चंदयुगीन व्यवस्था: उत्तराखंड में चंद वंश का प्रशासनिक ढांचा (Chandrayugini System: Administrative Structure of the Chand Dynasty in Uttarakhand)
चंदयुगीन व्यवस्था: उत्तराखंड में चंद वंश का प्रशासनिक ढांचा
कत्यूरी राजाओं के पश्चात उत्तराखंड के क्षेत्र पर चंद राजाओं का शासन स्थापित हुआ। यह युग कुमाऊँ के इतिहास में सर्वाधिक गौरवशाली युगों में से एक माना जाता है। इस काल में शासन, संस्कृति, प्रशासनिक व्यवस्था एवं सामाजिक जीवन में व्यापक परिवर्तन हुए। चंद शासनकाल की परंपराओं और व्यवस्थाओं के अनेक अवशेष आज भी उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में देखे जा सकते हैं। इस लेख में हम चंद शासनकाल की प्रशासनिक एवं सामाजिक व्यवस्थाओं का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करेंगे।

शासन व्यवस्था
चंद वंश ने लंबे समय तक कुमाऊँ पर शासन किया और एक सुव्यवस्थित प्रशासनिक ढांचा तैयार किया। इस प्रशासनिक संरचना पर कत्यूरी एवं मुगल शासन प्रणाली का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। साथ ही, नेपाल (डोटी राज्य) से भी संबंध होने के कारण वहाँ की प्रशासनिक प्रणाली के कुछ तत्व भी चंद शासन में सम्मिलित हुए।
राजा एवं उनकी उपाधियाँ
चंद राजाओं ने कई उपाधियाँ धारण कीं, जैसे:
राजाधिराज
महाराजाधिराज
- श्रीराजधिराजराजा सम्पूर्ण प्रशासन की धुरी था तथा सर्वोच्च न्यायाधीश भी वही होता था। सम्पूर्ण भूमि का स्वामित्व राजा के पास था, और केवल वही भूमि का दान कर सकता था। चंद राजाओं द्वारा 'देव' विरुद्ध धारण करने से प्रतीत होता है कि वे स्वयं को पृथ्वी पर देवताओं का प्रतिनिधि मानते थे।
युवराज एवं उनकी भूमिका
राजा की सहायता के लिए युवराज पद का प्रावधान था। सामान्यतः ज्येष्ठ पुत्र को युवराज नियुक्त किया जाता था।
युवराज के नाम के साथ 'कुँवर' या 'गुसाईं' जैसे विरूद्ध प्रयोग किए जाते थे।
युवराज भूमि दान (रौत) का प्रथम गवाह माना जाता था।
कई बार युवराज भी भूमिदान कर सकते थे, जैसे पर्वतचंद, रतनचंद, एवं त्रिमलचंद।
युद्धकाल में युवराज ही सेना का सर्वोच्च सेनापति होता था।
लक्ष्मीचंद के शासनकाल में उनके पुत्र त्रिमलचंद ने गढ़राज्य को विजय किया था।
मंत्री एवं मंत्रिपरिषद्
राजा को सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद् होती थी, जिसमें प्रमुखतः महारा एवं फर्त्याल जातियों के लोग होते थे। यद्यपि राजा उनके सुझावों को मानने के लिए बाध्य नहीं था, फिर भी प्रशासन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी।
मुख्य पदाधिकारी:
दीवान: उच्चतम पद, आमतौर पर जोशी जाति के लोगों को दिया जाता था।
बक्शी: दीवान के समान ही एक महत्वपूर्ण पद।
भंडारी: अनाज और अन्य सामग्री के भंडारण का कार्य करता था।
सेज्याली, चौधरी, सुदार, बिष्ट: ये सभी छोटे मंत्री या प्रशासनिक अधिकारी होते थे।
