मौलाना अबुल कलाम आज़ाद: एक महान स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षाविद् (Maulana Abul Kalam Azad: A great freedom fighter and scholar.)

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद: एक महान स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षाविद्

जन्म और प्रारंभिक जीवन

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का जन्म 11 नवंबर 1888 को मक्का, सऊदी अरब में हुआ था। उनका पूरा नाम अबुल कलाम ग़ुलाम मुहियुद्दीन था। उनके पिता मौलाना खैरुद्दीन अफगान मूल के एक बंगाली मुसलमान थे, जबकि उनकी माता शेख मोहम्मद ज़हर वत्री की पुत्री थीं।

1890 में उनका परिवार भारत के कलकत्ता (अब कोलकाता) आ गया। मौलाना आज़ाद को पारंपरिक इस्लामी शिक्षा दी गई। उन्होंने अरबी, फ़ारसी, दर्शनशास्त्र, गणित, अंग्रेजी और राजनीति शास्त्र का गहन अध्ययन किया।

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

मौलाना आज़ाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेताओं में से एक थे। उन्होंने 1912 में ‘अल हिलाल’ नामक उर्दू पत्रिका शुरू की, जो क्रांतिकारी विचारों को बढ़ावा देने वाला मुखपत्र बन गया। इसके प्रतिबंध के बाद उन्होंने ‘अल बलाघ’ नामक पत्रिका निकाली, जिसे भी ब्रिटिश सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया।

उन्होंने क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लिया और महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन का समर्थन किया। 1920 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए और 1923 में कांग्रेस के अध्यक्ष बने।

खिलाफत आंदोलन और जेल यात्रा

मौलाना आज़ाद ने खिलाफत आंदोलन के माध्यम से मुस्लिम समुदाय को स्वतंत्रता संग्राम में जोड़ा। उन्होंने महात्मा गांधी के नमक सत्याग्रह में भाग लिया और 1930 में गिरफ्तार हुए। उन्हें मेरठ जेल में डेढ़ साल तक कैद रखा गया। 1940 में रामगढ़ अधिवेशन में उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया और वे 1946 तक इस पद पर रहे।

स्वतंत्र भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री

स्वतंत्रता के बाद, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद 15 अगस्त 1947 से 22 फरवरी 1958 तक भारत के पहले शिक्षा मंत्री रहे। उन्होंने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IITs), विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC), और साहित्य अकादमी की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने शिक्षा को राष्ट्र निर्माण का आधार माना और प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य बनाने पर जोर दिया।

भारत रत्न और विरासत

22 फ़रवरी 1958 को दिल्ली में उनका निधन हो गया। उन्हें 1992 में मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया।

मौलाना आज़ाद की विरासत आज भी जीवंत है। उनके सम्मान में मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी (MANUU) की स्थापना की गई, जो उर्दू भाषा और उच्च शिक्षा को बढ़ावा देती है। उनके विचार आज भी समावेशी शिक्षा और धार्मिक सहिष्णुता के संदर्भ में प्रासंगिक हैं। उनके योगदान को याद रखने के लिए हर वर्ष 11 नवंबर को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

मौलाना आज़ाद एक महान स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षाविद् और विचारक थे। उनकी विद्वता, राष्ट्रभक्ति और शिक्षा में योगदान उन्हें भारतीय इतिहास में एक अमर व्यक्तित्व बनाते हैं।

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