प्रेरणाप्रद कहानी शीर्षक:- कर्म पूजा (Inspirational story titled: Worship of Karma)

प्रेरणाप्रद कहानी

शीर्षक:- कर्म पूजा

कहानी: अवध के राजा महेन्द्र प्रताप सिंह को उनके नीतिपूर्ण और धार्मिक आचरण के लिए जाना जाता था। उनका हृदय दया और करुणा से परिपूर्ण था। वह अपनी प्रजा के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को अत्यधिक गंभीरता से निभाते थे और उनका हमेशा यही प्रयास रहता था कि उनकी प्रजा सुख-शांति से रहे। राजा महेन्द्र प्रताप सिंह अक्सर रात के समय वेश बदलकर नगर की गलियों में घूमने निकल जाते थे, ताकि वह अपनी प्रजा के जीवन की वास्तविक स्थिति जान सकें और यह सुनिश्चित कर सकें कि राज्य में हर व्यक्ति सुखी है।

दीपावली का त्योहार आया और समस्त नगर दीपों से जगमग हो उठा। बच्चों ने आतिशबाजी की, लोग एक-दूसरे को शुभकामनाएँ दे रहे थे, और हर तरफ उल्लास का माहौल था। राजा महेन्द्र प्रताप सिंह भी अपनी प्रजा की खुशहाली देखकर अत्यंत प्रसन्न थे। उन्हें अपने राज्य की समृद्धि का असली प्रतीक अपनी प्रजा की खुशी ही नजर आती थी। वह दीपावली की रात भी नगर भ्रमण के बाद महल की ओर लौट रहे थे, तभी उनकी नज़र एक अंधेरी और टूटी-फूटी झोपड़ी पर पड़ी। झोपड़ी का दरवाजा आधा खुला हुआ था। राजा की जिज्ञासा बढ़ी और वह धीरे-धीरे झोपड़ी की ओर बढ़े।

जब राजा दरवाजे के पास पहुँचे, तो भीतर एक वृद्ध व्यक्ति दीपक के पास बैठे थे। उनका चेहरा चिंता और थकान से ढका हुआ था, लेकिन दीपक की हल्की सी रोशनी उनके चेहरे पर एक अजीब सी शांति प्रदान कर रही थी। वृद्ध व्यक्ति ने राजा से कहा, "महाशय, मैं कब से आपकी प्रतीक्षा कर रहा हूँ। मैं वृद्ध हो गया हूँ और अकेले पूजा करने में असमर्थ हूँ। कृपया, मेरी सहायता करें।" राजा महेन्द्र प्रताप सिंह थोड़ी देर के लिए असमंजस में पड़ गए। उन्हें यह चिंता थी कि अगर वह यहाँ रुकते हैं, तो महल पहुंचने में देर हो जाएगी और पूजा का शुभ मुहूर्त भी निकल जाएगा। लेकिन वृद्ध व्यक्ति के पुनः निवेदन पर, राजा ने अंततः रुकने का निर्णय लिया और उस वृद्ध व्यक्ति के साथ बैठकर पूजा करने लगे।

राजा ने वृद्ध के कहे अनुसार पूजा की थाली से रोली और चावल उठाए और आँखें बंद कर लीं। जैसे ही राजा ने अपनी आँखें खोलीं, तो वह हैरान रह गए। सामने उनका दृश्य पूरी तरह से बदल चुका था। वृद्ध व्यक्ति अब वहां नहीं थे, बल्कि उनके स्थान पर साक्षात कुबेर जी और लक्ष्मी जी विराजमान थे। राजा ने तुरंत उनके मस्तक पर रोली और चावल लगा दिए और गहरी श्रद्धा से उन्हें प्रणाम किया। कुबेर जी ने राजा से कहा, "राजन! जिस राज्य का शासक अपनी प्रजा की इच्छाओं और आवश्यकताओं का ध्यान उसी तरह रखता है जैसे वह अपने परिवार का ध्यान रखता है, उस राज्य में कभी कोई कमी नहीं हो सकती।" फिर लक्ष्मी जी ने भी आशीर्वाद देते हुए कहा, "राजन! तुम्हारा प्रजा के प्रति प्रेम देखकर मैं प्रसन्न हूँ। जहाँ का शासक प्रजा प्रेमी होता है, वह राज्य हमेशा धन और समृद्धि से भरा रहता है। इसी कारण मैं लंबे समय से तुम्हारे राज्य में निवास कर रही हूँ। जब तक तुम्हारे राज्य में प्रजा प्रेमी शासक रहेंगे, तब तक मैं यहाँ मौजूद रहूँगी।"

राजा महेन्द्र प्रताप सिंह को यह अनुभव उनके जीवन का सबसे बड़ा और सबसे अमूल्य उपहार साबित हुआ। यह घटना उनके मन में गहरी छाप छोड़ गई, और उन्होंने अपने शासन में इस सिखाए गए मूल्य को हमेशा बनाए रखा। वह अपनी प्रजा के सुख और भलाई के लिए और अधिक समर्पित हो गए।

शिक्षा:

इस कहानी से हमें यह महत्वपूर्ण शिक्षा मिलती है कि सच्चे नेता वही होते हैं जो अपनी प्रजा के सुख और समृद्धि का उतना ही ध्यान रखते हैं जितना वह अपने परिवार का रखते हैं। जब शासक अपनी प्रजा के प्रति सच्चा प्रेम और चिंता दिखाता है, तो उस राज्य में समृद्धि और खुशहाली का वास होता है। हमें हमेशा अपने कर्तव्यों को जिम्मेदारी से निभाना चाहिए और अपने कार्यों में निस्वार्थ भाव से सेवा की भावना रखनी चाहिए। इस प्रकार, कर्म पूजा का सही अर्थ यही है कि हम अपने कर्मों के माध्यम से अपने समाज और प्रजा की भलाई के लिए काम करें।

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