उत्तराखंड की प्रारंभिक पत्रकारिता: प्रमुख समाचार पत्रों का योगदान (Early Journalism in Uttarakhand: Contribution of Major Newspapers.)
उत्तराखंड की प्रारंभिक पत्रकारिता: प्रमुख समाचार पत्रों का योगदान
उत्तराखंड में पत्रकारिता की जड़ें 19वीं शताब्दी में पड़ चुकी थीं, जब यहाँ के शिक्षित समाज ने अपनी आवाज़ बुलंद करने के लिए समाचार-पत्रों का सहारा लिया। इन अखबारों ने न केवल तत्कालीन सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों को दर्शाया, बल्कि जनमत निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आइए, उत्तराखंड के प्रारंभिक समाचार-पत्रों के बारे में विस्तार से जानते हैं।

1. मेफिसलाइट (1850)
'मेफिसलाइट' का प्रकाशन और बंद होने की तिथि को लेकर इतिहासकारों में मतभेद हैं। कुछ इसे 1845 में प्रकाशित मानते हैं, तो कुछ इसे 1850 के आसपास का अखबार बताते हैं। यह उत्तर भारत का एक प्रमुख अंग्रेज़ी भाषा का समाचार-पत्र था, जिसने अंग्रेज़ी शासन के खिलाफ क्रांतिकारी विचारों को व्यक्त किया। इसके प्रकाशक और संपादक मि. जान लेंग थे, जो पेशे से एक वकील थे। यह समाचार पत्र ब्रिटिश प्रशासन की नीतियों पर कड़ी आलोचना करता था और भारतीयों को जागरूक करने का कार्य करता था।
2. समय विनोद (1868-78)
उत्तराखंड में हिन्दी पत्रकारिता की शुरुआत 'समय विनोद' से हुई, जो यहाँ से प्रकाशित होने वाला पहला हिन्दी समाचार-पत्र था। भारत में हिन्दी पत्रकारिता की शुरुआत 1826 में 'उदन्त मार्तण्ड' से हुई थी, लेकिन उत्तराखंड में यह सिलसिला 1868 में शुरू हुआ।
'समय विनोद' नैनीताल प्रेस से प्रकाशित हुआ था।
इसके संस्थापक और संपादक जयदत्त जोशी थे, जो पेशे से वकील थे।
यह एक पाक्षिक (पंद्रह दिन में एक बार प्रकाशित होने वाला) पत्र था।
प्रारंभ में इसके केवल 32 ग्राहक थे, जिनमें आधे यूरोपीय और आधे भारतीय थे।
यह पत्र अंग्रेजी राज की नीतियों की समीक्षा करने के साथ-साथ सामाजिक मुद्दों को भी कवर करता था।
1871 में 'अल्मोड़ा अखबार' के प्रकाशन तक 'समय विनोद' उत्तराखंड की पत्रकारिता में शीर्ष पर रहा। बाद में भी यह पत्रकारिता के क्षेत्र में 'अल्मोड़ा अखबार' का सहयात्री बना रहा।
3. मंसूरी एक्सचेंज (1870)
यह समाचार-पत्र 1870 में प्रकाशित हुआ था, लेकिन इसके बारे में बहुत अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। कहा जाता है कि यह पत्र विज्ञापनों तक ही सीमित रहा और अधिक पाठक न मिलने के कारण कुछ ही महीनों में बंद हो गया।
4. अल्मोड़ा अखबार (1871-1918)
उत्तराखंड के पत्रकारिता इतिहास में 'अल्मोड़ा अखबार' सबसे अधिक प्रभावशाली और दीर्घकालिक समाचार-पत्रों में से एक था। इसका प्रकाशन 1871 में हुआ और यह लगभग 50 वर्षों तक प्रकाशित होता रहा।
स्थापना और उद्देश्य
1870 के दशक की शुरुआत में अल्मोड़ा के कुछ शिक्षित और जागरूक व्यक्तियों ने सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को उठाने के लिए 'डिबेटिंग क्लब' नामक संस्था की स्थापना की। इसका संरक्षक चंद राजवंश के राजा भीमसिंह को बनाया गया, लेकिन इसके पीछे प्रमुख भूमिका बुद्धिबल्लभ पंत की थी। जब तत्कालीन प्रांतीय लाट सर विलियम क्यूअर अल्मोड़ा आए, तो उन्होंने जनता और प्रशासन के बीच संवाद स्थापित करने के लिए एक समाचार-पत्र निकालने का सुझाव दिया। इसके परिणामस्वरूप 1871 में 'अल्मोड़ा अखबार' का प्रकाशन बुद्धिबल्लभ पंत के संपादन में शुरू हुआ।
पत्रकारिता में भूमिका
प्रारंभिक वर्षों में यह पत्र ब्रिटिश प्रशासन की ओर झुका हुआ था।
प्रारंभिक तीन दशकों में इस पत्र में अंग्रेज़ी विरोधी लेखों की संख्या बहुत कम रही।
बंग-भंग आंदोलन के बाद इस अखबार ने आम जनता की आवाज़ को बल देना शुरू किया।
इसमें कुली बेगार, वन समस्या और राष्ट्रीय स्वतंत्रता से जुड़े विषय प्रमुखता से प्रकाशित होने लगे।
सम्पादक और प्रकाशन काल
बुद्धिबल्लभ पंत (1871-1909) – अखबार के पहले संपादक
मुंशी इम्तियाज अली, जीवानंद जोशी, मुंशी सदानंद सनवाल (1909 तक)
विष्णुदत्त जोशी (1909-1913)
बद्रीदत्त पांडे (1913-1918) – इनके कार्यकाल में अखबार का प्रभाव बढ़ा
1918 में 'अल्मोड़ा अखबार' का प्रकाशन बंद हो गया, लेकिन इसने उत्तराखंड की पत्रकारिता में एक नई चेतना जागृत कर दी।
निष्कर्ष
उत्तराखंड की पत्रकारिता की नींव इन शुरुआती समाचार पत्रों ने रखी। 'मेफिसलाइट' से लेकर 'अल्मोड़ा अखबार' तक, इन समाचार पत्रों ने जनमत निर्माण, सामाजिक सुधार और प्रशासन पर प्रभाव डालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 'समय विनोद' ने हिन्दी पत्रकारिता की राह खोली, जबकि 'अल्मोड़ा अखबार' ने इसे और विस्तार दिया।
आज उत्तराखंड में कई समाचार-पत्र और डिजिटल मीडिया सक्रिय हैं, लेकिन इन प्रारंभिक समाचार पत्रों की भूमिका कभी नहीं भुलाई जा सकती।
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