फूल देई, छम्मा देई - गीत (Phool Dei, Chamma Dei Geet)

फूल देई, छम्मा देई - गीत (Phool Dei, Chamma Dei Geet)

उत्तराखंड के कुमाऊं एवं गढ़वाल में फुलारी बच्चों द्वारा घर की खुशहाली तथा सुख सम्रद्धि के लिए गाया जाने वाला पारंपरिक गीत।

गीत:

फूल देई, छम्मा देई
जतुके दियाला, उतुके सई


फूल देई, छम्मा देई
जतुके दियाला, उतुके सई

बार मेना में आ रेचो त्यार
नंतिना अर्ना देहि

फूल देई, छम्मा देई
जतुके दियाला, उतुके सई


फूल देई, छम्मा देई
जतुके दियाला, उतुके सई

फूली बिरुडी, आड़ू, खुमानी
बुराशी फूली, उची दानी


फूली बिरुडी, आड़ू, खुमानी
बुराशी फूली, उची दानी


पेली टायर पंचमी की आलो
लग्लो चेत, फागुन झालो

फूल देई, छम्मा देई
जतुके दियाला, उतुके सई


फूल देई, छम्मा देई
जतुके दियाला, उतुके सई

चैत को मैण, एक पैट
चेली को सुर पराण मैत
चैत को मैण, एक पैट
चेली को सुर पराण मैत
फुल खज़ भेटोली आली
रंगलो लगी गो चे चेट

फूल देई, छम्मा देई
जतुके दियाला, उतुके सई
फूल देई, छम्मा देई
जतुके दियाला, उतुके सई

नंदिनो की फुलो की थाई
गा ओमिजी आरे फुलो दीवाई
नंदिनो की फुलो की थाई
गा ओमिजी आरे फुलो दीवाई
छाव भारी थाई हरनेने
हाथ मुझे लेरे गुड के ढी

फूल देई, छम्मा देई
जतुके दियाला, उतुके सई
फूल देई, छम्मा देई
जतुके दियाला, उतुके सई


फूलदेई का महत्व

फूलदेई पर्व उत्तराखंड की संस्कृति और परंपरा का अभिन्न अंग है। इस दिन बच्चे घरों की देहरी पर फूल डालते हैं और यह पर्व समृद्धि व खुशहाली का प्रतीक माना जाता है।

फुलारी / श्री नरेंद्र सिंह नेगी

उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत में लोकगीतों का विशेष स्थान है, और जब बात गढ़वाली लोकसंगीत की होती है, तो श्री नरेंद्र सिंह नेगी जी का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाता है। उनके गीतों में उत्तराखंड की मिट्टी की सुगंध, पहाड़ों की जीवंतता और लोकजीवन की सजीव झलक मिलती है। ऐसा ही एक अद्भुत गीत है "चला फुलारी फूलों को"। यह गीत उत्तराखंड के प्रसिद्ध बाल लोकपर्व फूलदेई की पृष्ठभूमि में रचा गया है और इस पर्व की महत्ता को दर्शाता है।

चला फुलारी फूलों को

चला फुलारी फूलों को
सौदा-सौदा फूल बिरौला

हे जी सार्यूं मा फूलीगे ह्वोलि फ्योंली लयड़ी
मैं घौर छोड्यावा
हे जी घर बौण बौड़ीगे ह्वोलु बालो बसंत
मैं घौर छोड्यावा
हे जी सार्यूं मा फूलीगे ह्वोलि

चला फुलारी फूलों को
सौदा-सौदा फूल बिरौला
भौंरों का जूठा फूल ना तोड्यां
म्वारर्यूं का जूठा फूल ना लायाँ

ना उनु धरम्यालु आगास
ना उनि मयालू यखै धरती
अजाण औंखा छिन पैंडा
मनखी अणमील चौतर्फी
छि भै ये निरभै परदेस मा तुम रौणा त रा
मैं घौर छोड्यावा
हे जी सार्यूं मा फूलीगे ह्वोलि

फुल फुलदेई दाल चौंल दे
घोघा देवा फ्योंल्या फूल
घोघा फूलदेई की डोली सजली
गुड़ परसाद दै दूध भत्यूल

अयूं होलू फुलार हमारा सैंत्यां आर चोलों मा
होला चैती पसरू मांगना औजी खोला खोलो मा
ढक्यां मोर द्वार देखिकी फुलारी खौल्यां होला।


गीत का भावार्थ

यह गीत उत्तराखंड के फूलदेई पर्व के महत्व को दर्शाता है। इस पर्व में छोटे-छोटे बच्चे घर-घर जाकर देहरी पर फूल चढ़ाते हैं और आशीर्वाद मांगते हैं। गीत में बताया गया है कि बच्चों को ताजे और पवित्र फूल चढ़ाने चाहिए, किसी भी तरह से जूठे या खराब फूलों का उपयोग नहीं करना चाहिए।

गीत में प्रवासी उत्तराखंडियों की पीड़ा भी व्यक्त की गई है, जो अपने गाँव-घर से दूर हैं और अपनी जड़ों को याद करते हैं। पहाड़ों की संस्कृति, बसंत ऋतु का सौंदर्य, और देवभूमि की धार्मिक भावना को इस गीत में गहराई से उकेरा गया है।

नरेंद्र सिंह नेगी जी का योगदान

नरेंद्र सिंह नेगी उत्तराखंड के सुप्रसिद्ध लोकगायक और गीतकार हैं, जिनके गीतों में पहाड़ों की आत्मा बसती है। उन्होंने अपने गीतों के माध्यम से उत्तराखंड की संस्कृति, राजनीति, समाज और प्रवासी उत्तराखंडियों की पीड़ा को बखूबी व्यक्त किया है। "चला फुलारी फूलों को" भी ऐसा ही एक गीत है, जो उत्तराखंड की परंपराओं और रीति-रिवाजों को जीवंत करता है।

निष्कर्ष

"चला फुलारी फूलों को" सिर्फ एक गीत नहीं, बल्कि उत्तराखंड के लोकजीवन का एक सुंदर चित्रण है। यह गीत फूलदेई त्यौहार की महिमा का बखान करता है और प्रवासी उत्तराखंडियों के मन में अपने गाँव और पर्वों के प्रति प्रेम को जागृत करता है। नरेंद्र सिंह नेगी जी के इस गीत को सुनकर हर उत्तराखंडी अपने गाँव और बचपन की यादों में खो जाता है।

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फूलदेई शुभकामना संदेश:

"उत्तराखंड के लोक पर्व फूलदेई की हार्दिक शुभकामनाएँ! 🌸💐"

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