नालापानी का युद्ध: गोरखों की वीरता का प्रतीक (Battle of Nalapani: A symbol of the bravery of the Gorkhas.)

नालापानी का युद्ध: गोरखों की वीरता का प्रतीक

नालापानी का युद्ध 1814-15 के गोरखा-अंग्रेज युद्ध का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जिसमें गोरखा योद्धाओं ने अपनी वीरता और साहस का परिचय दिया। यह युद्ध ब्रिटिश सेना और गोरखा सैनिकों के बीच हुआ था, जिसमें गोरखा नायक बलभद्र सिंह थापा ने अपने सीमित संसाधनों के बावजूद ब्रिटिश सेना को कड़ी टक्कर दी।

युद्ध की पृष्ठभूमि

ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और गोरखाओं के बीच उत्तर भारत के विभिन्न क्षेत्रों पर अधिकार को लेकर संघर्ष जारी था। गिलेस्पी के नेतृत्व में कर्नल कारपेंटर और कर्नल मौबी अपनी सेना के साथ 24 अक्तूबर 1814 को दून घाटी पहुंचे। गोरखों ने अपने शिविर को नालापानी क्षेत्र (अब खलंगा) में स्थापित किया था। यह वही स्थान है, जहां अंग्रेजों ने बाद में गोरखों की वीरता को सम्मान देते हुए 'खलंगा' स्मारक बनाया।

गोरखा सेना की तैयारियां

गोरखा कमांडर कैप्टन बलभद्र सिंह थापा ने ब्रिटिश आक्रमण की संभावना को देखते हुए शाल के वृक्षों से घिरे एक टीले पर पत्थर और लकड़ी से निर्मित एक किला तैयार करवाया। मात्र 500 सैनिकों के साथ उन्होंने अंग्रेजी सेना का सामना करने का संकल्प लिया और आत्मसमर्पण के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।

युद्ध का प्रारंभ

26 अक्टूबर से 31 अक्टूबर 1814 तक गिलेस्पी ने दुर्ग पर हमला करने का प्रयास किया, लेकिन गोरखा सैनिकों की कुशल रणनीति और उनकी खुखरियों ने अंग्रेजी सेना में भगदड़ मचा दी। गोरखा सैनिकों की महिलाओं ने भी रक्षिकाओं के रूप में दुर्ग की रक्षा में सहयोग किया।

गिलेस्पी की मृत्यु और युद्ध की दिशा

31 अक्टूबर 1814 को गिलेस्पी ने पूर्ण तैयारी के साथ दुर्ग पर हमला किया, लेकिन इस युद्ध में वह स्वयं मारा गया। गोरखा सैनिकों के अप्रतिम साहस ने अंग्रेजों को आश्चर्यचकित कर दिया। 27 नवंबर तक चले इस संघर्ष में अंग्रेजों ने भारी तोपों का प्रयोग किया, लेकिन तब भी वे किला जीतने में असफल रहे।

अंतिम संघर्ष और विजय

30 नवंबर को अंग्रेजों ने किले पर भारी बमबारी की और गोरखों की पानी की आपूर्ति रोक दी, जिससे स्त्री-बच्चे बिलखने लगे। इस परिस्थिति में भी बलभद्र सिंह थापा ने हार नहीं मानी और मात्र 70 सैनिकों के साथ अंग्रेजी सेना की पंक्तियों को चीरते हुए बाहर निकल गए। कर्नल लुडलो ने उनका पीछा किया, लेकिन वे सुरक्षित जैतक पहुंच गए।

गोरखों की वीरता को सम्मान

अंग्रेजों ने खलंगा विजय के बाद नालापानी किले को नष्ट कर दिया, लेकिन गोरखा योद्धाओं की वीरता को सम्मान देते हुए यहाँ दो स्मारक स्थापित किए। एक स्मारक जनरल गिलेस्पी और अंग्रेज सैनिकों के लिए तथा दूसरा बलभद्र सिंह थापा और गोरखा योद्धाओं के लिए बनाया गया। अंग्रेज इतिहासकारों ने भी गोरखों की वीरता की सराहना की।

गोरखों के अन्य मोर्चे और संघर्ष

इसी दौरान कुमाऊं क्षेत्र में भी गोरखों का प्रतिरोध जारी था। कई स्थानों पर अंग्रेजों को पराजय का सामना करना पड़ा, लेकिन अंततः जनरल ऑक्टरलोनी की रणनीति से गोरखा सेना कमजोर पड़ गई। 1815 में मलाऊं किले पर अंग्रेजी विजय ने हिमालयी क्षेत्र में गोरखा शासन के अंत का संकेत दिया। यहीं पर पहली गोरखा रेजीमेंट की स्थापना की गई, जिसे आज भी 'मलाऊं राइफल्स' के नाम से जाना जाता है।

निष्कर्ष

नालापानी का युद्ध गोरखा वीरता का प्रतीक है। यह युद्ध भले ही अंग्रेजों ने जीत लिया, लेकिन गोरखा सैनिकों के शौर्य और बलिदान की गाथा इतिहास के पन्नों में अमर हो गई। बलभद्र सिंह थापा जैसे योद्धाओं की वीरता को सम्मान देने के लिए आज भी खलंगा स्मारक एक प्रेरणास्रोत बना हुआ है।

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