पुरोहित एवं ज्योतिष: धार्मिक अनुष्ठानों एवं निर्णयों में सहायक होते थे।
प्रांतों एवं परगनों की व्यवस्था
चंद शासनकाल में प्रशासनिक व्यवस्था को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया गया था:
मंडल - राज्य के बड़े प्रशासनिक क्षेत्र।
देश - मंडलों के अंतर्गत आने वाले उपक्षेत्र, जैसे तल्ला देश, मल्ला देश आदि।
परगना या गखें - परगने नागरिक या सैनिक अधिकारियों के अधीन होते थे।
ग्राम एवं पट्टी - सबसे छोटी प्रशासनिक इकाइयाँ।
मुख्य प्रशासनिक अधिकारी:
सीरदार/सिकदार: परगने का प्रमुख अधिकारी।
खजांची: राजस्व एकत्र करने वाला अधिकारी।
बगसी: न्याय एवं प्रशासन का नियंत्रण करने वाला अधिकारी।
कैनी: अनाज एवं अन्य सामान को भंडार से राजा के पास पहुँचाने का कार्य करता था।
न्याय व्यवस्था
राजा सर्वोच्च न्यायाधीश होता था, और राजदरबार में न्याय संबंधी फैसले लिए जाते थे।
सामान्य अपराधों का निपटारा ग्राम स्तर पर होता था।
बड़े अपराधों में राजा स्वयं निर्णय लेता था।
साक्ष्य के रूप में शपथ, गवाह एवं अन्य परंपरागत उपायों का उपयोग किया जाता था।
मृत्युदंड या कठोर दंड दुर्लभ थे, सामान्यतः भूमि जब्त करना या निर्वासन देना ही प्रमुख दंड थे।
सेना एवं सुरक्षा व्यवस्था
चंद शासकों ने अपने राज्य की सुरक्षा के लिए एक सशक्त सेना गठित की।
सेना का संचालन राजा एवं युवराज स्वयं करते थे।
युद्धकाल में सामंतों एवं रजबारों से भी सैनिक टुकड़ियाँ जुटाई जाती थीं।
प्रमुख किलों में सेना की विशेष टुकड़ियाँ तैनात की जाती थीं।
मालदेश (तराई क्षेत्र) में विशेष सुरक्षा बल नियुक्त किए जाते थे।
अर्थव्यवस्था एवं कर प्रणाली
राजस्व संग्रहण के लिए सुव्यवस्थित प्रणाली अपनाई गई थी।
राजा को भूमिकर एवं अन्य कर प्राप्त होते थे।
कर नगद एवं अनाज दोनों रूपों में दिए जाते थे।
व्यापार पर भी कर लगाया जाता था।
तराई क्षेत्र (मालदेश) में विशेष कर प्रणाली लागू थी।
धार्मिक एवं सांस्कृतिक पहलू
चंद राजाओं ने मंदिरों का निर्माण एवं संरक्षण किया।
बागेश्वर का बाणेश्वर मंदिर, जागेश्वर धाम, एवं गंगोलीहाट का महाकाली मंदिर चंद राजाओं की देन हैं।
राजाओं ने संस्कृत एवं नेपाली मिश्रित कुमाऊँनी भाषा में ताम्रपत्र जारी किए।
शिक्षा एवं कला को प्रोत्साहन दिया गया, जिससे इस युग में साहित्य एवं संगीत का विकास हुआ।
निष्कर्ष
चंद वंश का शासनकाल कुमाऊँ के इतिहास का एक स्वर्णिम युग था। उन्होंने प्रशासनिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक रूप से क्षेत्र को संगठित किया। चंद राजाओं द्वारा अपनाई गई प्रशासनिक प्रणाली का प्रभाव आज भी कुमाऊँ की स्थानीय प्रशासनिक संरचना में देखा जा सकता है।
यह लेख चंद शासनकाल की प्रशासनिक एवं सामाजिक संरचना को संक्षेप में प्रस्तुत करता है। यदि आप इस विषय में और गहराई से जानकारी चाहते हैं, तो हमें अवश्य बताएं!
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