिक्कत यह होती है कि हम अपनी जिंदगी के मैदान में इधर-उधर दौड़ते हुए सारा समय बिना अपनी कोई पहचान बनाए गवां देते हैं। इसीलिए उठो, जागो, और उस समय तक मत रुको जब तक तुम अपना लक्ष्य पाकर समाज में अपनी एक अलग पहचान नहीं बना लेते।"

मिश्रा जी के परिवार का सारा नाटक देखने के बाद जौली अंकल दृढ़ता से इस निर्णय पर पहुंचे कि जो लोग सपने देखते हैं और उन्हें पूरा करने की कीमत चुकाने को तैयार रहते हैं, वही लोग अपनी एक कामयाब पहचान बनाने में सफल होते हैं।

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