उत्तराखंड की प्रारंभिक पत्रकारिता और प्रमुख समाचार पत्र (The early journalism of Uttarakhand and major newspapers.)
उत्तराखंड की प्रारंभिक पत्रकारिता और प्रमुख समाचार पत्र
उत्तराखंड में स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक जागरूकता के लिए प्रारंभिक पत्रकारिता ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 20वीं सदी की शुरुआत में यहां से कई समाचार पत्र प्रकाशित हुए, जिन्होंने न केवल ब्रिटिश शासन के विरुद्ध आवाज उठाई, बल्कि स्थानीय मुद्दों को भी प्रमुखता से रखा। इस लेख में उन प्रमुख समाचार पत्रों का वर्णन किया गया है, जिन्होंने उत्तराखंड में पत्रकारिता की नींव रखी।

1. कास्मोपोलिटिन (साप्ताहिक), 1910
बैरिस्टर बुलाकी राम ने 1910 में देहरादून के कचहरी रोड पर भास्कर प्रेस की स्थापना की और वहीं से 'कास्मोपोलिटिन' नामक अंग्रेज़ी साप्ताहिक समाचार पत्र प्रकाशित किया। यह देहरादून से प्रकाशित होने वाला पहला अंग्रेज़ी भाषा का समाचार पत्र था।
यह समाचार पत्र राष्ट्रीय विचारों को बढ़ावा देने वाला था और ब्रिटिश प्रशासन की नीतियों की घोर आलोचना करता था।
सरकार के दमन का शिकार होने के बावजूद, यह समाचार पत्र 1920-22 तक चलता रहा।
1913 में 'कुमाऊँ केसरी' बद्रीदत्त पाण्डेय ने भी इसके संपादकीय विभाग में कार्य किया।
1923 में बैरिस्टर बुलाकी राम अपने पैतृक निवास पंजाब (अब पाकिस्तान) लौट गए, जिसके बाद इसका प्रकाशन बंद हो गया।
2. निर्बल सेवक (साप्ताहिक), 1913
राजा महेन्द्र प्रताप द्वारा 1913 में देहरादून से प्रकाशित 'निर्बल सेवक' एक प्रमुख क्रांतिकारी समाचार पत्र था।
इसमें उग्र क्रांतिकारी विचारों वाले लेख व संपादकीय प्रकाशित होते थे।
इसकी कुछ प्रतियाँ समुद्र पार अप्रवासी भारतीय क्रांतिकारियों तक भी पहुँचाई जाती थीं।
राजा महेन्द्र प्रताप को उनके अनुयायी ‘फकीर’ कहकर बुलाते थे।
3. विशाल कीर्ति, 1913
पौड़ी गढ़वाल से प्रकाशित होने वाले प्रारंभिक समाचार पत्रों में 'विशाल कीर्ति' का नाम प्रमुख है।
फरवरी 1913 में ब्रह्मानन्द थपलियाल की बदरी-केदार प्रेस से इसका प्रकाशन हुआ।
संपादक सदानन्द कुकरेती थे।
यह मासिक पत्र था और इसमें गढ़वाली साहित्य एवं राजनीतिक व्यंग्य प्रकाशित होते थे।
आर्थिक कठिनाइयों के कारण दिसंबर 1915 में इसका प्रकाशन बंद हो गया।
4. गढ़वाल समाचार, 1902
गढ़वाल में पत्रकारिता की शुरुआत गिरिजादत्त नैथाणी द्वारा 1902 में लैन्सडौन से प्रकाशित 'गढ़वाल समाचार' से हुई।
प्रारंभ में यह मुरादाबाद से मुद्रित किया जाता था, लेकिन अक्टूबर 1902 से कोटद्वार से प्रकाशित होने लगा।
आर्थिक समस्याओं के कारण दो वर्षों में ही इसका प्रकाशन बंद हो गया।
1912 में दुगड़डा में एक प्रेस की स्थापना कर 1913 में पुनः इसका प्रकाशन शुरू किया गया।
1914 तक यह समाचार पत्र प्रकाशित हुआ और सामाजिक तथा राजनीतिक समस्याओं पर प्रकाश डालता रहा।
5. शक्ति (साप्ताहिक), 1918
1918 में बद्रीदत्त पाण्डे के संपादन में 'शक्ति' नामक समाचार पत्र अल्मोड़ा से प्रकाशित हुआ।
यह पत्र 'अल्मोड़ा अख़बार' के बंद होने के बाद उसकी विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए शुरू किया गया।
इसने असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, और भारत छोड़ो आंदोलन को प्रमुखता दी।
1942-45 के बीच इसका प्रकाशन बंद रहा, लेकिन 1946 में पुनः शुरू हुआ।
इसमें सुमित्रानंदन पंत, हेमचंद्र जोशी, और इलाचंद्र जोशी जैसे लेखकों की रचनाएँ प्रकाशित होती थीं।
कुली बेगार प्रथा, वनाधिकार आंदोलन, तथा क्षेत्रीय आंदोलनों में इसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
निष्कर्ष
उत्तराखंड में पत्रकारिता का प्रारंभिक स्वरूप स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक सुधार आंदोलनों से जुड़ा था। इन समाचार पत्रों ने जनता को जागरूक किया, ब्रिटिश शासन की नीतियों की आलोचना की और सामाजिक सुधारों का समर्थन किया। इनका योगदान आज भी पत्रकारिता और सामाजिक चेतना के लिए प्रेरणास्रोत बना हुआ है।
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