भगवान शिव का पूजनीय परिवार
भगवान शिव का परिवार ही एकमात्र ऐसा परिवार है जहाँ स्वयं शिव से लेकर उनके वाहन नंदी तक सभी पूजे जाते हैं। इस परिवार में भगवान कार्तिकेय का स्थान भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

भगवान कार्तिकेय
भगवान कार्तिकेय शिव और माता पार्वती के पुत्र हैं। माता द्वारा दिए गए एक शाप के कारण वे सदैव बालक रूप में रहते हैं। उनके इस बालक स्वरूप के पीछे भी एक रहस्य छिपा हुआ है। उन्हें 'स्कन्द' और 'मुरुगन' के नाम से भी जाना जाता है। दक्षिण भारत में विशेष रूप से तमिल हिंदू समाज में उनकी व्यापक पूजा होती है। तमिलनाडु, श्रीलंका, मलेशिया, और सिंगापुर में भी भगवान कार्तिकेय के मंदिर स्थित हैं।
भगवान कार्तिकेय की जन्म कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब दक्ष प्रजापति ने यज्ञ का आयोजन किया, तब भगवान शिव का अपमान हुआ, जिससे माता सती ने यज्ञ की अग्नि में आत्मदाह कर लिया। सती के आत्मदाह के बाद सृष्टि शक्ति हीन हो गई और दैत्यों का अत्याचार बढ़ गया। इस स्थिति से निपटने के लिए सभी देवता ब्रह्मा जी के पास गए, जिन्होंने बताया कि राक्षस तारकासुर का वध केवल भगवान शिव के पुत्र द्वारा ही संभव है।
परंतु माता सती के अंत के बाद भगवान शिव गहन साधना में लीन हो गए। इंद्र और अन्य देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की। इस दौरान पार्वती जी ने घोर तपस्या की और भगवान शिव को प्रसन्न किया। शुभ घड़ी में शिव-पार्वती का विवाह हुआ और फिर कार्तिकेय जी का जन्म हुआ।
कार्तिकेय जी ने बड़े होने के बाद तारकासुर का वध कर देवताओं को पुनः उनका स्थान प्रदान किया।
माता पार्वती का शाप
एक बार भगवान शिव और माता पार्वती ने जुआ खेलने की इच्छा व्यक्त की। खेल में भगवान शिव अपना सब कुछ हार गए और पत्तों के वस्त्र पहनकर गंगा तट पर चले गए। जब कार्तिकेय को यह ज्ञात हुआ, तो वे माता पार्वती से समस्त वस्तुएँ वापस लेने आए। इस बार खेल में माता पार्वती हार गईं और कार्तिकेय जी शिव जी का सारा सामान वापस ले गए।
पार्वती जी इस बात से चिंतित हुईं और गणेश जी को शिव जी को वापस लाने के लिए भेजा। गणेश जी खेल में जीत गए और माता को यह समाचार सुनाया। गणेश जी जब शिव जी को वापस लाने गए तो भोलेनाथ ने लौटने से मना कर दिया।
इससे माता पार्वती को क्रोध आ गया और उन्होंने शिव जी को शाप दिया कि गंगा की धारा का भार उनके सिर पर रहेगा। नारद जी को कभी एक स्थान पर स्थिर न रहने का शाप मिला। भगवान विष्णु को यह शाप मिला कि रावण उनका शत्रु होगा। रावण को भी शाप दिया गया कि विष्णु ही उसका अंत करेंगे। माता ने अपने पुत्र कार्तिकेय को भी शाप दिया कि वे सदैव बालक रूप में ही रहेंगे।
माता पार्वती का वरदान
बाद में जब नारद जी ने माता का क्रोध शांत किया, तो माता ने सभी को वरदान दिया।
भगवान शिव ने कार्तिक शुक्ल के दिन जुआ खेलने में विजय प्राप्त करने वाले को वर्ष भर विजयश्री का आशीर्वाद दिया।
भगवान विष्णु ने अपने प्रत्येक छोटे-बड़े कार्य में सफलता प्राप्त करने का वर माँगा।
भगवान कार्तिकेय ने सदा बालक रूप में रहने, विषय-वासनाओं से मुक्त रहने, और भगवद-स्मरण में लीन रहने का वर माँगा।
नारद जी ने देवर्षि बनने का वरदान माँगा।
माता पार्वती ने रावण को समस्त वेदों की विस्तृत व्याख्या प्रदान की।
भगवान कार्तिकेय के नाम
संस्कृत ग्रंथ अमरकोश के अनुसार भगवान कार्तिकेय के कई नाम हैं:
भूतेश
भगवत
महासेन
शरजन्मा
षडानन
पार्वतीनंदन
स्कन्द
सेनानी
अग्निभू
गुह
बाहुलेय
तारकजित्
विशाख
शिखिवाहन
शक्तिश्वर
कुमार
क्रौञ्चदारण
भगवान कार्तिकेय की पूजा विशेष रूप से दक्षिण भारत में होती है, लेकिन वे संपूर्ण भारत में श्रद्धा और भक्ति के प्रतीक हैं। उनका जीवन अनुशासन, शक्ति और विजय का प्रतीक माना जाता है। उनकी कथा हमें धर्म, शक्ति और तपस्या का महत्व सिखाती है।
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