मौलाना हसरत मोहानी: स्वतंत्रता सेनानी, शायर, और सच्चे देशभक्त - Maulana Hasrat Mohani: Freedom Fighter, Poet, and True Patriot

मौलाना हसरत मोहानी: स्वतंत्रता सेनानी, शायर, और सच्चे देशभक्त

मौलाना हसरत मोहानी का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सच्चे सिपाहियों में बड़े सम्मान से लिया जाता है। न केवल उन्होंने भारत की आज़ादी के लिए अपना जीवन समर्पित किया, बल्कि वे एक महान शायर, पत्रकार, और ब्रिटिश भारत के सांसद भी थे। उन्होंने अपने जीवन में सच्चाई, ईमानदारी, और स्वतंत्रता के प्रति अद्वितीय समर्पण का प्रदर्शन किया।

जन्म और प्रारंभिक जीवन

मौलाना हसरत मोहानी का जन्म 1 जनवरी 1875 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के मोहान गांव में हुआ था। उनका वास्तविक नाम 'सैयद फ़ज़्लुल्हसन' था और उपनाम 'हसरत' से मशहूर हुए। मोहान गांव से होने के कारण उन्हें 'मौलाना हसरत मोहानी' कहा जाने लगा।

शिक्षा और प्रारंभिक संघर्ष

मौलाना की प्रारंभिक शिक्षा घर पर हुई थी और वे एक अत्यंत होशियार छात्र थे। उन्होंने राज्य स्तरीय परीक्षाओं में शीर्ष स्थान प्राप्त किया था। इसके बाद उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से बी.ए. की शिक्षा प्राप्त की, जहाँ उनके साथी मौलाना मोहम्मद अली जौहर और मौलाना शौक़त अली थे। कॉलेज के दिनों में ही वे स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ गए थे और उन्होंने अलीगढ़ में 'उर्दुएमुअल्ला' नामक पत्रिका प्रकाशित की, जिसमें स्वतंत्रता के विचारों का समर्थन किया गया।

ग़ज़ल और कविता

हसरत मोहानी का साहित्यिक योगदान भी अतुलनीय है। उन्होंने उर्दू ग़ज़ल को एक नई दिशा दी। उनकी ग़ज़लें समाज, प्रेम, और स्वतंत्रता के विचारों को बहुत ही सुंदर ढंग से व्यक्त करती हैं। उनकी मशहूर ग़ज़लों में "चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है" आज भी लोकप्रिय है। हसरत ने अपनी रचनाओं के माध्यम से साहित्य और राजनीति का अद्भुत संगम प्रस्तुत किया।

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

मौलाना हसरत मोहानी ने स्वतंत्रता संग्राम में एक अग्रणी भूमिका निभाई। उन्होंने 'इन्कलाब ज़िन्दाबाद' का नारा दिया, जो भारत की आज़ादी की लड़ाई में जोश और उत्साह का प्रतीक बन गया। मौलाना ने कई बार जेल की सज़ा भी काटी, लेकिन अंग्रेजों से कभी समझौता नहीं किया। वे हमेशा सत्य और न्याय के पक्षधर रहे और उन्होंने 'पूर्ण स्वराज' का प्रस्ताव भी प्रस्तुत किया था।

कांग्रेस से सम्बन्ध और कम्युनिस्ट पार्टी

मौलाना हसरत मोहानी ने कांग्रेस के साथ मिलकर स्वतंत्रता संग्राम में काम किया, लेकिन बाद में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और मुस्लिम लीग से भी दूरी बना ली। इसके साथ ही उन्होंने भारत में कम्युनिस्ट विचारधारा का भी समर्थन किया और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक बने।

'इन्कलाब ज़िन्दाबाद' का नारा

मौलाना हसरत मोहानी का दिया गया नारा 'इन्कलाब ज़िन्दाबाद' आज भी भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में संघर्ष और आंदोलन का मुख्य नारा बना हुआ है। यह नारा आज़ादी के दीवानों में जोश और उमंग का संचार करता था और आज भी इस नारे का महत्त्व बना हुआ है।

ईमानदार और सच्चे मुसलमान

मौलाना हसरत मोहानी न केवल एक देशभक्त थे, बल्कि वे एक सच्चे और ईमानदार मुसलमान भी थे। उनका जीवन सादगी, ईमानदारी, और सच्चाई का प्रतीक था। वे भगवान श्रीकृष्ण के भी प्रशंसक थे और उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए भी काम किया।

निधन और विरासत

मौलाना हसरत मोहानी का निधन 13 मई 1951 को कानपुर में हुआ। उनके सम्मान में कराची, पाकिस्तान में कई संस्थान और सड़कों के नाम उनके नाम पर रखे गए हैं। उनके द्वारा दिखाए गए मार्गदर्शन को याद करते हुए हर साल उनकी याद में सभाएं आयोजित की जाती हैं।

निष्कर्ष

मौलाना हसरत मोहानी ने अपना पूरा जीवन देश की आज़ादी और सच्चाई की राह पर समर्पित किया। उनके बलिदान और साहित्यिक योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता। 'इन्कलाब ज़िन्दाबाद' का उनका नारा आज भी हमारी आवाज़ में गूंजता है और उनकी स्वतंत्रता के प्रति दीवानगी हमें हमेशा प्रेरित करती रहेगी।

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