महादेव हरिभाई देसाई: एक महान स्वतंत्रता सेनानी
महादेव हरिभाई देसाई भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण नेताओं में से एक थे। उनकी अनगिनत सेवाओं और बलिदानों ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को एक नई दिशा दी। इस ब्लॉग में हम महादेव हरिभाई देसाई की जीवनी, उनकी उपलब्धियों और उनके योगदान को विस्तार से जानेंगे।
जन्म और प्रारंभिक जीवन
महादेव हरिभाई देसाई का जन्म 1 जनवरी 1892 को सूरत जिले के सरस गाँव में हुआ था। उनके पिता, हरिभाई देसाई, गणित और धार्मिक ग्रंथों के प्रेमी थे और बाद में अहमदाबाद के महिला प्रशिक्षण महाविद्यालय के प्राचार्य बने। उनके पिता का ज्ञान और संस्कार महादेव देसाई पर गहरा प्रभाव डालने वाले थे।
महादेव देसाई ने मुंबई में उच्च शिक्षा प्राप्त की और 1913 में कानून की डिग्री प्राप्त की। प्रारंभ में उन्होंने वकालत और सरकारी बैंक में काम किया, लेकिन उन अनुभवों से संतुष्ट नहीं हुए और स्वतंत्रता संग्राम में अपना भविष्य तलाशने लगे।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
महादेव हरिभाई देसाई के जीवन में 31 अगस्त 1917 का दिन एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इसी दिन उनकी महात्मा गांधी से मुलाकात हुई और इसके बाद वे गांधीजी के जीवन पर्यंत सहयोगी बने रहे। महादेव देसाई ने चंपारन सत्याग्रह, बारदोली सत्याग्रह और नमक सत्याग्रह में भाग लिया। इन आंदोलनों के दौरान उन्हें कई बार गिरफ्तार भी किया गया।
1921 में, महादेव देसाई ने इलाहाबाद जाकर पंडित मोतीलाल नेहरू के पत्र 'इंडिपेंडेंट' के संपादन में सहयोग किया। इसके बाद वे अहमदाबाद लौटे और गांधीजी के पत्र 'नवजीवन' के संपादन में मदद की।
रचनात्मकता और योगदान
महादेव देसाई एक बहुपठित व्यक्ति थे, जिन्होंने गुजराती, संस्कृत, बांग्ला, हिंदी, मराठी और अंग्रेज़ी भाषाओं का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया था। उन्होंने कई महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं, जिनमें शामिल हैं:
- विद गांधी जी इन सीलोन
- द स्टोरी ऑफ़ बारदोली
- स्वदेशी ट्रू एण्ड फ़ॉल्स
- अनवर्दी ऑफ़ वर्धा
- दि नेशंस वॉइस
- गांधी सेवा संघ
- मौलाना अबुल कलाम आज़ाद
- दि गीता एकार्डिंग टु गांधीजी
- वीर वल्लभ भाई
- ख़ुदाई ख़िदमतगार
- एक धर्मयुद्ध
महादेव देसाई का सबसे बड़ा योगदान 'महादेव भाई की डायरी' है, जिसमें उन्होंने गांधीजी के दैनिक कार्यों का विस्तृत वर्णन प्रस्तुत किया। यह डायरी 8 खंडों में प्रकाशित हुई और महादेव देसाई की मृत्यु के बाद प्रकाशित की गई।
निधन और सम्मान
महादेव हरिभाई देसाई ने 1942 के 'भारत छोड़ो' आंदोलन में गांधीजी के साथ पूना के आग़ा ख़ा महल में नजरबंद किया गया। 15 अगस्त 1942 को, बंदी की दशा में उनका निधन हो गया। गांधीजी ने महादेव देसाई के कार्यों की सराहना करते हुए कहा था कि जितना काम अकेले महादेव कर लेते हैं, उतना आधे दर्जन सचिव भी नहीं कर सकते थे।
महादेव हरिभाई देसाई का जीवन और योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की अनगिनत कहानियों में एक महत्वपूर्ण अध्याय है। उनकी सेवाओं और बलिदानों को याद करके हम स्वतंत्रता की कीमत को समझ सकते हैं और उनके आदर्शों पर चलने की प्रेरणा प्राप्त कर सकते हैं।
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