कत्युरियों की प्रशासनिक व्यवस्था
कत्युरी वंश की प्रारम्भिक राजधानी सम्भवतः जोशीमठ थी, जो राज्य के विस्तार के साथ कालान्तर में कत्यूर घाटी में स्थानांतरित हो गई। जनश्रुतियों के अनुसार, प्रारम्भिक कत्यूर राज्य पश्चिम में सतलज नदी से लेकर दक्षिण के मैदानों तक विस्तृत था। कत्युरी शासक राजतंत्र में विश्वास रखते थे और उन्होंने अपने राज्य में मौर्यों की प्रशासनिक व्यवस्था को अपनाया।

प्रशासनिक पदाधिकारी
कत्यूरी शासन में निम्नलिखित पदाधिकारी महत्वपूर्ण थे:
राजात्मय - यह सर्वोच्च पद था, जो राजा को सलाह देने का कार्य करता था।
महासामन्त - यह सेना का प्रधान होता था।
महाकरतृतिका - निरीक्षण कार्यों का मुख्य अधिकारी।
उदाधिला - आधुनिक सुपरिटेंडेंट जैसा पदाधिकारी।
सौदाभंगाधिकृत - राज्य का मुख्य आर्किटेक्ट।
करिका - राज्य का मुख्य राजमिस्त्री।
प्रान्तपाल - सीमाओं की सुरक्षा का पदाधिकारी।
वर्मपाल - सीमावर्ती क्षेत्रों में अवागमन की निगरानी।
घट्पाल - पर्वतीय प्रवेश द्वारों की रक्षा करता था।
नरपति - नदी के तटों व घाटों पर आवागमन व चुंगी व्यवस्था का प्रभारी।
सैन्य प्रशासन
कत्यूरी सेना को चार भागों में विभाजित किया गया था:
पदातिक सेना - इसका नायक 'गौलिमक' कहलाता था।
अश्वारोही सेना - इसका नायक 'अश्वबलाधिकृत' था।
गजारोही सेना - इसका नायक 'हस्तिबलाधिकृत' था।
ऊष्ट्रारोही सेना - इसका नायक 'ऊष्ट्राबलाधिकृत' था।
तीनों आरोही सेनाओं का प्रमुख हस्तयासवोष्ट्र बलाधिकृत था, जबकि चारों अंगों का प्रधान महासामन्त कहलाता था। सैन्य संचालन राजा स्वयं करता था।
आन्तरिक सुरक्षा व्यवस्था
प्रजा की सुरक्षा के लिए कत्युरी नरेशों ने एक मजबूत पुलिस व्यवस्था स्थापित की थी:
दाण्डिक - सम्पत्ति सुरक्षा के लिए नियुक्त सिपाही।
दोषापराधिक - अपराधियों को पकड़ने वाला सर्वोच्च अधिकारी।
दुःसाध्यसाधनिक - गुप्तचर विभाग का प्रमुख।
दण्डपाशिक, दण्डनायक, महाण्डनायक - पुलिस विभाग के विभिन्न अधिकारी।
चोरोद्वरिणिक - चोरों और डाकुओं से सुरक्षा सुनिश्चित करने वाला अधिकारी।
कत्युरी प्रशासन में कठोर कानून व्यवस्था थी, जिससे प्रजा सुरक्षित और समृद्ध रही।
राजस्व व्यवस्था
मुख्य राजस्व स्रोत:
भूराजस्व - भूमि से प्राप्त कर प्रमुख आय स्रोत था।
वन एवं खनिज कर - वनों व खनिज संपदा पर राज्य का एकाधिकार था।
व्यापार कर - ऊन, भोजपत्र, रिंगाल, मधु, वन औषधियों आदि के व्यापार से राजस्व प्राप्त होता था।
कर संग्रह अधिकारी:
भोगपति व शौल्किक - करों की वसूली के प्रभारी।
भट्ट और चार-प्रचार - बेगार (बिष्टि) लेने वाले अधिकारी।
भूमिमापन इकाइयाँ:
द्रोणवाप - 3840 वर्ग गज
कुल्यवाप - 30,720 वर्ग गज
खारिवाप - 76,800 वर्ग गज
प्रान्तीय शासन
कत्यूरी राज्य विभिन्न प्रान्तों में विभाजित था, जिनका प्रशासन निम्नलिखित अधिकारियों के अधीन था:
उपरिक - सम्पूर्ण प्रान्त का शासक।
आयुक्तक - प्रान्त के विभिन्न हिस्सों का प्रशासन देखता था।
विषयपति - जिलों (विषयों) का शासक।
प्रमुख विषय (जिले):
कार्तिकेयपुर विषय - जोशीमठ से गोमती नदी तक का क्षेत्र।
त्रिपुरी विषय - आधुनिक गढ़वाल और कुमाऊँ का कुछ भाग।
अष्टद्रवि विषय - संभवतः वर्तमान कुमाऊँ का मध्य क्षेत्र।
द्रविड़ विषय - दक्षिण का क्षेत्र।
कामरूप विषय - पूर्वी सीमा का भाग।
कत्युरी प्रशासन ने एक संगठित और प्रभावी शासन प्रणाली विकसित की थी, जिससे उनका राज्य दीर्घकाल तक सुरक्षित और समृद्ध बना रहा।
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